Yogesh Mishra Y-Factor: Corona के कुछ सवाल, आपके जवाब कर देंगे तस्वीर का रुख साफ
इस वायरस की उत्पत्ति के ऊपर किए जा रहे अध्ययन व शोध पर तमाम तरीके के प्रतिबंध लाद दिए हैं...
Yogesh Mishra Y-Factor: दुनिया कोरोना वायरस (Corona virus) से बुरी तरह परेशान है। कोई रास्ता कोरोना से निपटने का मिल ही नहीं पा रहा है। हर रोज कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। हर रोज लगता है कि कोरोना को लेकर किए गए प्रयास निरर्थक हो गए है। हो रहे हैं। हर रोज लगता है कि हम नई और बड़ी अंधेरी सुरंग में प्रवेश करते जा रहे हैं। हर रोज लगता है कि लाॅकडाउन फिर बढ़ाये बिना काम चलने वाला नहीं है। हर रोज यह भी लगता है कि आखिर लाॅकडाउन बढ़ायें भी तो कब तक।
दुनिया का कोई भी देश कोरोना की कोई दवा या टीका नहीं निकाल सका है। चीन अपनी शरारत से बाज नहीं आ है। उसने इस वायरस की उत्पत्ति के ऊपर किए जा रहे अध्ययन व शोध पर तमाम तरीके के प्रतिबंध लाद दिए हैं। नई नीति बना दी है। अब शैक्षणिक पेपर प्रकाशित करने से पहले सरकार की अनुमति लेनी होगी।
पुलिस से जांच करानी पड़ेगी। चीन के शैक्षणिक विज्ञान और तकनीकी विभाग का भी कहना है कि वायरस की उत्पत्ति के बारे में किए जा रहे किसी भी रिसर्च पेपर को अब कड़े तरीके से देखा जाएगा। कोई भी पेपर तीन स्तरों से गुजर कर प्रकाशन के स्तर तक पहुंचेगा। दरअसल, कोरोना के संबंध में वुहान व चीन के अन्य विश्वविद्यालयों में तमाम अध्ययन किए जा रहे हैं। कई अध्ययनों के नतीजे चीन के हितों को ही नुकसान पहुंचाने वाले हैं। चीन के ही शोध से यह खुलासा हुआ कि वहां से इस वायरस का संक्रमण मानव से मानव में हुआ और बाद में पूरी दुनिया इस वायरस के चपेट में आ गई। चीन ही नहीं पश्चिम के कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि यह चमगादड़ों के जरिये मानव में फैला।
इस वायरस को लेकर चीन दुनियाभर के निशाने पर है। चीन की सरकार और अधिकारी इस बात की कोशिश कर रहे हैं कि ऐसा परिदृश्य पैदा हो। जिससे साबित हो कि इस महामारी की उत्पत्ति चीन से नहीं हुई। क्योंकि अमेरिका, फ्रांस और आस्ट्रेलिया सहित कई देशों ने इसे लेकर चीन पर हमला बोला है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप तो इसे चीनी वायरस ही कहते हैं। कोरोना संक्रमण का अध्ययन करने चीन पहुंचने वाली अमेरिकी टीम को चीन ने प्रवेश की इजाजत देने से इनकार कर दिया है।
कई देशों का कहना है कि चीन ने इस वायरस को लेकर पूरी दुनिया को अंधेरे में रखा। यही कारण है कि स्थितियां नियंत्रण से बाहर हो गईं। हालांकि चीनी सरकार सरकार अमेरिकी खुफिया एजेंसियों पर इस वायरस को चीन में फैलाने का आरोप लगाती रही है। शायद ही आज कोई इस बात से अनजान हो कि कोराना की शुरुआत चीन के वुहान प्रांर के लैब से हुई। यह वायरस चीन की देन है। वुहान इंस्टीट्यूट आफ वायरोलॉजी के लैब में पंद्रह सौ से ज्यादा घातक वायरस मौजूद हैं।
