लखनऊ: पलास्टिक एक ऐसा उत्पाद बन गया है जिसको लेकर दुनिया बहुत चिंतित है। इस उत्पाद ने सामान्य जीवन में अपनी ऐसी जगह बना ली है जिसके बिना काम ही नहीं चल पा रहा। लेकिन इसके कचरे के निस्तारण की समस्या ने अब बहुत ही भयावह रूप ले लिया है। जिस मात्रा में प्लास्टिक के चलते पर्यावरण में प्रदूषण बढ़ा है उससे सभी चिंतित हैं। ऐसे में पंतनगर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा खोजी गयी एक स्वदेशी तकनीक की तरफ सभी का ध्यान गया है। इस तकनीक से अब पर्यावरण मित्र प्लास्टिक का उत्पादन संभव हो सकेगा।
केवल ग्रीन साल्वेंट का उपयोग
पंतनगर विश्वविद्यालय के रसायन शास्त्र की प्रयोगशाला के शोधार्थियों ने यह विलक्षण कार्य करने में सफलता हासिल की है। आधुनिक विज्ञान के क्षेत्र में इस खोज को बहुत ही महत्त्व दिया जा रहा है। इस खोज ने वैज्ञानिको को बहुत ही राहत दी है जो प्लास्टिक को लेकर चिंता में थे। इस खोज को इसीलिए विश्व की सभी शोध पत्रिकाओं ने हाथोहाथ लिया है। खास बात यह है कि केवल ग्रीन साल्वेंट का उपयोग करते हुए विभिन्न प्लास्टिक पदार्थों का संश्लेषण, शोधन एवं संवर्धन कर यह पर्यावरण हितैषी तकनीक विकसित की गई है। अब विश्वविद्यालय ने इस शोध का पेटेंट भी प्राप्त कर लिया है।
कार्बन डाई ऑक्साइड की तरल अवस्था का उपयोग
इस शोध के बारे में पंतनगर विश्वविद्यालय में रसायन शास्त्र विभाग के अध्यक्ष डॉ. एमजीएच जैदी बताते हैं कि स्वदेशी तकनीक में ऑर्गेनिक साल्वेंट के स्थान पर कार्बन डाई ऑक्साइड की तरल अवस्था का उपयोग किया गया है। कार्बन डाई ऑक्साइड का प्राकृतिक स्वरूप गैस के रूप में होता है। इसे जब तरल अवस्था में बदलते हैं तो वह हरित विलायक के रूप में कार्य करती है। इस अवस्था में कोई भी प्लास्टिक उत्पाद बनाया जा सकता है। जैसे प्रेशर कुकर में चावल पकाने के बाद भाप निकाल दी जाती है, उसी प्रकार इस तकनीक में तैयार प्लास्टिक को बाहर निकालने के लिए गैस को डीप्रेशराइज कर देते हैं। इससे गैस अपनी प्राकृतिक अवस्था में आ जाती है।
इस दौरान निकलने वाली कार्बन डाई ऑक्साइड पुन: रीसाइकिल हो जाती है, जिससे पर्यावरण को नुकसान नहीं होता है। जिस प्रकार पानी में शक्कर घोलने पर पानी विलायक एवं शक्कर विलय होती है। उसी प्रकार तारपीन के तेल एवं लाख के घोल से प्लास्टिक तैयार की जाती है, इसमें तारपीन का तेल विलायक एवं लाख विलय के रूप में होते है।
पर्यावरण मित्र प्लास्टिक के व्यावसायिक उत्पादन को लेकर अब मंथन शुरू हो चुका है। इसको व्यावसायिक स्वरुप में आने में अभी काफी समय लग सकता है। जानकारों के मुताबिक इसके व्यावसायिक उत्पादन के लिए अभी काफी काम करना होगा।