Panchadashnam Agni Akhara: सिर्फ ब्राह्मण को ही मिलती है श्रीपंचाग्नि अखाड़े में दीक्षा, जानिए इस अखाड़े से जुड़े उद्देश्य और परंपराओं के बारे में
Panchadashnam Agni Akhara: अखाड़े में साधुओं को शारीरिक श्रम और अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा दी जाती है। यह अखाड़ा सनातन परंपरा और शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए काम करता है।
Panchadashnam Agni Akhara : 20 फीट ऊंची लहराती धर्म ध्वजा के साथ हर-हर महादेव के जयघोष के बीच फूलमाला से लदे अचार्य महामंडलेश्वरों के रथ पीछे साधु संतों का लाव-लश्कर शाही अंदाज में हाथी घोड़ों, ऊंट, बग्घियों और आदिकालीन संस्कृति से सुसज्जित रथों पर सवार अग्नि अखाड़े की पेशवाई जिसमें इस अखाड़ा की आराध्य मां गायत्री की चांदी की पालकी सुगंधित फूलों से सुसज्जित रहती है। कुंभ स्नान के दौरान श्री पंच अग्नि अखाड़े की पेशवाई का वैभव देखते ही बनता है। इस दौरान किन्नरों और नागा साधुओं के करतबों को देखने के लिए सड़कों पर श्रद्धालुओं और विदेशी दर्शकों की असंख्य भीड़ उमड़ती है। माना जाता है कि सैव सम्प्रदाय से जुड़े श्रीपंचाग्नि अखाड़ा चतुर्नाम्ना ब्रह्मचारियों का अखाड़ा है। इस पीठ की आराध्या भगवती गायत्री हैं। इस अखाड़े की जो आचार्य गादी है, वह नर्मदा के उद्गम स्थल अमरकंटक में मार्कंडेय आश्रम में स्थित है जो श्रीमार्कंडेय ऋषि की तपस्थली है। आनंद, स्वरूप, चैतन्य और प्रकाश नामक चार ब्रह्मचारी इन चार मठों में स्वरूप नाम का ब्रह्मचारी द्वारिका का, आनंद नाम का ब्रह्मचारी ज्योतिर्मठ का, चैतन्य नाम का ब्रह्मचारी श्रृंगेरीमठ, प्रकाश नाम का ब्रह्मचारी गोवर्धन मठ के मठाधीश होते हैं।
श्रीपंचाग्नि अखाड़े की स्थापना और इतिहास
श्रीपंचाग्नि अखाड़े की स्थापना विक्रम संवत् 1992 अषाढ़ शुक्ला एकादशी सन् 1136 में हुई। इनकी इष्ट देव गायत्री हैं और इनका प्रधान केंद्र काशी है। इसकी स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी। कार्य- सनातन परंपरा का प्रचार
पंच अग्नि अखाड़ा देश में सनातन परंपरा और शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न प्रांतों में स्कूल और कॉलेज का निर्माण करा रहा है। अखाड़े में सिर्फ ब्राह्मण बच्चों को ही दीक्षा दी जाती है, साथ में इसमें रहने वाले साधु पूर्णता ब्रह्मचारी होते हैं। आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित परंपरा के अधीन अखाड़े का संचालन होता है।
इस अखाड़े के ब्रह्मचारियों को चर्तुनाम्ना कहा जाता है। अखाड़े का संचालन 28 श्री महंत एवं 16 सदस्यों की टीम करती है। वर्तमान में इस अखाड़े को श्री पंच अग्नि अखाड़ा के नाम से भी जाना जाता है।
श्रीपंचाग्नि अखाड़े का उद्देश्य
श्रीपंचाग्नि अखाड़े की स्थापना के पीछे का मकसद धर्म की रक्षा करना और लोगों को धर्म के रास्ते पर चलना सिखाना था।
अखाड़े के सचिव श्रीमहंत स्वामी कैलाशानंद हैं। अखाड़े के सभापति स्वामी गोपालानंद ’बापूजी’ हैं। इस अखाड़े में लगभग चार सौ ब्रह्मचारी संत इसके सदस्य हैं।
इस अखाड़े में एक लाख विद्यार्थी भी शिक्षा प्राप्त करते हैं।
