Pakistan Nepal Map Politics: Junagadh का दावा कितना सच्चा, देखें Y-Factor...
इन दिनों नक़्शे की सियासत का रंग सभी कमजोर और संकटग्रस्त देशों पर चढ़ा हुआ है...
Pakistan Nepal Map Politics:इन दिनों नक़्शे की सियासत का रंग सभी कमजोर और संकटग्रस्त देशों पर चढ़ा हुआ है। कमजोरऔर संकटग्रस्त देशों के सत्ताधारी नेता नये नये नक़्शे लेकर सामने आ रहे हैं। नेपाल के प्रधानमंत्रीओली और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान नक़्शे के खेल के बड़े सूरमा हैं। हालाँकि नक़्शे कीराजनीति के बाद दोनों नेताओं की ज़मीन खिसक रही है। अपने देश में दोनों मज़ाक़ के पात्र नक़्शे कीसियासत के चलते ही बन गये हैं।
देश का बंटवारा हुए सात दशक से अधिक का समय बीत चुका है। लेकिन पाकिस्तान कीखिसियाहट और बौखलाहट अब भी कम नहीं हुई है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने जम्मूकश्मीर-लद्दाख-जूनागढ़ को पाकिस्तान का हिस्सा बताकर अपनी खिसियाहट एक बार फिर जाहिरकी है।
दरअसल, जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने का नरेंद्र मोदी सरकार का ऐतिहासिक फैसलापाकिस्तान को कांटे की तरह चुभ रहा है। इस मामले को उसने हर संभव मंच पर उठाया। लेकिन हरजगह उसने मुंह की खाई। कुछ नहीं हुआ तो अब पाकिस्तान ने नक़्शे में ही बदलाव कर दिया है।
पाकिस्तान का कहना है कि जूनागढ़ और मनावदर हमेशा से उसका हिस्सा थे । जूनागढ़ के नवाब नेबंटवारे के समय पाकिस्तान के साथ विलय किया था। लेकिन भारत ने ताक़त के बूते इस रियासतपर अपना क़ब्ज़ा जमा लिया। लेकिन इसकी हक़ीक़त जानना ज़रूरी है। सन 1948 के बाद से जूनागढ़ और मनावदर क्षेत्र भारत केपास है। यहां सोमनाथ का मंदिर भी स्थित है। दरअसल, अगस्त 1947 में आज़ादी या बंटवारे केसमय सभी रियासतों को विकल्प दिया गया था कि वे भारत में मिल जाएं या पाकिस्तान में विलयकर लें या फिर अपना पृथक अस्तित्व बनाए रखें। 15 अगस्त 47 तक भारत के भीतर स्थितअधिकांश रियासतों ने भारत में विलय का रास्ता चुन लिया था। जूनागढ़ के नवाब उन दिनों यूरोप मेंछुट्टियां मना रहे थे। रियासत का कामकाज उनके दीवान सर शाहनवाज़ भुट्टो देख रहे थे।
भुट्टो ने मोहम्मद अली जिन्ना से पटरी बैठा कर जूनागढ़ के पाकिस्तान में विलय का प्लान बना लिया।नवाब मोहम्मद महाबत रसुलखनजी 11 अगस्त 1947 को यूरोप से लौटे तो दीवान शाह नवाज़ भुट्टो नेउनको समझा दिया कि वे रियासत का विलय पाकिस्तान में कर दें। नवाब ने जिन्ना से बात करने केलिए एक दूत उनके पास भेजा। पाकिस्तान में जूनागढ़ के विलय का एलान कर दिया गया।नवाब केफैसले पर वायसराय लार्ड माउंटबेटन ने हैरानी भी जताई । क्योंकि जूनागढ़ की सीमा पाकिस्तान सेनहीं मिलती थी। यहां की बहुसंख्य आबादी हिन्दुओं की थी। लेकिन नवाब अड़े हुए थे।
नवाब की जिद से आजिज आकर जूनागढ़ के नियंत्रण वाले दो क्षेत्रों मंगरोल और बबरियावाड नेअपने को जूनागढ़ से आजाद घोषित करते हुए भारत में विलय का एलान कर दिया। इस पर नवाबकी सेना ने जबरन इन दोनों इलाकों पर कब्जा जमा लिया। इस अफरातफरी के बीच भारत नेजूनागढ़ की सीमा पर सेना तैनात कर दी। जूनागढ़ की सप्लाई चेन बंद कर दी।
भारत का कहना था कि जूनागढ़ का पाकिस्तान से कोई सम्बन्ध नहीं है । अगर जूनागढ़ कोपाकिस्तान में मिलने दिया गया तो गुजरात में सुलग रहा सांप्रदायिक तनाव गंभीर मोड़ ले सकता है।भारत ने कहा कि विलय के सवाल को जनमत संग्रह से सुलझाना चाहिए। इस बीच पाकिस्तान नेकहा कि वह जनमत संग्रह पर बात करने को तैयार है। लेकिन पहले जूनागढ़ की सीमाओं से भारतीयसेनाएं हटा दी जानी चाहिए। भारत ने पाकिस्तान की मांग ख़ारिज कर दी। इसी बीच 24 अक्टूबर कोनवाब तथा शाह नवाज भुट्टो अपने परिवार और कुत्तों को लेकर विमान द्वारा पाकिस्तान भाग गए।
