भारतीय जनता पार्टी के लिए मुसीबत बने ओमप्रकाश राजभर

Update:2018-02-09 13:22 IST

आशुतोष सिंह

वाराणसी। शिवसेना और तेलगु देशम पार्टी के बाद बीजेपी की एक और सहयोगी पार्टी ने बगावती तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं। उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सहयोगी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के मुखिया ओमप्रकाश राजभर ने योगी सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर बीजेपी को पसोपेश में डाल दिया है। ऐसा लग रहा है कि ओमप्रकाश राजभर अब बीजेपी के लिए गले की फांस बन गए हैं।

ओमप्रकाश से रिश्ते को लेकर बीजेपी आलाकमान भी असमंजस में है। पार्टी के लिए बड़ी मुश्किल यह है कि अगर उन्हें साथ रखती है तो बदनामी का डर और दूर करती है तो एक बड़ा वोटबैंक खिसकने का खतरा। लिहाजा सियासी बिसात पर दोनों ही पार्टियों में शह और मात का खेल जारी है।

ओमप्रकाश राजभर की दबाव की राजनीति

अब सवाल यह उठाया जा रहा है कि क्या ओमप्रकाश राजभर दबाव की राजनीति कर रहे हैं? क्या भ्रष्टाचार को लेकर दिया गया उनका बयान सोची समझी रणनीति है? क्या बगावती तेवर दिखाकर राजभर लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी आलाकमान पर दबाव बनाना चाहते हैं? यूपी की सियासत में सुलग रहे इन सवालों को हवा तब मिली जब सुभासपा की ओर से प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में पिछले दिनों एक बड़ी रैली का आयोजन किया गया। रैली में उमड़ी हजारों की भीड़ ने हर किसी को दंग कर दिया।

जानकारों के मुताबिक राजभर हर कीमत पर बीजेपी को अपनी ताकत का एहसास कराना चाहते थे। इस कोशिश में वे काफी हद तक सफल भी रहे। राजभर ने रैली में गठबंधन की मर्यादा को तोडऩे वाले कुछ ऐसे बयान दिए, जिससे बीजेपी बौखला गई। किसी विपक्षी नेता की तरह बोलते हुए राजभर ने योगी सरकार पर भ्रष्टाचार को लेकर ताबड़तोड़ हमले किए।

गाजीपुर डीएम को लेकर शुरू हुई थी कलह

बीजेपी ने पूर्वांचल में पिछड़ों को जोडऩे के मकसद से सुभासपा को अपने साथ जोड़ा था। अपना दल के जरिए बीजेपी ने पटेल समाज को पार्टी से जोड़ा तो वहीं सुभासपा को अपने पाले में लाकर राजभर समाज को गोलबंद कर लिया। बीजेपी को इसका फायदा भी मिला। विधानसभा चुनाव में इन दोनों जातियों के लोगों ने झूमकर बीजेपी को वोट दिया। इसके बदले में बीजेपी ने सुभासपा को आठ सीटें दी। वहीं दूसरी ओर सुभासपा को भी बीजेपी के साथ का फायदा मिला।

पार्टी ने आठ में से चार सीटों पर जीत हासिल की। खुद राजभर पहली बार विधानसभा का मुंह देखने में कामयाब हुए। सरकार बनी तो बीजेपी ने राजभर को अहमियत देते हुए कैबिनेट मंत्री का रुतबा भी दिया। हालांकि यूपी में जीत की खुमारी अभी उतरी भी नहीं थी कि दोनों ही पार्टियों के रिश्तों में दरार पडऩी शुरू हो गई। इसकी शुरुआत गाजीपुर के तत्कालीन डीएम संजय खत्री को लेकर हुई।

