पूर्णिमा श्रीवास्तव
गोरखपुर: नियमों की सख्ती, बीमा प्रीमियम और जुर्माने की रकम में बढ़ोतरी के साथ-साथ आर्थिक सुस्ती से ट्रांसपोर्टर्स काफी परेशान हैं। इस परेशानी में जीएसटी, रोड टैक्स, ओवरलोडिंग और अन्य नए आदेशों को को भी दोषी ठहराया जा रहा है। ट्रांसपोर्टरों का कहना है कि कहीं लोन की किस्त नहीं जमा होने पर ट्रकें फाइनेंस कंपनियों द्वारा सीज़ की जा रही हैं तो कहीं ट्रांसपोर्टर अपने ट्रक को औने-पौने दाम पर बेचने को मजबूर हैं।
गोरखपुर समेत पूर्वांचल के जिलों में ट्रांसपोर्ट कारोबार पर मंदी का असर साफ दिख रहा है। ट्रांसपोर्ट नगर से लेकर गीडा तक के इलाके जो गाडिय़ों की आवाजाही से गुलजार रहते थे, वहां सन्नाटा है। पिछले 8 महीने में 100 से अधिक ट्रकों को फाइनेंस कंपनियों के एजेंट रूपी गुंडे खींच रहे हैं। पिछले कुछ महीने में ट्रांसपोर्टर अपने ट्रकों को औने-पौने दाम पर बेचने को मजबूर हुए हैं।
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गोरखपुर जिले के बिछिया कैंप निवासी इन्द्रदेव ने एक फाइनेंस कंपनी से ट्रक लोन कराया था। तीन किस्त नहीं जमा कर सके। तीन लाख जुटाने के लिए इन्द्रदेव पत्नी का जेवर बेचने की तैयारी में हैं।
ट्रांसपोर्टर नितिन फाइनेंस कंपनी का करीब 3 लाख 60 हजार नहीं जमा कर सके। फाइनेंस कंपनी के वेतनभोगी गुंडों ने ट्रक को अपने कब्जे में कर लिया है। नितिन कहते हैं कि शेष बची चार ट्रकें भी बिकने के कगार पर पहुंच गई हैं।
जंगल नकहा निवासी राजेन्द्र प्रसाद की ट्रक करीब 3 लाख के बकाए में खींच ली गई। राजेन्द्र के पास सिर्फ एक ट्रक बचा है। वह कहते हैं कि पूरे परिवार की गाड़ी इसी ट्रक के भरोसे थी। अब सामूहिक आत्महत्या के सिवा कोई दूसरा विकल्प नहीं दिख रहा है।
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करीब डेढ़ सौ ट्रकों के मालिक धर्मेन्द्र सिंह का कहना है कि ट्रांसपोर्टरों की खराब स्थिति के लिए सरकारें जिम्मेदार हैं। रोड टैक्स, बीमा आदि को लेकर नए नियम लागू किये जा रहे हैं। गोरखपुर और आसपास के जिलों की 1000 से अधिक ट्रकों का पहिया नेपाल के भरोसे घूमता था। नेपाल सरकार द्वारा लाए जा रहे नियमों के कारण मुश्किल बढ़ गई है। कभी माओवादी भारतीय ट्रकों पर हमला बोल रहे हैं तो कभी सब्जी और फल ले जाने वाले ट्रकों को जांच के नाम पर परेशान किया जा रहा है। सैकड़ों गाडिय़ां नेपाल में सीमेंट फैक्ट्रियों के लिए क्लिंकर ले जाती थीं, अब नेपाल ने चीन के सहयोग से खुद क्लिंकर का उत्पादन शुरू कर दिया है।
