बुलंद हौसले हो तो नामुमकिन को भी मुमकिन बनाने का जुनून होता है और ऐसी ही जिद और जुनून ने कामिनी की कमजोरी को भी उसकी कामयाबी के आड़े नहीं आने दिया। आज वे लखनऊ के काकोरी में ग्राम्य विकास परियोजना अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं। साथ ही उन महिलाओं के लिए एक मिसाल बनी हैं जो ये समझती हैं कि महिलाएं जीवन में चूल्हा चक्की से आगे नहीं बढ़ सकती हैं।
कई पुरस्कारों से सम्मानित
वे न खुद को आत्मनिर्भर बनाई, बल्कि नौकरी करते हुए समाज सेवा से भी जुड़ी हुई है। उन्होंने गरीब बच्चों के विकास के लिए काफी काम किया, इसके लिए उन्हें कई बार सम्मानित भी किया गया। उन्हें 1994 में तत्कालीन राष्ट्रपति द्वारा वेद वेदांग पुरस्कार दिया गया। 1997 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल द्वारा कामिनी को राज्य स्तर पर श्रेष्ठ दिव्यांग कर्मचारी के रूप में भी सम्मानित किया गया।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2005 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव स्मृति चिह्न देकर उन्हें सम्मानित किया। उन्हें लिखने का भी शौक है। मर्म स्पर्शी कविताओं में इनकी प्रतिभा को देखते हुए प्रख्यात साहित्यकार लक्ष्मीकान्त वर्मा ने भी उन्हें भारत भारतीय सम्मान से सम्मानित किया था।
पति ने दी प्रेरणा
कामिनी का विवाह 1997 में आजमगढ़ के स्वतंत्र कुमार श्रीवास्तव के साथ हुआ था। स्वतंत्र बताते हैं कि उन्होंने कामिनी का एक लेख पत्रिका में पढ़ा था और उनके विचारों से वह बहुत प्रभावित हुए थे इसलिए उन्होंने खुद ही शादी का प्रस्ताव भेजा था। अपने पति के सुझाव पर कामिनी ने अपनी कविता लेखन के शौक को किताब का रूप दिया और खिलते फूल, महकता आंगन नामक किताब लिखी। जिसका लोकार्पण उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाइक ने किया। राज्यपाल ने उनकी इस किताब की बहुत प्रशंसा भी की।