पूर्णिमा श्रीवास्तव
गोरखपुर: इलाहाबाद का नाम प्रयागराज करने के बाद सोशल मीडिया पर छाए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए उर्दू नामों का हिन्दीकरण या हिन्दूकरण नई बात नहीं है। हिन्दुत्व और सियासत के घालमेल वाले लिटमस टेस्ट को लेकर गोरखपुर योगी आदित्यनाथ की प्रयोगशाला रही है। पिछले दो दशकों में लिटमस टेस्ट का ही नतीजा है कि उर्दू बाजार को हिन्दी बाजार, मिया बाजार को माया बाजार, शेखपुर को शेषपुर और अलीनगर को आर्यनगर लिखा और बोला जाने लगा है। धीरे-धीरे अब इस्माईलपुर को ईश्वरपुर और हुमायूंपुर को हनुमाननगर भी बोला जाने लगा है।
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तहसील और नगर निगम के दस्तावेज में भले ही मुगलकालीन गोरखपुर के मोहल्लों के नाम में कोई बदलाव नहीं आया हो लेकिन हिन्दुत्व के उभार के साथ ही दुकानों और घरों के बाहर लगे होर्डिंग और नेमप्लेट पर सभी अपनी-अपनी सहूलियत के हिसाब से मोहल्लों और बाजार के नाम लिख रहे हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि नामकरण को लेकर हिन्दू-मुस्लिम के बीच दरार साफ दिखती है। दुकानों और आवास पर नाम लिखने से लेकर आम बोलचाल में नए और पुराने नामकरण को लेकर हिन्दू और मुस्लिम बिरादरी अलग-अलग नजर आती है।
हिन्दी बाजार या उर्दू?
घंटाघर क्षेत्र की 65 फीसदी दुकानों पर ‘हिन्दी बाजार’ तो 35 फीसदी दुकानों पर ‘उर्दू बाजार’ लिखा हुआ नजर आता है। बाजार में चंद मीटर की दूरी पर लगे होर्डिंगों से ही हिन्दू और मुस्लिम का बंटवारा साफ नजर आता है। होर्डिंग पर लिबास घर नाम के प्रतिष्ठान पर पता ‘उर्दू बाजार’ लिखा हुआ दिखता है तो फेयरीज चाइनीज ब्यूटी पार्लर पर पता ‘हिन्दी बाजार’ लिखा है।
अलीनगर बनाम आर्यनगर
अलीनगर में भी 80 फीसदी दुकानों पर ‘आर्यनगर’ लिखा जा चुका है। बमुश्किल 20 फीसदी दुकानों पर ‘अलीनगर’ लिखा हुआ है। यहां के बाजार में गल्र्स पैलेस नाम से वकार अहमद की दुकान पर पता ‘अलीनगर’ लिखा है तो दि पूजा गारमेंट्स पर पता ‘आर्यनगर’। युवा व्यापारी अनुराग गुप्ता कहते हैं कि जबसे होश संभाला बाजार का नाम आर्यनगर है, ऐसे में अलीनगर नाम को कैसे स्वीकारा जा सकता है। नगर निगम के दस्तावेज में वार्ड का नाम अलीनगर है। हालांकि निगम प्रशासन वार्ड में जीतने वाले पार्षदों की पसंद-नापसंद के बीच झूलता नजर आता है। पिछले चुनाव में मोहल्ले से जीते निर्दल पार्षद संजय यादव को नगर निगम ने जो लेटर पैड मुहैया कराया है, उसपर अलीनगर ही लिखा हुआ है। वहीं पूर्व में भाजपा के टिकट पर जीते पार्षद राजेश जायसवाल ने अपने लेटरपैड पर आर्यनगर छपवाया था। पूर्व पार्षद राजेश जायसवाल कहते हैं कि जब महंत योगी आदित्यनाथ जी ने आर्यनगर नाम पर सहमति जता दी तो दूसरे नाम पर विचार करना भी पाप है। मैने तो अपने कार्यकाल में वार्ड का नाम आर्यनगर करने को लेकर प्रस्ताव भी दिया था। वहीं वर्तमान पार्षद संजय यादव का कहना है कि तहसील और नगर निगम के दस्तावेज में जो नाम है, उसे ही लिखा जाना विधि सम्मत है। दस्तावेज में आर्यनगर हो जाएगा को आर्यनगर ही लिखेंगे।
