Deepotsav in Ayodhya: ईश्वर का नगर है अयोध्या, स्वर्ग से की गई है तुलना

Deepotsav in Ayodhya: जैन मत के अनुसार उनके चौबीस तीर्थंकरों में से पांच तीर्थंकरों का जन्म अयोध्या में हुआ था।

Written By :  Neel Mani Lal
Update: 2022-10-23 07:55 GMT

अयोध्या (photo: social media )

Deepotsav in Ayodhya: अयोध्या मात्र एक नगरी नहीं है। ये साक्षात ईश्वर की नगरी है। वेदों में अयोध्या को ईश्वर का नगर बताया गया है और इसकी सम्पन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है। जैन और वैदिक, दोनों मतो के अनुसार भगवान रामचन्द्र जी का जन्म भी इसी भूमि पर हुआ अयोध्या हिन्दुओं के प्राचीन और सात पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है।

अथर्ववेद में यौगिक प्रतीक के रूप में अयोध्या का उल्लेख है-

अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या।तस्यां हिरण्मयः कोशः स्वर्गो ज्योतिषावृतः॥

रामायण के अनुसार अयोध्या की स्थापना मनु ने की थी। यह नगरी सरयू के तट पर बारह योजन (लगभग १४४ कि.मी) लम्बाई और तीन योजन (लगभग ३६ कि.मी.) चौड़ाई में बसी थी। कई शताब्दी तक यह नगर सूर्यवंशी राजाओं की राजधानी रहा।

स्कन्दपुराण के अनुसार सरयू के तट पर दिव्य शोभा से युक्त दूसरी अमरावती के समान अयोध्या नगरी है।।अयोध्या मूल रूप से राम और अनेक मंदिरों का शहर है।

जैन मत का केंद्र (photo: social media )

जैन मत का केंद्र

जैन मत के अनुसार उनके चौबीस तीर्थंकरों में से पांच तीर्थंकरों का जन्म अयोध्या में हुआ था। क्रम से पहले तीर्थंकर ऋषभनाथ जी, दूसरे तीर्थंकर अजितनाथ जी, चौथे तीर्थंकर अभिनंदननाथ जी, पांचवे तीर्थंकर सुमतिनाथ जी और चौदहवें तीर्थंकर अनंतनाथ जी। जैन मान्यताओं के अनुसार, सभी तीर्थंकर और भगवान रामचंद्र जी इक्ष्वाकु वंश से थे।

अयोध्या (photo: social media )

सूर्यवंशी राजधानी

भारत के प्रसिद्ध एवं प्रतापी क्षत्रियों (सूर्यवंशी) की राजधानी यही नगर रहा है। पहले यह कोसल जनपद की राजधानी था। प्राचीन उल्लेखों के अनुसार तब इसका क्षेत्रफल 96 वर्ग मील था। यहाँ पर सातवीं शाताब्दी में चीनी यात्री ह्वेनसांग आया था। उसके अनुसार यहाँ 20 बौद्ध मंदिर थे तथा 3000 भिक्षु रहते थे। चीनी यात्री फ़ाह्यान ने इसका 'शा-चें' नाम से उल्लेख किया है, जो कन्नौज से 13 योजन दक्षिण पूर्व में स्थित था।

अयोध्या और कुशावती

वाल्मीकि रामायण में लिखा है कि स्वर्गारोहण से पूर्व रामचंद्र जी ने कुश को कुशावती नामक नगरी का राजा बनाया था। श्रीराम के पश्चात् अयोध्या उजाड़ हो गई थी, क्योंकि उनके उत्तराधिकारी कुश ने अपनी राजधानी कुशावती में बना ली थी। रघु वंश मान्यताओं से पता चलता है कि अयोध्या की दीन-हीन दशा देखकर कुश ने अपनी राजधानी पुन: अयोध्या में बनाई थी।महाभारत में अयोध्या के दीर्घयज्ञ नामक राजा का उल्लेख है जिसे भीमसेन ने पूर्वदेश की दिग्विजय में जीता था।

बौद्ध धर्म में मान्यता (photo: social media )

बौद्ध धर्म में मान्यता

गौतमबुद्ध के समय कोसल के दो भाग हो गए थे- उत्तर कोसल और दक्षिण कोसल जिनके बीच में सरयू नदी बहती थी। अयोध्या या साकेत उत्तरी भाग की और श्रावस्ती दक्षिणी भाग की राजधानी थी। बौद्ध काल में ही अयोध्या के निकट एक नई बस्ती बन गई थी जिसका नाम साकेत था। बौद्ध साहित्य में साकेत और अयोध्या दोनों का नाम साथ-साथ भी मिलता है।

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