सोनभद्र: जाते-जाते बहुत कुछ सिखा गया 2020, सरकारी स्कूलों में भी हुआ बड़ा बदलाव
इससे इनकार नहीं की शिक्षा जगत में विद्यालयों के बन्द होने से पढ़ाई और परीक्षाएं प्रभावित हुई और छात्रों के साथ उनके अभिभावकों को मानसिक और आर्थिक संकटो से गुजरना पड़ा
सोनभद्र: आज बीतता हुआ साल 2020 भले हर मामलों में दुःखद और कष्टकारी रहा हो किंतु कई मामलों में कुछ सीख और सुखद वातावरण बनाने का रास्ता भी सीखाता जा रहा है।
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विद्यालयों का वह स्वरूप बना डाला जो अच्छे से अच्छे निजी विद्यालयों ने नही सोचा होगा
इससे इनकार नहीं की शिक्षा जगत में विद्यालयों के बन्द होने से पढ़ाई और परीक्षाएं प्रभावित हुई और छात्रों के साथ उनके अभिभावकों को मानसिक और आर्थिक संकटो से गुजरना पड़ा, लेकिन यह भी सच है कि इसी संकटकाल ने मुहल्ला स्कूल और ऑनलाइन शिक्षा का एक नया मार्ग भी प्रशस्त किया ।
सोनभद्र जैसे भौगोलिक दुरूहता और पिछड़े अंचलो में तो करोना काल के संकटपूर्ण दौर में स्कूल कायाकल्प जैसी योजना आज सरकारी स्कूल जैसे शब्द का मिथक तोड़ने में सफल हुई और विद्यालयों का वह स्वरूप बना डाला जो अच्छे से अच्छे निजी विद्यालयों ने नही सोचा होगा।
सरकारी स्कूल आज पूरी तरह अपना स्वरूप बदल चुकी है
सरकारी स्कूल के नाम पर जेहन में टाट पट्टी और टूटे फूटे भवन की तस्वीर आज पूरी तरह अपना स्वरूप बदल चुकी है । पैसा भले जिला प्रशासन ने खर्च किया हो किंतु विद्यालय को उसका शिक्षाके मंदिर के रूप में स्वरूप देने का काम अध्यापकों ने किया । विद्यालयों में शौचालय, बिजली, पानी , बाग , हरियाली बेंच टेबल जैसी सुविधाओ के साथ एक स्वस्थ्य वातावरण देने में जुटे अध्यापकों का मानना है कि हर अध्यापक ने इसे अपना काम समझकर पूरी तन्मयता और लगन से किया ।
प्रथमिक विद्यालय विशरेखी की प्रधानाध्यापिका कौशर जंहा सिद्दकी बताती है कि अब उनका सपना पूरा हुआ । सिद्दकी बताती है कि 2008 में बीटीसी करने के बाद यहाँ जॉइन किया और हालात को सुधारने की काफी कोशिश की, किंतु कभी सफल नही हो पाई । टूटे दरवाजे खिड़कियों की स्थिति के साथ बच्चो के टाट पट्टी कुछ भी तो नही था, लेकिन मौजूदा सरकार की दृढ़ इच्छा और करोना जैसी आपदा ने सबकुछ बदल देने का अवसर प्रदान किया जो निश्चित रूप में मेरे ही नही बच्चो और उनके अभिभावको के सपनो को भी साकार करती है ।
ओडहाथा विद्यालय की प्रधानाध्यापिका अमृता सिंह ने बताया
अपने विद्यालय के भवन को हवाई जहाज़ का स्वरूप देने वाली ओडहाथा विद्यालय की प्रधानाध्यापिका अमृता सिंह ने बताया कि निश्चित रूप से जाने वाला यह वर्ष सीखने के लिए बहुत कुछ देकर जा रहा है। और कुछ तो नही लेकिन आपदा में अवसर का बोध तो कराकर ही जा रहा है । उनका मानना है कि विद्यालयों के बदले इस स्वरूप को देखने बच्चे आते है और हमेशा पूछते है मैडम स्कूल जल्दी खोलो न।
बेसिक शिक्षा अधिकारी डॉ गोरखनाथ पटेल ने की अध्यापकों की तारीफ
विद्यालयों के बदलते रूप रंग और बेहतर व्यवस्था का श्रेय सरकार और जिला प्रशासन को देते हुए जिले के बेसिक शिक्षा अधिकारी डॉ गोरखनाथ पटेल अपने अध्यापकों के समर्पण और उनके लगन का भी योगदान मानते है। पटेल मानते है सरकार ने तो की आर्थिक मदद, लेकिन विद्यालयों का आकर्षित स्वरूप बनाने का श्रेय तो अध्यापकों को ही जाता है जिन्होंने इस आपदा काल मे पूरा समय देकर सँवारा।
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विद्यालयों के इस कायाकल्प को देखते हुए ग्रामीण और नगरीय अंचलो में रहने वाले अभिभावकों की प्रतिक्रिया में सरकारी शब्द जैसे छटने लगे है। आगामी वर्ष में यदि सबकुछ ठीक ठाक रहा तो निश्चित रूप से स्कूल कायाकल्प निजी विद्यालयों के लिए खतरे की घण्टी ही साबित होगी।
रिपोर्ट- सुनील तिवारी
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