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मियां बाजार में इमामबाड़ा इस्टेट द्वारा बनाया गया मुगलकालीन वास्तुकला का बेजोड़ नमूना देखने को मिलता है। मियां साहेब के चलते ही पूरे इलाके को मियां बाजार नाम पर जाना जाता है। योगी आदित्यनाथ प्रार्दुभाव के बाद पिछले दो दशकों में मियांबाजार के जगह ‘मायाबाजार’ भी लिखा जाने लगा है। यहां भी हिन्दुओं की दुकानों पर ‘माया बाजार’ तो मुस्लिम बिरादरी के लोगों की दुकान और आवास पर ‘मियां बाजार’ दर्ज है। इस बाजार के प्रमुख मार्ग पर ठीक अगल-बगल स्थित शर्मा क्राकरी हाउस पर पता ‘माया बाजार’ लिखा है तो वहीं वर्षों पुरानी मॉडल गन हाउस पर ‘मियां बाजार’ लिखा है। घड़ी दुकानदार शादाब कहते हैं कि दस वर्ष पिता के साथ तो 25 वर्षों से खुद दुकान संभाल रहा हूं। योगी आदित्यनाथ के सांसद बनने के बाद से एक-एक कर हिन्दुओं की दुकानों पर माया बाजार लिखा जाने लगा। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन माया बाजार नामकरण के बाद इसकी सूरत तो बदलनी चाहिए। सडक़ें टूटी हैं। ओडीएफ शहर में टॉयलेट है नहीं। संकरी सडक़ों पर लोग घंटों जाम की समस्या से जूझते हैं।
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पांच बार के पार्षद जियाउल इस्लाम का कहना है कि मोहल्लों के नाम में होने वाले बदलाव को लेकर नगर निगम की कार्यकारिणी से लेकर बोर्ड की बैठकों में विरोध हुआ। नगर निगम बोर्ड की संस्तुति के बिना ही मोहल्लों का नाम बदला जाना गैर संवैधानिक है। यदि मुख्यमंत्री को मुगलकालीन मोहल्लों के नाम से नफरत है तो कैबिनेट में प्रस्ताव लाकर तहसील प्रशासन के दस्तावेज में भी मोहल्लों के नाम को बदलवा देना चाहिए। अब निवास प्रमाण पत्र पर मोहल्ला अलीनगर हो और पार्षद द्वारा जारी चरित्र प्रमाण पत्र पर आर्यनगर तो इसे कैसे जायज ठहराया जा सकता है। सिर्फ होर्डिंगों पर नाम बदलने की सियासत नहीं होनी चाहिए।
शेखपुर और शेषपुर पर नगर निगम भी भ्रमित
नगर निगम एक वार्ड है शेखपुर। इसके नाम को लेकर खुद नगर निगम प्रशासन भ्रमित नजर आता है। कांग्रेस की राजनीति कर रहे संजीव सिंह सोनू वार्ड में तीन बार से पार्षदी का चुनाव जीत रहे हैं। पिछले कार्यकाल में नगर निगम ने जो लेटर पैड मुहैया कराया था, उसपर वार्ड का नाम शेखपुर था। वर्तमान कार्यकाल के लेटर पैड पर वार्ड का नाम शेषपुर लिखा हुआ है। संजीव सिंह सोनू का कहना है कि तहसील प्रशासन के कागजों में मोहल्ले का नाम शेषपुर ही है। लेकिन चरित्र प्रमाण पत्र या अन्य प्रमाण पत्र बनवाने में लोग अपनी-अपनी सहूलियत के हिसाब से वार्ड का नाम लिखवाते हैं। प्रमाण पत्र बनाते समय पूछना पड़ता है कि वार्ड का नाम शेखपुर लिखें या फिर शेषपुर।
