गांव के भीतर एक गांव बने न्यारा, रंग ला रही माटी-पानी टीम की मेहनत
इनकी मंशा गांव के अंदर एक ऐसा गांव बनाने की है जो शहरी मेहमानों के लिए खास हो। इसमें मिट्टी के घर होंगे। बैलगाड़ी, बैलों की जोड़ी, गांव के खानपान और लोक संस्कृति। एक स्कूल भी होगा। इनकी मंशा 'कम्युनिटी फार्मिंग' के जरिए उन गरीब किसानों की मदद भी करने की भी है जो पलायन कर रहे हैं।
लखनऊ। शाहजहांपुर की पुवायां तहसील का छोटा सा गांव हरदुआ बन गया है माटी-पानी का आशियाना, जहां कुछ दोस्तों की मेहनत रंग लाई और धीरे धीरे प्रगतिशील किसानों के जुड़ने का सिलसिला बन गया कारवां। इसके नायक बने डॉ. पंकज मिश्रा जो हिन्दी में पीएचडी करने के बाद पत्रकारिता की जमी जमाई नौकरी छोड़कर उतर गए अपनी मिट्टी की तलाश में और भटकते भटकते जा पहुंचे हरदुआ और शुरू कर दी रसायन रहित सब्जी अनाज की खेती। शुरू शुरू में लोगों ने इन सिरफिरों को मजाक उड़ाया। लोगों को लगता है चार दिन बाद ये ऊब कर चले जाएंगे। क्योंकि शहर के लोग खेत मिट्टी में कितने दिन रुक पाएंगे। लेकिन धरती से फूटते कल्लों से लोगों की इन पर नजर जमीं धीरे धीरे लोग इनकी मेहनत देखने आने लगे। कुछ प्रगतिशील किसानों ने जुड़ने के लिए आगे आए और संग संग चल दिये।
इसे भी पढ़ें जैविक खाद से लागत शून्य उपज पा सकते हैं किसान, होंगे खुशहाल
लेकिन ये सफर आसान नहीं था जब वह शहर से अपनी गांव की नई मंजिल पर निकले तो तमाम सवाल घुमड़ रहे थे कि गांव जा तो रहे हैं लेकिन गांव में रुकेंगे कहां, वहां पहचानेगा कौन। लेकिन दिल को मजबूत कर गांव के लिए चल दिये जहां उनकी 80 बीघा जमीन थी। अपनी जमीन के नजदीक डेरा डालकर डॉक्टर पंकज ने जैविक खेती के अपने प्रयोग की शुरुआत कर दी। इस माटी पानी नाम की परियोजना में शुरू में उनके साथ तीन युवा साथी थे और आज तमाम प्रगतिशील किसान उनसे जुड़ चुके हैं। अपने जैविक उत्पादों के लिए उन्होने नजदीक के कस्बों में बाजार बनाया। जैसे जैसे काम बढ़ा ग्राहक भी बढ़ते गए।
कुल चार साथी
शुरू में पंकज के साथ इंजीनियरिंग में स्नातक सौरव कुमार सिन्हा, दिल्ली से गुफरान फाइबरवाला और हिन्दी के प्रोफेसर सईद अयूब थे। इनका मकसद उन लोगों को गांव से जोड़ना था, जो अपने कामकाज से वक्त निकालकर एक बार फिर से गांव लौटना चाहते हैं। ऐसे लोग जो गांव और किसानी से रिश्ता रखना चाहते हैं।
इसे भी पढ़ें हौसले की उड़ान: 11 दिव्यांगों ने शुरू की जैविक खेती, इनको देख किसान भी कर रहे है रुख
इनकी मंशा गांव के अंदर एक ऐसा गांव बनाने की है जो शहरी मेहमानों के लिए खास हो। इसमें मिट्टी के घर होंगे। बैलगाड़ी, बैलों की जोड़ी, गांव के खानपान और लोक संस्कृति। एक स्कूल भी होगा। इनकी मंशा 'कम्युनिटी फार्मिंग' के जरिए उन गरीब किसानों की मदद भी करने की भी है जो पलायन कर रहे हैं।