वर्षा सिंह
रुडक़ी : फरवरी 2015 में संसद में मनरेगा पर बहस के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मनरेगा को कांग्रेस की पिछले साठ साल की विफलताओं का स्मारक बताया था। उन्होंने कहा था कि यह योजना सिर्फ गड्ढे खोदने (और फिर भरने) के लिए ही चलती रही है। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2017-18 के बजट में मनरेगा के लिए आवंटन को 10 हजार करोड़ रुपये बढ़ाने के साथ ही ऐलान किया था कि इससे तालाबों का निर्माण किया जाएगा।
मनरेगा का जिक्र इसलिए क्योंकि सरकार द्वारा चलाई जाने वाली विभिन्न निर्माण, विकास योजनाओं में फर्जी आंकड़े पेश करने के लिए इसे सबसे बड़ा उदाहरण बताया जाता रहा है। गलत मस्टर रोल और फर्जी मजदूरी के आंकड़े मनरेगा ही नहीं विभिन्न निर्माण परियोजनाओं में पेश किए जाते रहे हैं और तो और यह भी देखा गया है कि काम किया 10 फ़ीसदी बताया गया 100 फीसदी, लेकिन अब इसे रोकना 100 फ़ीसदी संभव हो गया है।
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आईआईटी रुडक़ी के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने ड्रोन में जीपीएस के जरिए वीडियो टैगिंग लगाना संभव कर सडक़, रेलवे, पुलों, नहरों जैसे काम की वास्तविक मॉनीटरिंग को संभव बना दिया है। दुनिया में यह पहली बार किया गया है और दो साल पहले इसका पेटेंट भी हासिल कर लिया गया है। इस तकनीक के इस्तेमाल से देश भर में हो रहे विकास कार्यों में काम करने वाले ठेकेदारों के लिए गलतबयानी करना अब संभव नहीं रह जाएगा। दरअसल सीमा पर निगरानी और बमबारी से लेकर शादी-जन्मदिन जैसे समारोहों में ड्रोन का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है। विकास की लाइफ़लाइन सडक़ों के निर्माण, निर्माण पूर्व सर्वे, देखरेख के लिए भी इनका इस्तेमाल किया जा रहा है लेकिन इसमें अब तक एक कमी रही है कि कौन सी सडक़ है इसे आप वीडियो में नहीं देख सकते।
आईआईटी रुडक़ी के वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रोफ़ेसर कमल जैन ने ड्रोन को भारत की निर्माण जरूरतों को देखते हुए न सिर्फ जीपीएस से कनेक्ट किया है बल्कि बनाए जा रहे वीडियो की वीडियो टैगिंग भी संभव बनाई है। वीडियो टैगिंग का अर्थ यह है कि ड्रोन से जो वीडियो बनाया जा रहा है उसे आप विंडो में दाईं ओर गूगल मैप्स में भी देख देख सकते हैं। वीडियो देखने के लिए आप यूट्यूब पर https://www.youtube.com/watch?v=Tq4XwKsiLes दर्ज करें। यह टाइम भी दर्ज करता जाता है। सामान्यत: तो यह बहुत सामान्य बात लग सकती है लेकिन सरकारी निर्माण कार्यों में यह बेहद उपयोगी साबित होने जा रहा है। अब तक सरकार ज़मीन पर किए जा रहे काम की वास्तविकता की जांच के लिए तस्वीरों के माध्यम से जियो टैगिंग को बढ़ावा दे रही है लेकिन इसमें रियल टाइम मॉनीटरिंग नहीं की जा पाती।
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डॉक्टर जैन द्वारा विकसित वीडियो टैगिंग तकनीक के माध्यम से किसी भी सडक़, नहर, रेलवे लाइन का सर्वे किया जा सकता है। वह ठीक-ठीक नक्शे में कहां पर है यह भी पता चल जाता है और इस रिकॉर्डिंग का समय भी साथ ही दर्ज होता है। डॉक्टर जैन की टीम इस समय पांच किलोमीटर तक की रेंज वाले ड्रोन इस्तेमाल कर रही है जिसमें बेहतर कैमरे लगे हैं। उन्होंने हाल ही में उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग की नहरों की वीडियो टैगिंग की है जिससे विभाग को यह पता करने में मदद मिली है कि नहरें कहां-कहां बंद हैं और कहां मरम्मत की ज़रूरत है।
डॉक्टर जैन छत्तीसगढ़ और झारखंड के लिए नेशनल लैण्ड रिकाड्र्स मार्डनाइजेेशन प्रोग्राम के सलाहकार के रूप में काम कर रहे हैं। लेकिन जिस राज्य में रहकर वह काम कर रहे हैं वहीं उनकी इस नई तकनीक को कोई तवज्जो नहीं दी गई है जबकि वीडियो टैगिंग न सिर्फ़ नए निर्माण के लिए सर्वे बल्कि निर्माण कार्यों के साथ ही आपदा के समय बेहद कारगर साबित हो सकती है। डॉक्टर जैन बताते हैं कि उन्होंने दो साल पहले जब इस तकनीक को पेटेंट करवाया था तब तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत को इस तकनीक का प्रेज़ेंटेशन भी दिया था। रावत ने इस पर विचार करने का आश्वासन भी दिया लेकिन हुआ कुछ नहीं। उन्होंने चार धाम के लिए बनने वाली ऑल वेदर रोड में भी इस तकनीक के इस्तेमाल का प्रस्ताव दिया है लेकिन इस पर भी कोई फ़ैसला नहीं हुआ है।
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नई तकनीक बहुत महंगी भी नहीं
दो साल पहले राष्ट्रीय राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने आदेश दिया था कि सभी राष्ट्रीय राजमार्गों में चल रहे काम की निगरानी राडार से की जाए। इस पर दुनिया भर की कई बड़ी कंपनियों ने राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण से संपर्क किया। राडार से निगरानी की लागत औसतन 30-35 हज़ार रुपये प्रति किलोमीटर बताई गई लेकिन डॉक्टर जैन की वीडियो टैगिंग तकनीक से यह सिर्फ़ 5,000 रुपये प्रति किलोमीटर ही बैठती है। राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण भी उनके प्रस्ताव पर विचार कर रहा।