हिन्दू नामकरण की जद में आए मुहल्लों का अतीत
मियां साहब इमामबाड़ा के पहले सज्जादानशीन मरहूम सैयद अहमद अली शाह की किताब ‘महबूबुत तवारीख’ में मोहल्लों का इतिहास दिया गया है। खूनीपुर और शेखपुर मुहल्ला हुसैन अली के संरक्षण में था। उर्दू बाजार उस समय का सबसे व्यस्तम क्षेत्र था। यह फौज का बाजार था। यहां शाही जामा मस्जिद मुगलों ने बनवाई थी। बादशाह औरंगजेब के पुत्र मुअज्जम शाह जब गोरखपुर आए तो इस नगर का नाम मुअज्जमाबाद कर दिया गया। ये नाम करीब सौ साल तक चला। यहां का उर्दू बाजार बादशाह जहांगीर के जमाने से आबाद था। अलीनगर मुहल्ले में सूफी बुजुर्ग अली बहादुर शाह मुकीम थे। उन्हीं के नाम पर मुहल्ला अलीनगर है। हजरत सैयद रौशन अली अली शाह को गोरखपुर में अपने नाना से दाऊद-चक नामक मुहल्ला विरासत में मिला था। उन्होंने यहां इमामबाड़ा बनवाया। जिस वजह से इस जगह का नाम दाऊद-चक से बदलकर इमामगंज हो गया। मियां साहब की ख्याति की वजह से इसको मियां बाजार के नाम से जाना जाने लगा। हुमायूंपुर का नाम एक बुजुर्ग हजरत हुमायूं खां शहीद के नाम पर पड़ा। जिनकी मजार मकबरे वाली मस्जिद (अंसारी रोड हुमायूंपुर उत्तरी) में है। यहां मस्जिद में शहीदों की कई मजारें हैं। हजरत इस्माईल शाह अलैहिर्रहमां के नाम पर मुहल्ला इस्माईलपुर बसा। आपकी मजार काजी जी की मस्जिद इस्माईलपुर के निकट है। मुसलमान सूबेदारों ने रसूलपुर व पुराना गोरखपुर कदीमी मुहल्ला आबाद किया। इस क्षेत्र में कई शाही मस्जिद है।
मोहल्लों और एयरपोर्ट के नामकरण में गोरक्षपीठ का असर
योगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद गोरखपुर विश्वविद्यालय में श्रीश्री महायोगी गोरक्षनाथ शोध पीठ की स्थापना के साथ ही गोरखपुर एयरपोर्ट का नाम गुरु गोरखनाथ के नाम पर किया जा जा चुका है। शक्तिनगर वार्ड में योगी आदित्यनाथ के प्रादुर्भाव के बाद ही 1996 में आदित्यपुरी मोहल्ला बजूद में आया। देवरिया मार्ग पर गोरक्षनगरी नाम से मोहल्ला विकसित हो रहा है। जनप्रिय विहार वार्ड में न सिर्फ महंत दिग्विजयनाथ के नाम से पार्क विकसित हो रहा है बल्कि एक भव्य गेट भी लगाया जा रहा है। स्थानीय पार्षद ऋषि मोहन वर्मा के प्रस्ताव पर पार्क के जीर्णोद्धार पर 5 लाख और दिग्विजयनाथ गेट के निर्माण पर 2 लाख 80 हजार रुपये का बजट मंजूर हो गया है।
नहीं बदले जा सके मोहल्लों के अटपटे नाम
लखनऊ की तरफ से गोरखपुर में प्रवेश के समय सबसे पहला विकसित इलाका डोमिनगढ़ नजर आता है तो देवरिया मार्ग से आने पर कूड़ाघाट। वहीं असुरन और घोषीपुरवा जैसे नाम भी अटपटे लगते हैं। पिछले वर्षों में नगर निगम बोर्ड और कार्यकारिणी में कई बार इन मोहल्लों और इलाकों के नाम को बदले जाने का प्रस्ताव तो आया लेकिन अमल नहीं हो सका।