अखाड़े में साधुओं को शारीरिक श्रम और अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा दी जाती है। यह अखाड़ा सनातन परंपरा और शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए काम करता है। यह अखाड़ा आदि शंकराचार्य द्वारा गढ़ी गईं परंपरा के मुताबिक चलता है और इस परंपरा को आगे बढ़ाता है। श्रीपंचाग्नि अखाड़े की सबसे खास बात है कि यहां सिर्फ़ ब्राह्मण बच्चों को ही दीक्षा दी जाती है। साथ ही अखाड़े में रहने वाले साधु पूर्ण रूप से ब्रह्मचारी होते हैं।श्रीपंचाग्नि अखाड़े की चोटी पर सदैव धर्म ध्वजा लहराती है।
अखाड़ों में शामिल होने और दीक्षा लेने की प्रक्रिया और नियम बहुत सख्त हैं। हर साल कुंभ और अर्धकुंभ के मेले में अखाड़े सदैव शिरकत करते दिखाई देते हैं। इनके सदस्यों में चारों पीठ के शंकराचार्य, ब्रह्मचारी, साधु व महामंडलेश्वर होते हैं। इसका मुख्यालय वाराणसी में है। इसकी चार शाखाएं- हरिद्वार, इलाहाबाद, उज्जैन, नासिक, अहमदाबाद, जूनागढ़ में है। परंपरानुसार इनकी शाखाएं इलाहाबाद, हरिद्वार, उज्जैन व त्र्यंबकेश्वर में हैं। इस अखाड़े के महंत मुक्तानंद के प्रयास से अखाड़े की शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिए नेपाल और राजस्थान के कई गावों को गोद भी लिया गया है। साथ ही श्रीपंचाग्नि अखाड़े द्वारा एक दर्जन स्कूल और कॉलेज भी खोले गए हैं। यह भी कहा जाता है कि श्रीपंचाग्नि अखाड़ा चतुर्नाम्ना ब्रह्मचारियों का अखाड़ा है।
कुंभ पर्व के अवसर पर सभी अखाड़ों के पदाधिकारियों की उपस्थिति में अग्निपीठ की आचार्य गादी पर ब्रह्मऋषि श्री रामकृष्णानंदजी अभिषिक्त हुए, तब से सारे देश में पीठ सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार का कार्य कर रही है।
सबसे अलग हैं पंचअग्नि अखाड़े की परंपरा
शैव संप्रदाय के जूना, आह्वान सहित अन्य अखाड़ों की अपेक्षा श्री पंचअग्नि अखाड़े की परंपरा बिलकुल अलग है। शैव संप्रदाय का होते हुए भी इस अखाड़े की परमपराएं नागा सन्यासियों से बिल्कुल अलग हैं। इस अखाड़े की सबसे अलग विशेषता ये है कि यहां नागा नहीं ब्रह्मचारी संत बनाए जाते हैं। दूसरे इस अखाड़े के ब्रह्मचारी संत अपने शरीर पर भस्म नहीं लगाते यानी धूनी नहीं रमाते, न ही कोई मादक पदार्थ का सेवन करते हैं। माता गायत्री को अपना आराध्य मानने वाले इस अखाड़े में आनंद, स्वरूप, चैतन्य और प्रकाश नामक चार ब्रह्मचारी इन मठों के क्रमशः मठाधीश होते हैं।अग्नि अखाड़े में ब्रह्मचारी संतों की संख्या सीमित है। यहां हर कोई संत नहीं हो सकता। सदस्य का ब्राह्मण होना आवश्यक है। ब्रह्मचारी बनाने की एक लंबी प्रक्रिया है। जिसके तहत संतों को अपने सिर पर सिखा रखना जरूरी होता है। साथ ही शरीर पर जनेऊ धारण करने की विधिवत परम्परा है।इस अखाड़े के ब्रह्मचारी संत की पहचान सिर पर सिखा और बदन पर जनेऊ से होती है। ब्रह्मचारी को गायत्री मंत्र की दीक्षा की जाती है। खास यह कि इस अखाड़े के ज्यादातर ब्रह्मचारी संत भंडारा या घरों में तैयार भोजन ग्रहण नहीं करते। ब्रह्मचारी संत स्वयं भोजन तैयार कर उसे ग्रहण करते हैं। ब्रह्मचारी संत रोजाना 16 माला गायत्री जप करते हैं।