हाथों से नहीं पैरों से लिखी तकदीर ! कई सम्मान से नवाजी गई कामिनी

Update: 2016-03-07 11:06 GMT

लखनऊ: 'मत कर यकीन हाथों की लकीरों पर, क्योंकि तकदीर तो उनकी भी होती है जिनके हाथ नहीं होते', अगर लखनऊ की कामिनी श्रीवास्तव के लिए ये शेर कहा जाए तो कुछ गलत नहीं होगा। अपने हाथों से अपनी तकदीर बनाने वालों के बारे में तो बहुत सुना होगा,लेकिन कामिनी ने हाथों से नही पैरों से अपनी तकदीर लिखी है। कहते है ना 'जहां चाह होती है वही राह मिलती है।'

फाइल फोटो

बुलंद हौसले हो तो नामुमकिन को भी मुमकिन बनाने का जुनून होता है और ऐसी ही जिद और जुनून ने कामिनी की कमजोरी को भी उसकी कामयाबी के आड़े नहीं आने दिया। आज वे लखनऊ के काकोरी में ग्राम्य विकास परियोजना अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं। साथ ही उन महिलाओं के लिए एक मिसाल बनी हैं जो ये समझती हैं कि महिलाएं जीवन में चूल्हा चक्की से आगे नहीं बढ़ सकती हैं।

कैसे हुआ था हादसा

53 वर्षीय कामिनी जब मात्र चार वर्ष की थीं तब अपने बड़े भाई के साथ रेलवे लाइन पार करते समय वो रेल इंजन से टकरा गईं, इस दुर्घटना में वह अपने दोनों हांथ और एक पैर की उंगलिया गंवा बैठी थी। दो साल तक चले लंबे इलाज के बाद उनकी जान तो बच गयी, लेकिन दोनों हाथ खोने से उसका जीवन मानों रुक सा गया। कुछ करने की ललक और दृढ इच्छाशक्ति के चलते वे कभी हार नहीं मानी।

उस मुश्किल घड़ी से पिता उन्हें निकला,और जीने का जज्बा भरते हुए महज 6साल की उम्र में पिता ने उनके पैरों में पेन पकड़ा दिया। लगा। इसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। फैजाबाद विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र विषयों में डबल एमए किया। 1982 में प्रतियोगी परीक्षा पास कर वे बाल विकास परियोजना अधिकारी के पद पर नियुक्त हुई। वे पैरों से ही लिखकर सारा काम निपटाती हैं। लैपटॉप पैरों से तेज रफ्तार में काम करते देख आप हतप्रभ हो जाएंगे।

कई पुरस्कारों से सम्मानित

वे न खुद को आत्मनिर्भर बनाई, बल्कि नौकरी करते हुए समाज सेवा से भी जुड़ी हुई है। उन्होंने गरीब बच्चों के विकास के लिए काफी काम किया, इसके लिए उन्हें कई बार सम्मानित भी किया गया। उन्हें 1994 में तत्कालीन राष्ट्रपति द्वारा वेद वेदांग पुरस्कार दिया गया। 1997 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल द्वारा कामिनी को राज्य स्तर पर श्रेष्ठ दिव्यांग कर्मचारी के रूप में भी सम्मानित किया गया।

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2005 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव स्मृति चिह्न देकर उन्हें सम्मानित किया। उन्हें लिखने का भी शौक है। मर्म स्पर्शी कविताओं में इनकी प्रतिभा को देखते हुए प्रख्यात साहित्यकार लक्ष्मीकान्त वर्मा ने भी उन्हें भारत भारतीय सम्मान से सम्मानित किया था।

पति ने दी प्रेरणा

कामिनी का विवाह 1997 में आजमगढ़ के स्वतंत्र कुमार श्रीवास्तव के साथ हुआ था। स्वतंत्र बताते हैं कि उन्होंने कामिनी का एक लेख पत्रिका में पढ़ा था और उनके विचारों से वह बहुत प्रभावित हुए थे इसलिए उन्होंने खुद ही शादी का प्रस्ताव भेजा था। अपने पति के सुझाव पर कामिनी ने अपनी कविता लेखन के शौक को किताब का रूप दिया और खिलते फूल, महकता आंगन नामक किताब लिखी। जिसका लोकार्पण उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाइक ने किया। राज्यपाल ने उनकी इस किताब की बहुत प्रशंसा भी की।

Tags:    

Similar News