दरअसल राजभर खुद गाजीपुर के जहूराबाद विधानसभा सीट से विधायक हैं। कैबिनेट मंत्री बनने के बाद वे चाहते थे कि जिले में उनकी हनक कायम हो, लेकिन भाजपाइयों को उनका ये रवैया रास नहीं आया। खासतौर से स्थानीय सांसद और केंद्रीय रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा राजभर के रवैये को लेकर खफा थे। इसी बीच गाजीपुर के तत्कालीन डीएम संजय खत्री ने एक मामले में सुभासपा के एक कार्यकर्ता पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया।

इस पर राजभर ने इसे अपने सम्मान से जोड़ लिया और डीएम के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। प्रण कर लिया कि जब तक डीएम गाजीपुर में रहेंगे, वे जिले में कदम नहीं रखेंगे। आलम यह था कि राजभर पूरे मामले को अमित शाह और योगी आदित्यनाथ के दरबार में भी ले गए।

निकाय चुनाव में बीजेपी के खिलाफ प्रत्याशी उतारे

सरकार में रहने के बावजूद सुभासपा ने गठबंधन धर्म का पालन नहीं किया। इसकी बानगी देखने को मिली निकाय चुनाव में। विधानसभा चुनाव की तर्ज पर ओमप्रकाश राजभर निकाय चुनाव में बड़ी हिस्सेदारी चाहते थे, लेकिन बीजेपी ने उनकी मांग मानने से साफ इनकार कर दिया। लिहाजा सुभासपा ने पूर्वांचल की कई सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार दिए। इनमें से कुछ ऐसी सीटें भी थीं जहां बीजेपी बेहद मजबूत स्थिति में थी।

निकाय चुनाव में सुभासपा को कामयाबी तो नहीं मिली, लेकिन इसने बीजेपी को एक संदेश जरूर दे दिया। पार्टी ने साफ कर दिया कि अगर लोकसभा चुनाव में अच्छी हिस्सेदारी नहीं मिलती है तो वो अब अकेले दम पर चुनाव लडऩे के लिए तैयार हैं। सियासी जानकार बताते हैं कि राजभर की पूरी कसरत लोकसभा में अधिक से अधिक सीटें हासिल करना है।

ओमप्रकाश के मुकाबले अनिल राजभर

राजभर समाज में ओमप्रकाश की बढ़ती लोकप्रियता को थामने के लिए बीजेपी ने भी दांव खेल दिया है। पार्टी ने राजभर समाज के ही अपने नेता और राज्यमंत्री अनिल राजभर को मैदान में उतार दिया है। वाराणसी की शिवपुर विधानसभा सीट से विधायक अनिल राजभर बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के बेहद नजदीकी माने जाते हैं। अनिल राजभर के पिता रामजीत राजभर की पहचान पूर्वांचल में बीजेपी के बड़े नेता के तौर पर होती रही है।

अनिल राजभर पहली बार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे और पार्टी ने उन्हें मंत्री बना दिया। बताया जा रहा है कि ओमप्रकाश राजभर के आरोपों का जवाब देने के लिए बीजेपी ने अनिल राजभर खुली छूट दे रखी है। इस बार भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला। वाराणसी में ओमप्रकाश राजभर ने जब योगी सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए तो जवाब देने के लिए मैदान में अनिल राजभर ही उतरे। उन्होंने कहा कि योगी सरकार किसी तरह के दबाव की राजनीति सहन नहीं करेगी।

उन्होंने दो टूक कहा कि भाजपा के सहारे सत्ता में शामिल होने वाले ओमप्रकाश राजभर समाज के लोगों को गुमराह कर रहे हैं। उनकी पूरी छटपटाहट बेटे को सांसद बनाने की है। लोकसभा चुनाव के पहले वे टिकट सुनिश्चित कराने के लिए दबाव बना रहे हैं। उन्होंने कहा कि जब-जब चुनाव आता है तब-तब ओमप्रकाश राजभर दबाव की राजनीति करते हैं। 18 सालों से पार्टी बनाकर घूम रहे थे, लेकिन अभी तक विधानसभा का मुंह नहीं देख पाए थे।

