सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का छलावा
गाजीपुर जिले की तहसील मुहम्मदाबाद से लगभग 13 किलोमीटर दूर विकास खंड बाराचवर है तो ब्लाक मुख्यालय लेकिन यहां स्वास्थ्य सेवाओं की समुचित व्यवस्था नहीं है। यहां के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र को अपग्रेड कर लगभग 13 साल पहले 6 करोड़ की लागत से सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का निर्माण करवाया गया था। लेकिन स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया। आज मरीजों को ढंग से प्राथमिक सुविधाएं भी नहीं मिल रही हैं। ब्लाक स्तर का अस्पताल होने के कारण यह 83 ग्रामपंचायतों व 102 क्षेत्र पंचायतों का एकलौता अस्पताल है। यदि जनसंख्या की बात की जाय तो तीन लाख से अधिक लोग इस पर निर्भर हैं।
अस्पताल निर्माण के बाद यह बिल्डिंग काफी समय तक वीरान रही। इसी दरम्यान प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में तैनात डॉक्टर पीके गुप्ता ने नई बिल्डिंग में अस्पताल शिफ्ट करने का आदेश जारी कर दिया कि रखरखाव के अभाव में नई इमारत खराब हो रही है अत: चिकित्सा सुविधायें ही शुरू की जायें। सो बिना किसी लोकार्पण या उद्घाटन के सीएचसी की बिल्डिंग में पीएचसी की सेवाएं मिलने लगीं। नियमों के मुताबिक यहां 30 से अधिक का स्टाफ होना चाहिए, लेकिन वर्तमान में है सिर्फ दो डॉक्टरों सहित कुल 19 का स्टाफ है। इसमें भी एक होम्योपैथ व एक नेत्र सहायक सामिल है। 10-15 किलोमीटर के दायरे में आने वाले सैकड़ों गांवों से इस अस्पताल में आने वाले 250 से 300 मरीजों की रोजाना ओपीडी होती है। जिनके लिये सिर्फ एक डाक्टर है। दूसरा डॉक्टर लंबे अरसे से छुट्टी पर हैं। यहां प्रसव का काम स्टाफ नर्स कराती है क्योंकि पोस्टिंग के बावजूद कोई महिला डॉक्टर है।
जांच की व्यवस्था नहींं
छोटी-छोटी जांचों के लिए भी मरीजों को अस्पताल के बाहर जाना पड़ता है। ऑपरेशन थिएटर तो बना है, लेकिन इसमें ऑपरेशन नहीं होता। इसके पीछे तर्क दिया जाता है कि यहंा कोई सर्जन नहीं है। इसी तरह यहां न तो एक्सरे की सुविधा है और न ही अल्ट्रा साउंड की कोई व्यवस्था।
अस्पताल के प्रभारी डॉ. एनके सिंह के अनुसार यहां स्टाफ की कमी है। यहंा दो डॉक्टरों की तैनाती है, लेकिन एक डॉक्टर लंबे समय से अवकाश पर चल रहे हैं। अस्पताल में जो दवाएं उपलब्ध है वह मरीजों को दी जाती हैं। वहीं, गाजीपुर के सीएमओ, डॉ. जीसी मौर्या कहते हैं कि वे नये आये हैं इसलिये उन्हें पूरी जानकारी नहीं है कि बारचवर स्थित अस्पताल सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र है या प्राथमिक।
‘‘अस्पताल में व्याप्त खामियों की शिकायत बाराचवर के लोगों ने मुझसे की है। इस क्षेत्र का सांसद होने के नाते हमने इस बावत उत्तर प्रदेश शासन को लिखा है। यह सारी समस्याएं पूर्व सरकारों की देन है। उम्मीद है खामियों को जल्द दूर कर लिया जाएगा।’’
भारत सिंह, सांसद
50 पीएचसी में से 42 चिकित्सकविहीन
गोंडा जिले की 34 लाख आबादी के लिए 66 अस्पताल हैं लेकिन डाक्टर सिर्फ 60 में हैं। यहां की 50 पीएचसी (प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र) में से 42 ऐसी हैं, जहां कोई डाक्टर ही नहीं है। 16 सीएचसी में अधिकांश में मानक से दोगुने पद खाली चल रहे हैं। नियमानुसार सीएचसी पर कम से कम 8 डक्टर होने चाहिए। जिले के सीएचसी अथवा पीएचसी पर आक्सीजन का भी इंतजाम नहीं है।
शासन से जिले में डाक्टरों के कुल 172 पद सृजित हैं। जिले में सीएचसी हलारमऊ में एक, परसपुर, बभनजोत, नवाबगंज और वजीरगंज में दो-दो, तरबगंज, इटियाथोक, काजीदेवर, मसकनवा में 3-3 डॉक्टर हैं। सिर्फ करनैलगंज सीएचसी में 6 डाक्टर तैनात हैं। वहीं प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बालपुर, कंजेमऊ, खरगूपुर, मुंडेरवामाफी, बैजपुर, वीरपुर, पिपरी, सोनौली मोहम्मदपुर में एक-एक एमबीबीएस डाक्टर तैनात हैं। इसमें से बैजपुर में तैनात डाक्टर टीपी जायसवाल जिला अस्पताल से सम्बद् हैं।
