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असम में चाय बागानों पर छा गई भाजपा
असम में भारतीय जनता पार्टी ने अपनी सरकार बचाते हुए लगातार दूसरी बार सत्ता में आने वाली पहली गैर-कांग्रेसी सरकार होने का रिकॉर्ड भी अपने नाम कर लिया है।
गुवाहाटी: असम में भारतीय जनता पार्टी ने अपनी सरकार बचाते हुए लगातार दूसरी बार सत्ता में आने वाली पहली गैर-कांग्रेसी सरकार होने का रिकॉर्ड भी अपने नाम कर लिया है। ये बड़ी उपलब्धि है।
असम में भाजपा को विपक्षी गठबंधन की ओर से कड़ी चुनौती मिल रही थी और कयास लगाए जा रहे थे कि कांग्रेस के साथ बदरुद्दीन अजमल की आल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट और बोडो पीपुल्स पार्टी समेत आधा दर्जन दलों के हाथ मिलाने से भाजपा की राह काफी मुश्किल हो जाएगी। लेकिन सब कयास फेल हो गए।
बिस्व सरमा की रणनीति
असम में भाजपा की राह आसान करने में हिमंत बिस्व सरमा की बहुत बड़ी भूमिका रही। सरमा की ही रणनीति का ही नतीजा था कि जिस नेशनल रजिस्टर फॉर सिटीजंस (एनआरसी) और नागरिकता कानून (सीएए) का असम में सबसे ज्यादा विरोध हुआ था वहीं यह दोनों मुद्दे हाशिए पर चले गए। उल्टे ये मुद्दे भाजपा के पक्ष में चले गए।
चाय बागान मजदूरों का पूरा सपोर्ट
असम की करीब 45 सीटों पर चाय बागान मजदूरों के वोट निर्णायक रहते हैं। इसीलिए भाजपा और कांग्रेस, दोनों गठबंधन उनको लुभाने में जुटे थे। लेकिन बागान मजदूरों का समर्थन भाजपा को ही मिला। ये मजदूर दशकों से बुरी हालत में रहे हैं। भाजपा की सोनोवाल सरकार ने इनके लिए जो योजनाएं शुरू की थीं उसका फायदा भाजपा को मिला।
हिन्दू-मुस्लिम ध्रुवीकरण
असम में वोटरों के बीच खूब ध्रुवीकरण हुआ जिसकी वजह कांग्रेस का बदरुद्दीन अजमल की पार्टी के साथ हाथ मिलाना था। भाजपा और सहयोगियों ने चुनाव अभियान के दौरान विपक्षी गठबंधन की जीत को राज्य के भविष्य के लिए खतरा बताया। भाजपा ने तो इसे मुगलों का गठजोड़ और सभ्यताओं का टकराव करार दिया। अजमल की पार्टी को धुर सांप्रदायिक करार दे दिया गया। अजमल से मूल असमी मुस्लिम भी सम्भवतः छिटक गए।
घुसपैठियों का मसला
भाजपा ने बांग्लादेश से होने वाली घुसपैठ को अपना सबसे प्रमुख मुद्दा बनाया। लव जिहाद के खिलाफ कानून बनाने की बात कही। मदरसों पर लगाम कड़ी। इन सबसे थी हिन्दू और हिंदीभाषी वोटरों को एकजुट करने में सहायता मिली।
कमजोर कांग्रेस
भाजपा को कमजोर कांग्रेस का फायदा मिला।कांग्रेस के पास इस बार तरुण गोगोई जैसे कद्दावर नेता नहीं थे। राहुल, प्रियंका का पूरा जोर भी नहीं दिखा। कांग्रेस कोई भी कनेक्ट बनाने में विफल रही।
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