इस तरह 9 नवम्बर 1947 को जूनागढ़ भारत में मिल गया। लेकिन पाकिस्तान अब भी अड़ा हुआ था।सो 20 फरवरी 1948 को एक जनमत संग्रह हुआ। नतीजे एकमत से भारत के पक्ष में गए। 91 फीसदी लोगों ने भारत में विलय के पक्ष में वोट डाला।
नवाब महाबत खान भाग कर पाकिस्तान चले तो गए। लेकिन वहां पहुंचने के बाद वो बहुत पछताए।पाकिस्तान ने उनसे बहुत सौतेला व्यवहार किया। उनके लिए जो रकम बांधी गई।वह पाकिस्तान कीरियासतों के पूर्व राजाओं और नवाबों के मुकाबले कम थी ।उन्हें वैसा महत्व भी नहीं मिलता था।महाबत खान के निधन के बाद पाकिस्तान में उनके वंशजों की हालत पस्त है। उन्हें गुजारे के तौर परमहीने का मात्र 16 हजार रुपए मिलता है। इसको लेकर उनके वंशज कई बार विरोध भी जता चुकेहैं।
अब जूनागढ़ के नवाबी परिवार के लोग खासे बेचैन रहते हैं। रह रहकर वो पाकिस्तान के मीडिया कोबताने की कोशिश करते हैं कि पाकिस्तान के लिए उन्होंने कितनी बड़ी कुर्बानी दी है।यह मुल्क उन्हेंकिनारे कर चुका है। कराची में नवाब महाबत खान के जो तीसरे वंशज रह रहे हैं, उनका नाम है नवाबमुहम्मद जहांगीर खान। कुछ समय पहले उन्होंने कहा था कि अगर उन्हें पता होता कि पाकिस्तानजाने के बाद उनका मान सम्मान खत्म हो जाएगा तो वे कभी भारत छोड़कर नहीं आते।
खटास इस बात की भी है कि अपने जिस वजीर के उकसावे में आकर वो पाकिस्तान से भागे उसकापरिवार पाकिस्तान का मुख्य राजनीतिक परिवार बन गया। दीवान शाहनवाज़ भुट्टो पाकिस्तानजाकर वहां लरकाना जिले में बस गए। भुट्टो के पास अच्छी खासी जमींदारी थी। वे वहां के रईसोंऔर रसूखदारों में शुमार थे। उनकी जिन्ना से बहुत करीबियां थीं ।सो उसका भी बहुत फायदा हुआ।कालांतर में नवाज भुट्टो के पुत्र जुल्फिकार अली भुट्टो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने। इसतरह भुट्टोखानदान ने पाकिस्तान की राजनीति में सिक्का जमा लिया। लेकिन शाहनवाज भुट्टो जिनके दीवान थेवो पाकिस्तान जाकर गुमनाम ही रह गए।
एक पाकिस्तानी अखबार को दिए इंटरव्यू में नवाब मुहम्मद जहांगीर ने कहा था कि बंटवारे के समयमोहम्मद अली जिन्ना के साथ हुए समझौते के तहत ही उनका परिवार पाकिस्तान आया था। जूनाग़ढ़उस समय हैदराबाद के बाद दूसरे नंबर का सबसे धनवान राज्य था। नवाब अपनी संपत्ति जूनागढ़ मेंछोड़कर पाकिस्तान चले आए थे।
मुहम्मद महाबत खनजी रसूल खनजी जूनागढ़ के आखिरी नवाब थे। इन्होंने 1911 से 1948 तकशासन किया। महाबत खनजी अपने ऐशोआराम वाली लाइफ स्टाइल और कुत्तों के शौक के लिएविख्यात थे। एक समय में नवाब के पास 800 कुत्ते थे । जिनमें ऊंची नस्ल वाले 200 कुत्ते थे। नवाबसाहब अपने ख़ास कुत्तों की बर्थडे और विवाह समारोहों को बहुत जोर शोर से मनाते थे । इसमें दिलखोलकर खर्चा किया जाता था। इन कुत्तों को सोने-चांदी के आभूषण पहनाये जाते थे। नवाब नेएशियाई शेरों, काठियावाड़ी घोड़ों और गिर की गायों के संरक्षण के लिए भी बहुत काम किया। गिरअभयारण्य के विशाल क्षेत्र को बचाने और आगे बढ़ाने में नवाब महाबत खनजी का बहुत बड़ायोगदान है।
जूनागढ़ का इतिहास काफी उतर-चढ़ाव वाला रहा है। इस पर मौर्य और कलिंग वंश का शासन रहा।यूनानियों ने यहाँ राज किया। यह गुप्त साम्राज्य का हिस्सा रहा। 1472 ईस्वी में चूड़ासम राजपूतों कोहराकर तुर्क आक्रमणकारी मोहम्मद बेगढ़ा ने जूनागढ़ पर कब्जा कर उसे मुस्तफाबाद नाम दे दिया।इसके बाद मुगलों और फिर पश्तूनों का यहां कब्जा रहा था।गिरनार पर्वत के समीप जूनागढ़ शहर कानिर्माण नौवीं शताब्दी में हुआ था। गिरनार के रास्ते में एक गहरे रंग की बसाल्ट या कसौटी के पत्थरकी चट्टान हैं, जिस पर तीन राजवंशों का प्रतिनिधित्व करने वाला शिलालेख अंकित है। मौर्य शासकअशोक (लगभग 260-238 ई.पू.), रुद्रदामन (150 ई.) और स्कंदगुप्त (लगभग 455-467)। यहां100-700 ई. के दौरान बौद्धों द्वारा बनाई गई गुफ़ाओं के साथ एक स्तूप भी है। यहां तीसरी शताब्दीईसा पूर्व की बौद्ध गुफ़ाएं, पत्थर पर उत्कीर्णित सम्राट अशोक का आदेशपत्र और कहीं-कहीं जैनमंदिर स्थित हैं।