ब्रिटिश मीडिया समूह 'द मेल' की एक रिपोर्ट में वुहान लैब की दुर्लभ अंदरूनी तस्वीरें उजागर हुई हैं। ये तस्वीरें लैब से एक भयावह रिसाव की ओर इशारा करती हैं। तस्वीरों में वायरस के पंद्रह सौ अलग-अलग प्रकारों को संग्रहित करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले रेफ्रिजरेटर में से एक के दरवाजे पर टूटी हुई सील दिखाई देती है।
रेफ्रिजरेटर की टूटी सील की फोटो 'चाइना डेली' अखबार ने 2018 में पहली बार जारी की थीं। पिछले महीने ट्विटर पर इसकी फोटो उजागर हुई। लेकिन बाद में इसे डिलीट कर दिया गया।
'द मेल' अखबार ने पिछले हफ्ते यह भी खुलासा किया था कि वुहान में चमगादड़ों पर कोरोना वायरस के प्रयोगों को अंजाम दिया गया। इस संस्थान को अमेरिका से अनुदान भी मिलता रहा है। चीन को लेकर बढ़ती शिकायतों के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने वुहान के इस संस्थान को दिए जाने वाले अनुदान पर रोक लगा दी थी।
उन्होंने यह भी कहा था कि हम पूरे मामले की जांच पड़ताल कर रहे हैं। यदि इसमें चीन की कोई गलती उजागर होती है तो उसे गंभीर नतीजे भुगतने होंगे।
हालांकि वुहान इंस्टीट्यूट आफ वायरोलॉजी लैब के निदेशक युआन झिमिंग ने दुनिया में कोरोना का संक्रमण फैलाने के आरोपों को खारिज करते हुए सरकारी सीजीटीएन टीवी चैनल को दिए गए एक साक्षात्कार में कहा कि यह सवाल ही नहीं उठता कि यह वायरस लैब से आया हो। यह वायरस मानव निर्मित नहीं हो सकता। कोई साक्ष्य यह साबित नहीं कर सकती कि यह वायरस कृत्रिम है।
दुनिया में कोरोना वायरस फैलाने के आरोपों में घिरा चीन अब इस महामारी के जरिए मोटी कमाई करने में जुटा है। कोरोना से बचाव के लिए कारगर मानी जाने वाली दवाओं के कच्चे माल के बदले चीन मनमानी कीमत वसूल रहा है।
चीन मौके का फायदा उठाकर किस तरह अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में जुटा है, यह इसी से समझा जा सकता है कि उसने कच्चे माल की कीमतों चार से पांच गुना तक की बढ़ोतरी कर दी है। चीन इस वैश्विक महामारी से लड़ रही दुनिया की मजबूरियों का फायदा उठाने की कोशिश में जुटा है।
फरवरी-मार्च, 2020 तक हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन नामक साल्ट 7800 रुपए प्रति किलो था, जो इस समय 55000 रुपए प्रति किलो तक मिल रहा है। इसी तरह एजिथ्रोमाइसीन की कीमत साढ़े छह हजार रुपए से बढ़कर करीब 15000 रुपए प्रति किलो तक पहुंच गई है। इवेर मेक्टिन की कीमत चैदह सौ से बढ़कर 60000 रुपए प्रति किलो तक पहुंच गई है।
चीन की इन चतुर और कुटिल चालों से सावधान रहने और सावधान करने का समय है। आगे चीन को यह बताने की भी हैं कि किसी समाज या देश के विध्वंस करके अपने निर्माण का तरीका ठीक नहीं।
इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। चीन के वुहान स्थित उस प्रयोगशाला का दुनिया के कई देशों के सदस्यों के प्रतिनिधियों के साथ एक बार दौरा करके पड़ताल किया जाना जरूरी है ताकि सच का पता लग सके। यह परमाणु हथियार से ज्यादा घातक है।