पंचायत चुनाव दिलाएगा सियासी दलों के नेताओं को विधानसभा का टिकट
पंचायत चुनावों को विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल भी कहा जा रहा है। पिछले एक साल से सत्ताधारी भाजपा समेत अन्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी बसपा और कांग्रेस अपनी जमीन बनाने में जुटे हुए हैं।
लखनऊ: पंचायत चुनाव का बिगुल बजने के बाद प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में नेताओं-विधायकों की दिलों की धड़कनों को बढ़ाने का काम किया है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण प्रदेश में जल्द होने वाले विधानसभा चुनाव हैं। पंचायत चुनाव के परिणाम ही इन नेताओं-विधायकों के टिकट का मुख्य आधार बनेंगे। यदि पंचायत चुनाव में ऐसे किसी विधायक को उसके क्षेत्र में सफलता नहीं मिलती है तो उसका टिकट कटना तय माना जा रहा है।
पंचायत चुनावों को विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल भी कहा जा रहा है। पिछले एक साल से सत्ताधारी भाजपा समेत अन्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी बसपा और कांग्रेस अपनी जमीन बनाने में जुटे हुए हैं। भाजपा ने पंचायत चुनाव के मद्देनजर गांवों और कस्बों में विकास को केन्द्र बनाया हुआ है। हांलाकि इस चुनाव में किसी भी दल का सिम्बल नहीं होता है पर भाजपा समेत अन्य दलों ने अपनी पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार को बनाए जाने की घोषणा कर रखी है।
अधिकृत उम्मीदवारों की जीत हार से पार्टी का जनाधार तो पता चलेगा ही साथ ही सम्बन्धित क्षेत्र के विधायक की लोकप्रियता का भी अंदाजा लगाया जा सकेगा। बीडीसी और प्रधान पदों के अलावा पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी किस दल को मिलती है। यह भी इस चुनाव से तय होगा। इसके बाद उस क्षेत्र के विधायक को दोबारा टिकट देकर विधानसभा भेजने का पारितोषिक मिल सकेगा।
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3000 से अधिक सीटों पर ही प्रत्याशी उतारने की तैयारी में भाजपा
भाजपा ने फिलहाल जिला पंचायत सदस्य के 3000 से अधिक सीटों पर ही प्रत्याशी उतारने की तैयारी की है। ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी मजबूत पकड़ मानने वाली समाजवादी पार्टी के लिए भी यह बड़ी परीक्षा है। गत त्रिस्तरीय पंचायत सपा शासनकाल में होने के कारण प्रदेश में अधिकतर पंचायतों पर इस पार्टी के समर्थकों का कब्जा था। इस बार हालात बदले है परंतु सपा वर्चस्व बचाए रखने के लिए पूरी ताकत से मैदान में है। उधर बसपा भी पंचायत चुनावों को लेकर बेहद फिक्रमंद है।
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बीएसपी ने प्रत्याशी चयन में सोशल इंजीनियरिंग का भी रखा ध्यान
बहुजन समाज पार्टी ने जिलाध्यक्षों के साथ मंडल प्रभारियों को जिला पंचायत चुनाव के लिए संभावित प्रत्याशियों की सूची को अंतिम रूप देने का काम पूरा कर लिया है। मिशन 2022 को ध्यान में रखते हुए प्रत्याशी चयन में सोशल इंजीनियरिंग का भी ध्यान रखा गया है। वहीं पिछले तीन दषक से सत्ता से दूर और अपनी पहचान खोती जा रही कांग्रेस के लिए भी पंचायत चुनाव विधानसभा चुनाव के पहले गांव-देहातों में अपनी पकड़ बढाने का यह बढ़िया मौका होगा।
रिपोर्ट: श्रीधर अग्निहोत्री