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चुनावी वायदे की कसौटी पर एनआरसी, सुप्रीम इजाजत की दरकार
असम सरकार असम के सीमावर्ती जिलों में 20 प्रतिशत नामों और अन्य इलाकों में 10 प्रतिशत नामों का पुन: सत्यापन चाहती है।
गुवाहाटीः असम ( Assam )में हिमंता बिस्वा सरमा के नेतृत्व में गठित भाजपा सरकार ( BJP Government) ने एनआरसी के पुन: सत्यापन के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया है। असम सरकार असम के सीमावर्ती जिलों में 20 प्रतिशत नामों और अन्य इलाकों में 10 प्रतिशत नामों का पुन: सत्यापन चाहती है। एनआरसी से राज्य के लगभग 19 लाख लोग प्रभावित हो रहे हैं, जिनमें लगभग साढ़े पांच लाख हिंदू शामिल हैं।
एनआरसी के पुनः सत्यापन की मांग को लेकर भाजपा सरकार अपने चुनावी वायदे पर आगे बढ़ रही है। हालांकि सीएम हिमंता बिस्वा सरमा का कहना है कि अगर गलतियां नगण्य पाई जाती हैं तो सरकार मौजूदा एनआरसी सूची पर आगे बढ़ सकती है।
एनआरसी मसौदे में संशोधन
इस मामले में याचिका एनआरसी प्राधिकरण ने 31 अगस्त, 2019 को प्रकाशित मसौदे में अनियमितता बरते जाने का हवाला देते हुए दायर की है। याचिका सरमा के शपथ लेने से दो दिन पहले 8 मई को दायर की गई है। असम में एनआरसी के प्रदेश संयोजक हितेश देव सरमा ने भी एनआरसी मसौदे में संशोधन के अलावा असम की मतदाता सूची से अवैध मतदाताओं के नाम हटाने की मांग की है।
याचिका में नागरिकता अनुसूची (नागरिक पंजीकरण का पंजीकरण और राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करना) नियम-2003 की एक प्रासंगिक धारा के तहत पूरक सूची के लिए भी आग्रह किया गया है।
याचिका में यह भी कहा गया है कि मसौदे में कुछ अहम मुद्दों को खारिज कर दिया गया, जिससे इसकी प्रक्रिया में विलंब हुआ। इससे पहले जुलाई, 2019 में भी केंद्र और असम सरकार ने एनआरसी मसौदे के दोबारा सत्यापन की मांग को लेकर शीर्ष अदालत में याचिका दी थी।
हालांकि, तब कोर्ट ने एक हलफनामे के आधार पर याचिका खारिज कर दी थी, जिसमें कहा गया था कि 27 प्रतिशत नामों का पहले ही पुन: सत्यापन किया जा चुका है। हालांकि मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने शपथ लेने के बाद एक बार फिर एनआरसी का दोबारा सत्यापन कराने का भरोसा दिया था।
गंभीर प्रकृति की भयावह विसंगतियां
नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिज़न्स (NRC) के असम के समन्वयक ने "गंभीर प्रकृति की भयावह विसंगतियों" का हवाला दिया है। एनआरसी, सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनिवार्य प्रक्रिया है। जिसके तहत, उन भारतीय नागरिकों की पहचान की जानी है जो 1971 से पहले राज्य में रहे हैं या उनके प्रत्यक्ष वंशज हैं। 31 अगस्त, 2019 को प्रकाशित अंतिम सूची में राज्य के 1.9 मिलियन से अधिक निवासी थे। सूची से बाहर किए गए लोगों को फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में अपील करनी होगी।
भाजपा ने शुरू में "अवैध प्रवासियों को बाहर निकालने" की प्रक्रिया का समर्थन किया था, लेकिन अंतिम सूची में राज्य के कई स्वदेशी जनजातियों को उचित दस्तावेजों के अभाव में बाहर रखा गया था। इसके बाद से भाजपा दोबारा सत्यापन की मांग कर रही है।