हाईकोर्ट के आदेश को धता बता कर की 32 की नियुक्ति

Update:2018-10-12 12:55 IST

अनूप हेमकर

बलिया: भारत माता की जय व वन्देमातरम बोलने पर पाबंदी को लेकर सुर्खियों में आए जिले के गांधी मुहम्मद अली मेमोरियल इंटर कॉलेज में शिक्षा विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से उच्च न्यायालय के आदेश को दरकिनार करके पिछले 5 वर्ष में 32 शिक्षकों व कर्मचारियों की नियुक्ति का मामला सामने आया है।

इस विद्यालय के बारे में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले में स्पष्टï किया था कि ये अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान नहीं है। लेकिन विद्यालय ने तथ्यों को छिपा कर राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्था आयोग से ये आदेश हासिल कर लिया कि ये अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्था है। इसके बाद संस्था में शिक्षक व कर्मचारी के पद पर कुल 32 नियुक्ति कर ली गई। आरोप है कि इन नियुक्तियों के जरिये विद्यालय के संचालकों ने करीब 6 करोड़ वसूल किए हैं। आरोप ये भी है कि शिक्षा विभाग के अधिकारियों को भी खूब उपकृत किया गया जिस वजह से विभाग वाले आंखें बंद किए हैं।

क्या है मामला

बिल्थरा रोड स्थित इस कालेज में इन नियुक्तियों में शिक्षा विभाग के अधिकारियों को खूब उपकृत किया गया। मुहम्मद अली मेमोरियल अली ट्रस्ट द्वारा वर्ष 1945 में स्थापित इस विद्यालय के संचालन के बारे में १९५८ में उप शिक्षा निदेशक, वाराणसी ने प्रशासन योजना अनुमोदित की थी। बाद में विद्यालय की प्रबंध समिति ने प्रधानाचार्य बदरुल हसन कादरी को बर्खास्त कर दिया था, जिस पर कादरी ने उप शिक्षा निदेशक, वाराणसी के यहां अपील की। उप शिक्षा निदेशक ने 22 जनवरी 1979 को अपील को विद्यालय के अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान होने का हवाला देते हुए अपोषणीय करार दिया तथा हस्तक्षेप से इंकार कर दिया। इस निर्णय के विरुद्ध प्रधानाचार्य कादरी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। जिसे कोर्ट ने 24 मई 1984 को खारिज कर दिया। इस फैसले के विरुद्ध कादरी सर्वोच्च न्यायालय गए जहां से उन्हें राहत मिली। सर्वोच्च न्यायालय ने 29 अक्टूबर 1984 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को खारिज कर पुन: इलाहाबाद हाईकोर्ट को विद्यालय के अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान होने के तथ्य पर निर्णय करने के लिये संदर्भित कर दिया। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने याचिका पर पुन: सुनवाई की और 12 फरवरी 1992 को फैसला सुनाया। फैसले में हाईकोर्ट ने कहा कि इस संस्था की स्थापना किसी वर्ग विशेष के लिये नहीं बल्कि सभी को शिक्षा व तकनीकी शिक्षा का लाभ देने के लिये की गई है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ये अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान नहीं है।

हाईकोर्ट के फैसले के बाद यह संस्था सामान्य शिक्षण संस्थान की तरह संचालित हो रही थी तथा माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड से चयनित अध्यापक नियुक्त हो रहे थे। इसी बीच 2013 में संस्था की तरफ से मुहम्मद नाजिर आलम ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्था आयोग में मुकदमा दाखिल किया। इस मुकदमे में नाजिर अली ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले का कोई जिक्र नहीं किया तथा संस्था के पंजीकरण, संविधान व उद्देश्य का हवाला देकर 29 अक्टूबर 2013 को एक पक्षीय आदेश प्राप्त कर लिया। आयोग ने संस्था को अल्पसंख्यक दर्जा के लिये उपयुक्त करार देते हुए अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान घोषित कर दिया तथा 29 अक्टूबर 2013 को अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान का प्रमाण पत्र जारी कर दिया। विद्यालय सूत्रों के अनुसार अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान घोषित होने के बाद संस्था में शिक्षक व कर्मचारी के पद पर कुल 32 नियुक्ति कर ली गई।

एक तरफ यह संस्था स्वयं को अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान करार देता है वहीं शिक्षा विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से इस संस्था के अध्यापकों का स्थानांतरण भी किया जाता है। हाल ही में विद्यालय में एक अध्यापक शारदा यादव का स्थानांतरण किया गया है। यही नहीं, नियुक्ति के लिये अनेक शिक्षकों को 2 वर्ष पहले ही सेवानिवृत्त करा दिया गया। शिक्षा विभाग के अधिकारियों के कई रिश्तेदार नियुक्त किए गए।

इस मसले को सामाजिक कार्यकर्ता अरुण तिवारी मुख्यमंत्री कार्यालय तक उठा चुके हैं। अरुण कहते हैं कि उनके शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। तथा उनसे कोई सूचना व साक्ष्य लिए बगैर मामले में लीपापोती कर दी गई। अरुण का आरोप है कि विद्यालय ने नियुक्ति के जरिये तकरीबन 6 करोड़ वसूल किए हैं। जिलाधिकारी भवानी सिंह खंगारौत का कहना है कि यह प्रकरण उनके संज्ञान में आया है, उन्होंने अभिलेख तलब किए हैं। वह इसकी जांच कराएंगे।

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