Thomas Babington Macaulay: जिसने बिगाड़ा India का Education System, देखें Y-Factor...

मैकाले ने हिन्दू लॉ और मुस्लिम लॉ की बजाए एक समान कानून की वकालत की थी...

Written By :  Yogesh Mishra
Published By :  Praveen Singh
Update:2021-07-24 15:05 IST

Y-Factor Thomas Babington Macaulay: लॉर्ड मैकाले का पूरा नाम थॉमस बैबिंगटन मैकाले था। वह प्रसिद्ध अंग्रेज़ी कवि, निबन्धकार, इतिहासकार तथा राजनीतिज्ञ थे।मैकाले का जन्म 25 अक्टूबर, 1800 ई. में हुआ था। मृत्यु 28 दिसम्बर, 1859 ई. में हुई। एक निबन्धकार और समीक्षक के रूप में मैकाले ने ब्रिटिश इतिहास पर खूब लिखा था।

1834 ई. से 1838 ई. तक मैकाले भारत की सुप्रीम काउंसिल में लॉ मेंबर तथा लॉ कमीशन के प्रमुख रहे। इंडियन पीनल कोड और क्रिमिनल प्रोसीजर कोड के लगभग सभी मूल ड्राफ्ट मैकाले ने ही तैयार किये थे। यानी भारत में क्रिमिनल लॉ के निर्माता भी मैकाले हैं।

मैकाले ने हिन्दू लॉ और मुस्लिम लॉ की बजाए एक समान कानून की वकालत की थी।कहा था कि इंडियन पीनल कोड के बाद शास्त्र, हदीस आदि बेकार हो जाएंगे। मैकाले भारत के लोगों के ईसाई धर्म कबूलने के खिलाफ थे। उनका कहना था कि धर्म परिवर्तन कराने वालों को कतई प्रोत्साहन नहीं देना चाहिए।

इंग्लिश को भारत की सरकारी भाषा तथा शिक्षा का माध्यम और यूरोपीय लिटरेचर, फिलॉसफी और विज्ञान  को भारतीय शिक्षा का लक्ष्य बनाने में मैकाले का बड़ा हाथ था। मैकाले विज्ञान की शिक्षा के प्रसार के प्रबल पक्षधर थे। भारत में शिक्षा पर मैकाले ने 2 फरवरी, 1835 को ब्रिटिश संसद में अपनी रिपोर्ट रखी थी। इसमें ।मैकाले ने कहा था - पढ़ाई का माध्यम संस्कृत या अरबी की बजाए इंग्लिश हो क्योंकि विज्ञान आदि की शिक्षा उसी में ठीक से दी जा सकेगी।

भारतीय लिटरेचर को बचाने बढ़ाने पर खर्च करने के साथ साथ विज्ञान के प्रचार प्रसार पर खर्च किया जाना चाहिए।चर्च में प्रार्थना के लिए सरकार का पैसा देना बन्द किया जाए।भारत के लोगों के बौद्धिक विकास के लिए सरकार का फंड ख़र्च किया जाना चाहिए। मैकाले ने कहा था,"इसमें कोई विवाद नहीं कि पूरब के लेखक काव्य लिखने में सर्वश्रेष्ठ हैं। लेकिन जब तथ्यों को रिकॉर्ड करने की बात आती है।सामान्य सिद्धांतों का शोध किये जाने की बात आती है तो यूरोपियन लोगों की श्रेष्ठता सुप्रीम है।

संस्कृत में लिखी गई सभी पुस्तकों में जितनी भी ऐतिहासिक जानकारी दी गई है , वो इंग्लैंड के प्राइमरी स्कूलों में दी गई जानकारियों से भी कम महत्व की हैं। हमें ऐसी जनता को शिक्षित करना है जो वर्तमान में अपनी मातृभाषा के जरिए शिक्षित नहीं किये जा सकते। हमें उनको कोई विदेशी भाषा सिखानी होगी। ऐसे में हमारी अपनी भाषा (इंग्लिश) के बारे में कुछ कहने की जरूरत ही नहीं है। इंग्लिश ही दुनिया भर की जानकारियों के द्वार खोलती है।