यूपी ट्रक संचालक एसोसिएशन के प्रदेश महामंत्री रवीन्द्र प्रताप सिंह का कहला है कि सामान्य परिस्थितियों में एक ट्रक की महीने की किस्त 50 से 70 हजार के बीच आती है। हकीकत यह है कि इतनी रकम रोड टैक्स से लेकर टायर में ही खर्च हो जा रही है। रविन्द्र बताते हैं कि सामान्य परिस्थितियों में एक ट्रक का बीमा 65 से 75 हजार के बीच होता है। रोड टैक्स पर 41 हजार तक खर्च हो जाते हैं। नेशनल परमिट के लिए 30 हजार अलग से लगता है। फिटनेस के नाम पर आरटीओ में 3 हजार शुल्क देना होता है। साल में 75 से एक लाख रुपए रखरखाव पर खर्च हो जाते हैं। हर महीने टायर पर ही 40 हजार से अधिक खर्च होता है। आरटीओ के अफसरों की मनमानी, फाइनेंस कंपनियों का डंडा और जीएसटी की मार के बीच तमाम दिक्कतों से ट्रांसपोर्टर को जूझना पड़ता है।
ट्रांसपोर्टर अनुपम मिश्रा कहते हैं कि केन्द्रीय परिवहन मंत्री नितीन गडकरी खुद स्वीकारते हैं कि सर्वाधिक रोजगार ट्रांसपोर्ट के कारोबार से ही सृजित हो रहे हैं। छोटे वाहनों की मांग, मजदूर, ऑटो सेल्स की दुकानें इसी कारोबार पर निर्भर है। बावजूद सरकार कोई राहत देती नजर नहीं आती है।
ई-चालान को कोस रहे
ट्रांसपोर्टरों की मुसीबत को ट्रैफिक विभाग और परिवहन विभाग के ई चालान ने बढ़ा दिया है। ट्रकवालों का आरोप है कि राजस्व और टारगेट पूरा करने के फेर में अनाप शनाप चालान किए जा रहे हैं। ट्रांसपोर्टर लल्लन सिंह का कहना है कि पार्किंग में खड़ी गाडिय़ों का गलत ड्राइविंग के आरोप में चालान किया जा रहा है। पिछले एक साल में जुर्माने में 200 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। ऑनलाइन चालान में सुनवाई का मौका भी नहीं मिल रहा है।
ईएमआई की री-शेड्यूलिंग की गुहार
गाडिय़ों की किस्तें नहीं चुका पाने के बढ़ते मामलों के बीच ट्रांसपोर्टर सगठनों ने कई बैंकों और नॉन-बैंकिंग फाइनेंसिंग कंपनियों से ईएमआई की री-शेड्यूलिंग की गुहार लगाई है। ट्रांसपोर्टर कहते हैं कि हालात ऐसे ही रहे तो ट्रांसपोर्टर को सामूहिक डिफॉल्ट और व्हीकल सरेंडर पर मजबूर होना पड़ेगा। यूपी ट्रक एसोसिएशन समेत कई ट्रांसपोर्ट संगठनों वित्त मंत्री से लेकर केन्द्रीय परिवहन मंत्री को संकट से अवगत कराया है। ट्रांसपोर्टर धर्मेन्द्र सिंह का कहना है कि पिछले एक साल से कारोबारी नुकसान के चलते उनके मेंबर नियमित किस्त चुकाने की हालत में नहीं हैं। अगले तीन-चार महीने तक हालात सुधरने के कोई संकेत नहीं मिल रहे हैं। ऐसे में उनकी लोन शर्तों में बदलाव कर किस्तें आसान की जाएं वरना सामूहिक डिफॉल्ट की नौबत आ सकती है। ऐसे में वित्तीय संस्थान अगर पुरानी गाडिय़ां जब्त करते हैं तो इससे दोनों को नुकसान होगा। दरअसल, ट्रांसपोर्ट कारोबार में सर्वाधिक प्रभावित वह लोग हैं जिन्होंने निजी फाइनेंस कंपनियों से ट्रक किस्त पर ले लिया। ट्रांसपोर्टर रवीन्द्र प्रताप सिंह कहते हैं कि गोरखपुर में पिछले जनवरी महीने से अब तक 70 से अधिक ट्रक किस्त नहीं भर पाने की वजह से बिके हैं।