China Dog Meat Festival: चीन में कुत्तों की शामत, फेस्टिवल हुआ शुरू, देखें Y-Factor Yogesh Mishra के साथ...
China Dog Meat Festival: चीन में कुत्तों की फिर शामत आ गई है। क्योंकि अगले दस दिन लोग जम कर कुत्ते का मांस खाने वाले हैं। वहाँ कुत्ते का मांस खाने वाला पर्व दस दिन तक चलता है। दरअसल, दक्षिण चीन में कुत्तों का मांस बहुत खाया जाता है । जगह जगह दस दिन तक चलने वाले डॉग मीट फेस्टिवल आयोजित किये जाते हैं। पशु की रक्षा के लिए काम करने वाले एक्टिविस्ट हर साल ऐसे फेस्टिवल में हजारों कुत्तों को मारे जाने से धावा बोलकर बचा लेते थे । लेकिन इस साल वे भी लाचार हैं । क्योंकि इस बार फेस्टिवल वाले शहरों को ट्रेन सेवाएं रद कर दी गई हैं।
अधिकारियों ने ट्रेनें बन्द करने का कोई कारण नहीं बताया है। फेस्टिवल शुरू होने से पहले दूर दूर से व्यापारी ट्रकों में कुत्ते भर कर यूलिन पहुंचाते हैं। एक्टिविस्ट इन ट्रकों को रास्ते में रोक कर कुत्तों को बचा लेते थे। बचाये गए कुत्तों को पश्चिमी देश अपने यहां लाने की अनुमति देते रहे हैं । जहां लोग इनको गोद ले लेते हैं। इस तरह का सबसे बड़ा आयोजन गुआंगशी शहर में होता है। दस दिन के यूलिन डॉग मीट फेस्टिवल में मांस और लीची खूब खाई जाती है।
चीन में तरह तरह के पशुओं को खाने की परंपरा की बहुत आलोचना होती है। ऐसी परंपराओं से लोगों में विभिन्न प्रकार की बीमारियों के फैलने का खतरा रहता है। कुत्ते या अन्य पशुओं को सबसे ज्यादा दक्षिण चीन के क्षेत्रों में खाया जाता है। जानकारों का कहना है कि सैकड़ों साल पहले सूखा और भुखमरी फैलने पर लोग ये जानवर खाने लगे होंगे। तबसे यह परंपरा बन गयी है।
पशुओं के साथ क्रूरता में फूड इंडस्ट्री भी बहुत आगे है। यूरोप और अमेरिका की मीट इंडस्ट्री में लाखों गाय, बकरी, भेड़, सूअर नारकीय स्थिति में पाले जाते हैं। यूनाइटेड नेशंस के अनुसार पृथ्वी पर जितने इंसान हैं उससे आठ गुना ज्यादा पशु हर साल स्लाटर हाउस में भेजे जाते हैं। फूड इंडस्ट्री में पशुओं को एक मशीन की तरह देखा जाता है जिससे खाद्य पदार्थ निकाला जाना है।
खाने के अलावा अमेरिका की प्रयोगशालाओं में हर साल 10 करोड़ पशुओं पर टेस्टिंग के नाम पर उनको जलाने, अपंग बनाने और तरह तरह के क्रूर व्यवहार होते हैं। इन पशुओं में चूहे, मेंढक, कुत्ते, बिल्ली, खरगोश, गिनी पिग, बंदर , मछली और पक्षी शामिल हैं। इनका इस्तेमाल कॉस्मेटिक्स, खाद्य पदार्थ, दावा, वैक्सीन आदि के निरंन के क्रम में किया जाता है। पशुओं पर टेस्ट की गईं 92 फीसदी प्रयोगिक दवाइयाँ इन्सानों पर होने वाले ट्रायल में फेल हो जातीं हैं। किसी भी तरह का कीटनाशक बनाने के लिए कम से कम 50 एक्सपेरीमेंट किए जाते हैं । जिनमें 12 हजार पशुओं तक का इस्तेमाल किया जाता है।
कोई चीज कैंसर पैदा करती है या नहीं इसकी जांच के लिए पशुओं में कैंसर पैदा करने वाले केमिकल इंजेक्ट किए जाते हैं। शैंपू, लिपस्टिक, स्किन क्रीम आदि तमाम कॉस्मेटिक्स बनाने में चूहों, खरगोश और गिनी पिग पर एक्सपेरिमेंट किए जाते हैं। कॉस्मेटिक्स के स्किन इरिटेशन टेस्ट में जानवरों की आँख में केमिकल डाले जाते हैं या उनकी स्किन को शेव करके केमिकल रगड़े जाते हैं। टेस्ट के बाद पशुओं को मार दिया जाता है। दुनिया में हर साल कॉस्मेटिक्स बनाने के लिए 2 लाख पशु तड़पा के मार दिये जाते हैं।
यूरोपीय यूनियन, इजरायल, भारत, ब्राज़ील, न्यूज़ीलैंड में कॉस्मेटिक्स के लिए पशुओं पर टेस्टिंग प्रतिबंधित है। विश्व भर में औषधि निर्माण के लिए बंदरों, कुत्तों, खरगोश और चूहों पर टेस्टिंग की जाती है। अभी कोरोना की वैक्सीन बनाने के लिए बंदरों पर व्यापक टेस्टिंग की जा रही है। एक अनुमान है कि हर साल दसियों लाख पशुओं पर दवाओं की टेस्टिंग की जाती है। 2018 में सिर्फ ब्रिटेन में ही 2 लाख से ज्यादा पशुओं पर ड्रग्स की टेस्टिंग की गई।
माना जाता है कि प्रयोगशालाओं के बाहर पशुओं के साथ सबसे ज्यादा क्रूरता एशिया में होती है। चीन, इन्डोनेशिया, थाईलैंड, विएतनाम आदि देशों में हर प्रकार के पशु खाये जाते हैं, जिंदा भून कर या कच्चा ही इनको खा लिया जाता ही। चीन में 2003 में सार्स वाइरस फैलने के बाद जानवरों को खाने पर रोक लगा गई थी लेकिन लोगों के दबाव में ये प्रतिबंध जल्दी ही हटा लिया गया। भारत में हर साल 200 से ज्यादा हाथी ट्रेन से कट कर, करेंट से या जहर से मारे जाते हैं।