हमें संस्कृत और अरबी पढ़ने वाले छात्रों को पैसा देना पड़ता है जबकि इंग्लिश सीखने (India Education System) वाले हमें पैसा देने के तैयार हैं। मिसाल के तौर पर एक मदरसे में अरबी पढ़ने वाले 71 छात्रों को सरकारी पैसे से स्टाइपेंड दिया जाता है। कुल रकम 500 रुपये महीना बैठती है। वहीं तीन महीनों में इंग्लिश के छात्रों से 103 रुपए प्राप्त हुए। किसी को संस्कृत और अरबी पढ़ने के लिए पैसा क्यों दिया जाए? जबकि इनकी पढ़ाई से कोई लाभ नहीं मिलने वाला है? सब मदरसे और संस्कृत विद्यालय बन्द कर दिए जाने चाहिए और इनकी जगह विज्ञान की पढ़ाई को बढ़ावा देना चाहिए।हमें एक ऐसा वर्ग तैयार करना चाहिए जो रंग और शरीर से भारतीय हो लेकिन पसन्दगी,ओपिनियन, चरित्र और बौद्धिकता में इंगलिश हो। ऐसा वर्ग जनता द्वारा बोली जाने वाली बोलियों को परिष्कृत करने का काम करे। लोगों को उनकी ही जुबान में विज्ञान की शब्दावली से परिचित कराए। ताकि जन समूह तक जानकारी और ज्ञान फैल सके।

मैकाले का पिता के नाम पत्र

लार्ड मैकाले ने 12 अक्टूबर, 1836 में अपने पिता जैकरी मैकाले को एक पत्र लिखा था - 'कुछ महीनों या कुछ हफ़्तों में ही हम सरकार को पीनल कोड भेज देंगे। हमने गम्भीर देशद्रोह और सोच समझ कर की गई हत्या के मामलों के अलावा अन्य में मृत्यु दंड से छुटकारा पा लिया है। हम भारत में प्रचलित एक तरह की गुलामी प्रथा से जुड़ी सभी चीजों से अप्रत्यक्ष रूप से छुटकारा पा लेंगे।

किसी खास काम के लिए खास वर्ग के लोगों का नगरिक दावा बना रहेगा जिसे दीवानी कार्रवाई के जरिये लागू कराया जा सकेगा। लेकिन किसी को ये कहने का अधिकार नहीं होगा कि सिर्फ वो हो उक्त काम का मास्टर है, या कोई और उस काम को करता तो वो अपराध है। हमारे इंग्लिश स्कूल बहुत बेहतरीन तरीके से फलफूल रहे हैं। लेकिन कुछ जगहों पर सभी इक्छुक लोगों को शिक्षा उपलब्ध करा पाना असंभव है। अकेले हुगली नगर में ही 1400 बालक अंग्रेजी सीख रहे हैं।

हिंदुओं पर इस शिक्षा का प्रभाव विलक्षण है। कोई हिन्दू जिसने इंग्लिश शिक्षा पाई है वो कभी अपने धर्म के प्रति पूरी तरह जुड़ा नहीं रह सकता। वैसे कुछ लोग धर्म का अनुसरण एक नीति की तरह जारी रखते हैं। लेकिन बहुत से लोग अपने को विशुद्ध आस्तिक कहते हैं जबकि कुछ अन्य लोग ईसाइयत अपना लेते हैं। मुसलमानों के साथ मामला कुछ और है। सर्वश्रेष्ट शिक्षित मुसलमान ज्यादतर मुसलमान ही रहता है। इसका कारण सामान्य सा है। हिन्दू धर्म इतना ज्यादा बेतुका है कि किसी लड़के को नक्षत्र विज्ञान, भूगोल, प्रकृति विज्ञान पढ़ा पाना तब तक असम्भव है जब तक कि उसके मस्तिष्क पर उस धर्म के शिकंजे को पूरी तरह नष्ट न कर दिया जाए। लेकिन मुसलमान धर्म एक बेहतर धर्म है। ये ईसाइयत से बहुत कुछ मिलता जुलता है। और जहाँ भी ये अत्यधिक बेतुका है तब भी वो हिंदुत्व की तुलना में तार्किक है।

मेरा पक्का मानना है कि अगर शिक्षा की हमारी योजनायें अपनाई जाती रहीं तो अबसे तीस सालों में बंगाल के इज्जतदार वर्ग में एक भी मूर्तिपूजक नहीं रहेगा। और ये सब धर्म परिवर्तन की किसी कोशिश के बगैर होगा। हमें धर्मिल आज़ादी के साथ तनिक भी हस्तक्षेप नहीं करना होगा। ये ज्ञान और जानकारी के प्राकृतिक जरिये से ही किया जा सकेगा।'

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