सुभासपा की राजनीतिक हैसियत

पूर्वांचल की सियासत में सुभासपा की राजनीतिक हैसियत को नकारा नहीं जा सकता है। यही कारण है कि बीजेपी अब तक ओमप्रकाश राजभर के हर नखरे को बर्दाश्त करती आ रही है। पूर्वांचल में राजभर वोटबैंक पर ओमप्रकाश की मजबूत पकड़ है। लिहाजा अगर ओमप्रकाश बीजेपी से अलग होते तो पार्टी को भारी नुकसान हो सकता है।

दरअसल पूर्वांचल के 15 जिलों में राजभर बिरादरी की अच्छी संख्या है। खासतौर से वाराणसी, गाजीपुर, बलिया, मऊ, आजमगढ़, जौनपुर, चंदौली, देवरिया, कुशीनगर की कई सीटों पर राजभर जाति के लोग निर्णायक भूमिका अदा करते हैं। ओमप्रकाश इन जिलों में 18 सालों से लगातार राजनीति करते आ रहे हैं। इन इलाकों में सुभासपा ने बेहतर संगठन खड़ा कर लिया है। यही कारण है कि इस बार पार्टी को चार सीटों पर कामयाबी भी मिली। गाजीपुर के जहूराबाद से ओमप्रकाश राजभर, जखनिया से त्रिवेणी राम, वाराणसी के अजगरा से कैलाश सोनकर और कुशीनगर के रामकोला से रामानंद गौड़ विधायक चुने गए।

इनके बोल...

ओमप्रकाश राजभर की फितरत रही है कि वे दबाव की राजनीति करते रहे हैं। चाहे वो सपा के साथ रहे हों या फिर बसपा के साथ। उनका इतिहास रहा है कि सहयोगी के रूप में वो कामयाब नहीं हुए। वे अपने समाज की राजनीति करते हैं और नहीं चाहते हैं कि इसमें कोई दूसरी पार्टी दखल दे। हालांकि बीजेपी से उनका गठबंधन चलता रहेगा। पूरी कसरत इसीलिए हो रही है ताकि लोकसभा चुनाव में अधिक से अधिक सीटें हासिल की जा सकें।

राजनाथ तिवारी, वरिष्ठ पत्रकार

भारतीय राजनीति में छोटी पार्टियां हमेशा अपने वजूद की लड़ाई लड़ती रही हैं। जब उन्हें लगता है कि बड़ी पार्टियों की वजह से उनके वजूद को खतरा हो रहा है तो वे आंखें दिखाने लगती हैं। ओमप्रकाश राजभर के साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। हालांकि यूपी की राजनीति में उनका क्या ट्रैक रिकॉर्ड रहा है,ये सभी जानते हैं।

अमर बहादुर सिंह, राजनीतिक विश्लेषक

हम लोग दबाव की राजनीति नहीं करते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि हम सिस्टम की खामियों को देखते रहें। यह सच्चाई है कि आज थानों में घूसखोरी का रेट बढ़ गया है। गरीबों को सताया जा रहा है। प्रदेश की यह हकीकत सीएम योगी आदित्यनाथ तक नहीं पहुंचाई जा रही है। जहां तक रह गई अनिल राजभर की बात तो वो हमारे नेता ओमप्रकाश राजभर के छोटे भाई की तरह हैं। उन्हें इस तरह के आरोप लगाने से पहले सोचना चाहिए। बीजेपी से हमारा गठबंधन चल रहा है और आगे भी चलता रहेगा।

शशि सिंह, राष्ट्रीय महासचिव, सुभासपा

ओमप्रकाश राजभर हमारे परिवार के सदस्य की तरह हैं। अगर उन्हें किसी तरह की शिकायत है तो पार्टी तक पहुंचा सकते हैं। अच्छा होता कि वे खुले मंच से इस तरह की बातें करने से बचते। जहां तक बात राजनीतिक दबाव की है तो बीजेपी किसी तरह की दबाव में नहीं आने वाली है।

हंसराज विश्वकर्मा, जिलाध्यक्ष, बीजेपी

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