PM Narendra Modi को New Parliament बनवाने की बजाय करना था ये काम, देखें Y-Factor...

अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को नवीन राष्ट्रीय राजधानी बनाने की सोचनी चाहिए...

Written By :  Yogesh Mishra
Published By :  Praveen Singh
Update: 2021-07-24 11:48 GMT

Y-Factor PM Narendra Modi: बजाये नये संसद भवन (New Parliament) के निर्माण के, अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को नवीन राष्ट्रीय राजधानी बनाने की सोचनी चाहिए। दिल्ली (Delhi) को लेकर ख़तरे के बाबत सोवियत रूस की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव निकिता खुश्चेव ने कांग्रेसी प्रधानमंत्री जवाहरलाल को आगाह कर दिया था। वह अपने प्रधानमंत्री निकोलाई बुलगानिन के साथ वे 1955 में भाखड़ा नांगल बांध देखने गये थे।

वहां खाट पर बैठे, सतलुज को निहारते, खुश्चेव ने पूछा, ''यहां से सीमा कितनी दूर है?'' इंजीनियर का जवाब था कि वागा सीमा डेढ़ सौ किलोमीटर है। रुसी नेता का अगला प्रश्न था : ''क्या यह बांध बमबारी से सुरक्षित है?'' उत्तर मिला : ''नहीं।'' खुश्चेव ने अचरज मिश्रित आक्रोश व्यक्त किया। उन्होंने भाखडा नांगल बांध के लिए सीमावर्ती स्थल ​के चयन को अविवेकी बताया। उन्होंने अपने गांव में उन्नीस वर्ष की आयु में ककहरा सीखा था। खदान मजदूर के बेटे थे। पर मेधावी थे। उन्होंने सचेत किया था कि यदि युद्ध में पाकिस्तान भाखड़ा नांगल बांध को बम से फोड़ता है तो दिल्ली का कनाट प्लेस डूब जायेगा।

चन्द्रगुप्त मौर्य ने सुदूर पटना (पाटलिपुत्र) से सिकन्दर को झेलम तट पर ही रोक दिया था। सेनापति सेल्युकस निकाटोर की बेटी हेलेन को छीन लिया था। मगध साम्राज्य सुरक्षित रहा। राजधानी पटना से विप्र सम्राट पुष्यमित्र शुंग ने उत्तर में यवन शासक मिनांडर के आक्रमण को विफल कर दिया था। वह अन्तिम सम्राट था । जिसने अश्वमेध यज्ञ किया था। गुजरात के वडगाम, प्रधानमंत्री मोदी के गांव से सवा घण्टे के फासले पर, में गुर्जर शासन की राजधानी पाटन थी। यह पंद्रहवी सदी में बस गयी थी। इसके महाराजा मूलराज ने मुहम्मद गोरी को जंग में हरा कर सौ वर्षों तक गुजरात को इस्लामी हमले से बचा कर रखा था।

यहां इतिहास से ये सब उदाहरण निरुपित करने का प्रसंग यही है कि भारत सुरक्षित रहा क्योंकि दिल्ली से उन सबकी राजधानी दूर थी।मध्य भारत में स्थित सेवाग्राम से ही बापू ने महाशक्तिमान ब्रिटिश राज को भारतवर्ष से भगा दिया था। इस पर भी विचार किया जाना चाहिए। सभी 29 राज्यों और प्रदेशों को अमन चैन वाला शासन मिलेगा। किसी युद्ध के दौरान हवाई हमला या नौसैनिक आक्रमण होने पर भी जब तक थल सेना का हस्तक्षेप न हो, तब तक देश के मध्य भूभाग की आजादी महफूज रहेगी।

याद रहे कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (1857) में निकट के शहर मेरठ से चलकर मुक्ति सेनानियों ने दिल्ली से ब्रिटिश साम्राज्यवादियों पर जबरदस्त हमला किया था। यदि चन्द हिन्दुस्तानी रजवाडों ने देशद्रोह न किया होता तो दिल्ली तभी आजाद हो जाती। गत दिनों में जिन जाट किसानों ने दिल्ली की सड़कों को अवरुद्ध कर दिया था, उन्हीं के पूर्वज चूड़ामन तथा उनके भतीजे बदन सिंह ने (1720) मुगलों को दिल्ली में हिला दिया था। आगरा, हाथरस, इटावा, गुड़गांव आदि क्षेत्रों पर अपना राज स्थापित कर दिया था।

