आज भी जिंदा है सेवा का जज्बा, ये हैं हमारे लखनऊ की 'लेडी विद द लैंप'

Update: 2016-05-12 06:13 GMT

SANDHYA YADAV

लखनऊः मरीज का नाम सुनते ही वो ऐसे दौड़ पड़ती हैं, जैसे किसी मां को उसका बेटा बुला रहा हो। सफेद रंग के कपड़े पहनना उनका शौक नहीं है। यह तो उनके लिए सम्मान की बात है। उन्हें अपने मरीजों की कोई बात बुरी नहीं लगती है। आंखों में मरीजों के लिए प्यार और दिल में सेवाभाव रखने वाली नर्सें आम लोगों के लिए केवल नर्स होती हैं। पर सच्चाई तो उन मरीजों से पूछिए, जिनकी नर्स एक मां, बहन, बेटी की तरह सेवा करती है।

जब भी हाॅस्पिटल जाने की बात आती है, तो पहले ही मन में तरह-तरह की बातें आने लगती हैं। कभी-कभी तो हाॅस्पिटल पहुंचकर डाॅक्टर से पहले वहां मौजूद नर्सेस से मिलते हैं। जानते हैं क्यों? वो इसलिए क्योंकि जो बातें और डर हम डाॅक्टर से शेयर नहीं कर पाते, वो हम नर्सेस से कर लेते हैं। उनके प्यार भरे शब्द एक मरीज के लिए जादुई दवा का काम करते हैं।

इस फील्ड में लड़कियों के लिए आना आसान नहीं होता है। लेकिन जिसके दिल में इंसानियत के लिए सेवा और प्यार भरा हो, उनके लिए कोई कठिन काम नहीं है। परिवार को मनाकर और समाज की सोंच को ताख पर रखकर जब कोई नर्स अपने काम पर निकलती है, तो इंसानियत भी उसे सलाम करती है।

फ्लोरेंस नाइटिंगेल के जन्मदिन को पूरी दुनिया में अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस के रूप में मनाया जाता है। 12 मई 1974 में जन्मी फ्लोरेंस नाइटिंगेल ने अपनी पूरी जिंदगी मरीजों की सेवा में लगा दी। उनके बारे में तो कहा जाता है कि अगर आधी रात में भी उन्हें पता चल जाता था कि किसी व्यक्ति की तबियत खराब है, तो वह लालटेन लेकर उसकी सेवा और इलाज करने के लिए निकल जाती थी।

अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस के इस मौके पर newztrack.com ने लखनऊ में काम करने वाली नर्सेस से मिलकर उनके सेवाभाव को सामने लाने की कोशिश की। उनसे बात करने के बाद पता चला कि ये नर्स केवल नर्स नहीं है बल्कि आज के समय की लेडी विद द लैंप हैं। लखनऊ के केजीएमयू, एरा हाॅस्पिटल और बी होप हाॅस्पिटल में काम करने वाली नर्सों के सेवाभाव को न सिर्फ डाॅक्टर बल्कि मरीज भी सलाम करते हैं। इन अस्पतालों में काम करने वाली इन महिलाओं को परिवार से भी पूरा सपोर्ट मिलता है।

आइए मिलवाते हैं आपको ऐसी ही कुछ नर्सेस से-

घड़ी देखकर नहीं करते हैं काम: कविता कश्‍यप

लखनऊ के केजीएमयू हाॅस्पिटल में वाॅर्ड ब्वाॅय के तौर पर काम करने वाली कविता कश्‍यप का कहना है कि वे तीन साल से यहां काम कर रही हैं। इस फील्ड में आने का मकसद सिर्फ नौकरी करना नहीं है। वह बचपन से ही लोगों की सेवा करना चाहती थी। इस वजह से उन्होंने यह फील्ड चुनी। वह कहती हैं कि कई बार डाॅक्टर के समय पर न पहुंचने की वजह से वह ही मरीजों की छोटी मोटी मदद कर देती हैं। मरीजों की देखभाल में कभी कभी उन्हें उनके तीखे और अपमानजनक बिहेवियर का सामना करना पड़ता है। पर वे बुरा नहीं मानती हैं।

कविता कश्‍यप, केजीएमयू

नर्स ही नहीं एक अच्छी सिस्टर भी बनकर दिखाते हैंः वर्तिका मौर्या

दुबग्गा स्थित एरा हाॅस्पिटल में काम करने वाली वर्तिका मौर्या अभी मात्र 23 साल की हैं और उन्होंने अभी से दूसरों की सेवा करने का मन बना लिया है। वे अपनी लाइफ में फ्लोरेंस नाइटिंगेल को अपनी प्रेरणा मानती हैं। वह कहती हैं कि मरीज उन्हें सिस्टर कहकर बुलाते हैं। तो वे सिर्फ नाम की ही सिस्टर नहीं बल्कि असली सिस्टर की तरह मरीजों की सेवा करती हैं। वर्तिका बताती हैं कि कई बार मरीज इलाज के समय उन्हें उल्टा-सीधा बोलते हैं पर वो मुस्कुराकर भुला देती हैं। वह बस मरीजों की सेवा करना जानती हैं।

वर्तिका के साथ काम करने वाली शालिनी और सहाना भी पूरे दिल से मरीजों की सेवा करती हैं।

सहाना, शालिनी और वर्तिका , एरा हॉस्पिटल

मरीजों की दुआ में शामिल है मेेरी खुशी: नसीम बानो

मोहान रोड स्थित बी होप हाॅस्पिटल में काम करने वाली नसीम बानो मरीजों की सेवा को अपनी सबसे बड़ी दौलत मानती हैं। उनका कहना है कि जब मरीज हाॅस्पिअल से वापस जाते समय उन्हें दुआएं देते हैं, तो उन्हें अपने काम पर गर्व महसूस होता है। वह कहती हैं कि आजकल कुछ लो इस फील्ड में आने से डरते हैं पर सच्चाई तो यह है कि दूसरों की सेवा में जो खुशी मिलती है, वह कहीं और नहीं।

नसीम बानो, बी होप हॉ‍स्पिटल

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