नगरीय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र सिविल लाइन पर तैनात डक्टर के पास दो अस्पताल का प्रभार है। ऐसे में तीन दिन वह यहां तथा तीन दिन बरियारपुरवा में बैठते हैं। यहां पीएचसी पर मात्र दो बेड ही हैं। यह हाल तब है जब यहां पर रोजाना करीब पांच महिलाएं भर्ती कराई जा रही हैं। ऐसे में टेबल को बेड बना दिया जाता है। रेडियंट वार्मर स्टाल न होने से बच्चों के सेहत की निगरानी के लिए महिला अस्पताल भेजा जाता है।
प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र बालपुर में मात्र एक डाक्टर प्रेम दयाल की तैनाती है। प्रभारी चिकित्साधिकारी प्रेम दयाल बताते हैं कि यहां औसतन 100 मरीज प्रतिदिन आते हैं।
सरकारी अस्पताल खुद बीमार
जिला अस्पताल हो या सीएचसी-पीएचसी, सभी बदहाल है। कहीं विशेषज्ञ डॉक्टर नही है तो कहीं स्वास्थ्य सुविधाओं का टोटा है। कई सीएचसी और पीएचसी देखकर तो ऐसा लगता है की खेत खलिहानों के बीच बना दिये गये हैं। आलम यह है कि मरीज अब यहां आने से भी गुरेज करने लगे हैं। कई जगह बेड नहीं है, कई जगह बेड है तो उनपर चादर नहीं है और जहंा चादर है वहां डॉक्टर नहीं है। कई जगह तो तबेला बना हुआ है। एक जगह तो भेड़ बकरियां बंधी दिखायी देती हैं। जिले के तीन सौ से अधिक पीएचसी-सीएचसी की हालत तो और भी बुरी है।
भावनपुर ब्लॉक के जई गांव स्थित पीएचसी तो स्टाफ के अभाव में आये दिन बंद रहता है। पूर्व प्रधान राजेश के अनुसार इसका होना या ना होना एक बराबर है। इसी तरह मसूरी,इंचौली,खजूरी स्थित पीएचसी-सीएचसी में स्टाफ के दर्शन दुर्लभ बात हैं। कमोवेश यही हालत मेरठ मंडल के अन्य जनपदों की भी है। पड़ोस के जौहड़ी उपकेन्द्र और पिचौकरा स्वास्थ्य उपकेन्द्र की हालत तो ऐसी है कि यह पता लगाना मुश्किल है कि यह स्वास्थ्य केन्द्र है या पशु केन्द्र है।
जिले में 100 से ज्यादा चिकित्सकों की कमी है। मेडिकल कॉलेज अस्पताल में मानक से 70 चिकित्सक कम हैं,जबकि जिला अस्पताल में मानक से 25 चिकित्सक कम हैं। इसी तरह सीएचसी और पीएचसी पर भी 20 चिकित्सकों की कमी है। जिला सरकारी अस्पताल में गुर्दा और न्यूरो का एक भी विशेषज्ञ नहीं है,जबकि कुल 27 विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी है।
9 चिकित्साधिकारियों के पद रिक्त चल रहे हैं। मेरठ के मेडिकल अस्पताल की बात करें तो यहां ओपीडी में 3000 मरीज आते हैं। करीब 60 मरीज यहां रोजाना भर्ती होते हैं। जबकि 50 मरीजों के रोजाना ऑपरेशन किये जाते हैं। हालत यह है कि कुछ गंभीर बीमारियों का उपचार करने वाली मशीनें काफी दिनों से खराब पड़ी हैं। मेडिकल अस्पताल में कार्डियोलॉजिस्ट, एन्ड्रोक्रोनोलॉजी बाल रोग, यूरोलॉजिस्ट नहीं हैं। मेडिकल कॉलेज प्रशासन के अनुसार यहां 43 चिकित्सकों और शिक्षकों की कमी है। कॉलेज की कार्यवाहक प्रधानाचार्य डॉ कीर्ति दूबे के अनुसार यह अकेले मेरठ की नहीं पूरे प्रदेश की समस्या है। जिला अस्पताल के प्रमुख अधीक्षक पीके बंसल कहते हैं, डेढ़ करोड़ का बजट हमें हर साल मिलता है। जबकि मरीजों की संख्या हर साल 10-15 फीसदी बढ़ रही है। लेकिन बजट ज्यों का त्यों है। बंसल कहते हैं कि बजट की कमी से दवाइयां उधार लेनी पड़ती हैं।
जिला सरकारी अस्पताल और मेडिकल कॉलेज में आईसीयू में गंभीर मरीजों के लिए 50 बेड की व्यवस्था है। आंकड़ों के अनुसार दोनों जगह 100 सिलेंडरों की खपत होती है। जबकि स्टाक में अस्पताल में 150 सिलेंडर रहते हैं। लेकिन आपात स्थिति का सामना करने के लिए कोई योजना नहीं है। मेडिकल अस्पातल में ऑक्सीजन के दो प्लांट हैं जिनके अलार्म खराब पड़े हैं। यानी अगर ऑक्सीजन खत्म हो गई तो यह अलार्म बजेंगे नहीं।