उन्हीं जाट राजाओं ने आलमगीर औरंगजेब के हिन्दू विरोधी अत्याचारों से क्रोधित होकर जलालुद्दीन अकबर की सिकन्दरा में कब्रें लूट ली। अस्थियां जला दीं। यदि मराठा सेनाधिपति सदाशिवराव भाऊ अहंकार भरा व्यवहार न करते तो इस जाट सेना की सहायता से दिल्ली बचा ले जाते। अहमदशाह अब्दाली को पानीपत की तीसरी लड़ाई में मारकर भगा दिया जाता। अन्तिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान 1190 से मुहम्मद गोरी द्वारा छीने नगर पर भारतीय राज पुन: स्थापित हो जाता। ब्रिटिश राज का नाम ही नहीं रहता।

इस परिवेश में कुरुवंशी युवराज दुर्योधन की दूरदर्शिता प्रभावी लगती है। जब पाण्डव वनवास से लौटे और अपना हक मांगा, तो कौरवों ने शस्त्र उठाने की चुनौती थी। तब पाण्डव—दूत श्रीकृष्ण ने केवल पांच गांवों के लिए अनुनय किया था। इनमें थे इन्द्रप्रस्थ, बागपत, सोनीपत, पानीपत और तिलपत। ये गांव कुरु राजधानी हस्तिनापुर के ईर्दगिर्द थे।

पांच गांव निम्न थे

श्रीपत (सिही) या इन्द्रप्रस्थ-दक्षिण दिल्ली के इलाके का वर्णन महाभारत में इन्द्रप्रस्थ के रूप में है। धृतराष्ट्र ने यमुना के किनारे खांडवप्रस्थ क्षेत्र को पांडवों को देकर अलग कर दिया था। यह क्षेत्र उजाड़ और दुर्गम था । लेकिन पांडवों ने मयासुर के सहयोग से इसे आबाद कर दिया था। इस क्षेत्र का नाम उन्होंने इन्द्रप्रस्थ रखा था।

बागपत -इसे व्याघ्रप्रस्थ कहा जाता था। व्याघ्रप्रस्थ यानी बाघों के रहने की जगह। यहां सैकड़ों साल पहले से बाघ पाए जाते रहे हैं। यह उत्तरप्रदेश का एक जिला है। बागपत ही वह जगह है, जहां कौरवों ने लाक्षागृह बनवाकर उसमें पांडवों को जलाने की कोशिश की थी। सोनीपत- सोनीपत को पहले स्वर्णप्रस्थ कहा जाता था। बाद में यह 'सोनप्रस्थ' होकर सोनीपत हो गया।

पानीपत-पानीपत को पांडुप्रस्थ कहा जाता था। भारतीय इतिहास में यह जगह बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहां 3 बड़ी लड़ाइयां लड़ी गईं। इसी पानीपत के पास कुरुक्षेत्र है, जहां महाभारत की लड़ाई हुई। तिलपत-तिलपत को पहले तिलप्रस्थ कहा जाता था। यह हरियाणा के फरीदाबाद जिले का एक कस्बा है।

मगर धूर्त और चालाक दुर्योधन ने साफ इंकार कर दिया था। ''सुई की नोक के बराबर भी भूभाग नहीं दूंगा।'' इन पांच ग्रामों को मांगने के आधार में पार्थसारथी की एक तयशुदा योजना थी। ये पांचों गांव राजधानी हस्तिनापुर पर आक्रमण का मार्ग और प्रयास बड़ा सरल करते हैं।आज का कुशल फौजी कमांडर भली भांति समझ जायेगा कि श्रीकृष्ण का मंतव्य क्या रहा होगा?

यदि भारतीय गणराज्य को सुरक्षित और समृद्ध रखना है तो राष्ट्रीय राजधानी ऐसे स्थल पर हो जो आंचलिक दबाव से दूर रहे।वर्ना राष्ट्रपति भवन और प्रधानमंत्री आवास, 7 लोककल्याण मार्ग का रिट केवल चान्दनी चौक तक कारगर रहेगा। अर्थात नौंवें मुगल सम्राट और सैय्यद ब्रदर्स के कैदी बादशाह फर्रुखसियार के सदृश्य होगा। जिसका हुक्म बस लाल किले की चहरादीवारी के भीतर ही चलता था। आज केरला, तेलंगाना, कश्मीरी आतंकी, गुरुग्राम और गाजियाबाद द्वारा दिल्ली अस्थिर की जा रही है। प्रधानमंत्री को इतिहास का रचायिता बनने की सोचनी चाहिये। 

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