सिर्फ रेफरल केंद्र बन कर रह गये सीएचसी-पीएचसी
गोरखपुर में कहने को 18 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और 13 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं। वहीं सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों से ही 58 न्यू पीएचसी को भी संबंद्घ किया गया है। लेकिन ये अस्पताल सिर्फ रेफरल बन कर रह गए हैं। पिपराइच, सहजनवां और कैम्पियरगंज के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की हालत कुछ हद तक ठीक है लेकिन ये भी प्रसव और डायरिया के मरीजों को भर्ती करने तक ही सिमटे हैं।
तीनों सीएचसी नेशनल हाईवे पर स्थित हैं इस लिहाज से भी काफी अहम हैं। तीनों केंद्र दुर्घटना के घायल लोगों को सिर्फ रेफर करते हैं। घायलों की मरहम-पटटी तक यहां नहीं की जाती। जिले के सीएचसी और पीएचसी पर चिकित्सकों की भी जबरदस्त कमी है। कागजों में देखें तो सिर्फ 79 चिकित्सकों की ही कमी है। लेकिन हकीकत यह है कि जिनकी तैनाती है, उनमें से भी आधे अनुपस्थित ही रहते हैं। सीएचसी पर 30-30 बेड भी हैं, ताकि मरीजों को भर्ती किया जा सके। लेकिन प्रसव और डायरिया आदि के कुछ मामलों को छोड़ दें तो मरीज भर्ती भी नहीं होना चाहते और चिकित्सक भी उन्हें प्राइवेट या फिर जिला अस्पतालों में रेफर करने को लेकर कोई कसर नहीं छोड़ते। सभी अस्पतालों में दिन में तो चिकित्सक रहते हैं लेकिन दोपहर बाद ही लौट आते हैं।
गम्भीर मरीजों को भी रात में आयुष चिकित्सक के भरोसे छोड़ दिया जाता है। सीएचसी और पीएचसी पर ऑक्सीजन की खपत है ही नहीं क्योंकि किसी भी सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र पर वेंटिलेटर की सुविधा नहीं है। अन्य मरीजो के लिए भी ऑक्सीजन सिलेंडर नहीं रखे जाते हैं।
यहां तक कि जिला महिला अस्पताल में भी रोजाना सिर्फ एक सिलेंडर की जरूरत बतायी जाती है व पुरुष अस्पताल में तीन जंबो सिलेंडर की जरूरत बतायी जाती है। सभी सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर इंसेफेलाइटिस मरीजों को इलाज देने का दावा सरकार करती है लेकिन 18 सीएचसी में से आधे में बच्चों के डॉक्टर हैं ही नहीं।
स्वास्थ्य केंद्रों पर ऑक्सीजन है ही नहीं
जिले में 22 सीएचसी, 7 पीएचसी व 69 अतिरिक्त स्वास्थ्य केन्द्र हैं। इन स्वास्थ्य केन्द्रों पर चिकित्सकों के सृजित 302 पदों के सापेक्ष 127 चिकित्सक ही तैनात हैं। मण्डलीय जिला चिकित्सालय में चिकित्सकों के 55 सृजित पदों के सापेक्ष 30 चिकित्सक ही तैनात हैं।
राहुल सांकृत्यायन जिला महिला चिकित्सालय में चिकित्सकों के 13 पदों के सापेक्ष 11 ही तैनात हैं। 100 बेडेड संयुक्त जिला चिकित्सालय अतरौलिया में चिकित्सकों के 34 पदों के सापेक्ष महज 12 ही तैनात हैं। यही हाल फार्मासिस्ट, नॄसग सहित अन्य चिकित्सकीय कॢमयों का है। चिकित्सकीय कॢमयों की कमी का हाल यह है कि 40 फीसदी भी कर्मचारी नहीं हैं। एक चिकित्साधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि सरकार कोई भी हो, वह लोग बहलाने के लिए अपना कागजी बयान यही देंगे कि सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा है। जबकि हकीकत यह है कि इतनी बड़ी संख्या में डॉक्टर व स्टाफ की कमी के कारण हम कुछ भी बेहतर नहीं कर सकते हैं।
आक्सीजन की स्थिति देखी जाय तो जिले के किसी भी स्वास्थ्य केन्द्र पर इसकी व्यवस्था नहीं है। जिला अस्पताल व जिला महिला चिकित्सालय में आक्सीजन की व्यवस्था जरूर है मगर यहां पर गंभीर मरीज को देखते ही तत्काल उन्हें रेफर कर दिया जाता है। इन हालातों के बावजूद जिले के स्वास्थ्य केन्द्रों पर प्रतिदिन करीब 15 हजार मरीज देखे जाते हैं और इनमें से एक फीसदी मरीजों को रेफर किया जाता है। बाकी को बाहर से होने वाली लम्बी-चौड़ी जांच व कमीशन वाली दवायें लिखकर लूटा जाता है।