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असम में पुलिस की कार्रवाई, भड़का गुस्सा
Guwahati: भाजपा सरकार ने सत्ता में लौटने के बाद कहा था कि वह संदिग्ध नागरिकों का अतिक्रमण हटा कर जमीन स्थानीय लोगों को सौंपेगी।
Guwahati: असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा (Himanta Biswa Sarma) ने सत्ता संभालने के बाद ही राज्य में सरकारी जमीन पर अवैध अतिक्रमण हटाने का एलान किया था। उसी के तहत राज्य के विभिन्न हिस्सों में ऐसी कार्रवाई की जा रही है। पहले भी कुछ इलाकों में इस दौरान हिंसक झड़पें हुई थी। भाजपा सरकार ने सत्ता में लौटने के बाद कहा था कि वह संदिग्ध नागरिकों का अतिक्रमण हटा कर जमीन स्थानीय लोगों को सौंपेगी। लेकिन दारंग जिले में अतिक्रमण हटाने का मामला बहुत आगे बढ़ गया है क्योंकि इस दौरान भीड़ ने पुलिस पर हमला कर दिया। पुलिस फायरिंग में तीन लोगों की मौत हो गई।
इसके बाद अब इस मामले पर राजनीति और विरोध शुरू हो गया है। हुआ यह था कि भारी पुलिस बल के साथ दरंग जिले के सिपाझार इलाके में अवैध अतिक्रण हटाने की कार्रवाई शुरू की गई। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक जब पुलिस की टीम अतिक्रमण हटाने पहुंची तो गांव वाले लाठी लेकर उनके सामने डट गए थे। उन्होंने पुलिस पर पथराव भी किया। बाद में सैकड़ों लोग वहां आ गए और पुलिस वालों पर हमला कर दिया। अतिक्रमणकारियों ने पुलिस की टीम पर पथराव किया और लाठियों व दूसरे धारदार हथियारों के साथ हमला बोल दिया। इसके जवाब में पुलिस ने फायरिंग की । जिसमें दो लोगों की मौके पर ही मौत हो गई । कम से कम दो दर्जन लोग घायल हो गए। इनमें आठ पुलिस वाले भी शामिल हैं। बाद में एक घायल ने अस्पताल में दम तोड़ दिया। इस घटना के विरोध में राज्यव्यापी बंद रखा गया जिस दौरान पथराव और पुलिस के वाहनों पर हमले की छिटपुट घटनाएँ हुईं।
सिपझार की घटना की न्यायिक जांच के आदेश दिए गए हैं। भाजपा ने इस हिंसा के पीछे इस्लामी संगठन पॉपुलर फ्रंट आफ इंडिया (पीएफआई) समेत कुछ अन्य राजनीतिक ताकतों का हाथ होने का संदेह जताया है। सिपाझार में हिंसक झड़प के दौरान एक मृतक के शरीर पर कूदने के आरोप में पुलिस के एक फोटोग्राफर विजय बनिया को भी गिरफ्तार कर लिया गया है। स्थानीय लोगों का कहना है कि पुलिस के अभियान के दौरान उस व्यक्ति की बेटी की बांह में फ्रैक्चर हो गया था। इसी से नाराज होकर उसने लाठी लेकर पुलिसवाले को दौड़ा लिया था। बाद में उसे गोली मार दी गई। लाठी से पीटा गया ।॥जिससे उसकी मौत हो गई। घटनास्थल पर मौजूद एक व्यक्ति के अनुसार, पुलिस वालों के मौके पर पहुंचने के बाद स्थानीय लोगों से उनकी कहासुनी हुई। विवाद बढ़ने पर गांव वालों ने पुलिस पर हमला कर दिया। उसके बाद पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े और फिर फायरिंग की।
दारंग जिले के पुलिस अधीक्षक और मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के भाई सुशांत बिस्वा सरमा बताते हैं,"हम अतिक्रमण हटाने के लिए मौके पर गए थे। लेकिन स्थानीय लोगों ने इसका विरोध किया। बाद में लोगों ने पथराव शुरू कर दिया। पुलिस ने आत्मरक्षा में जवाबी कार्रवाई की।" एक पुलिस अधिकारी का कहना है कि पुलिस वालों पर हमला सुनियोजित था। यह जानकारी लोगों को पहले से थी कि इलाके में अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाया जाएगा। इसलिए उन्होंने हमले की पूरी तैयारी कर ली थी।
आरोप प्रत्यारोप
भाजपा और विपक्षी दलों में इस घटना पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर लगातार तेज हो गया है। भाजपा ने आरोप लगाया है कि इस हिंसा को उकसाने में पीएफआई समेत कुछ राजनीतिक ताकतों का हाथ हो सकता है। इलाके के बीजेपी सांसद दिलीप सैकिया के अनुसार, जो घटना हुई है वह पीएफआई की कार्यप्रणाली से काफी मेल खाती है। सरकार ने जांच के आदेश दे दिए हैं। इससे हकीकत सामने आ जाएगी। उन्होंने कहा कि संदिग्ध नागरिकों को सरकारी जमीन से हटाया जा रहा है और पार्टी इस मामले में पूरी तरह सरकार के साथ है। दूसरी तरफ विपक्षी दलों ने सरकारी की इस कार्रवाई की निंदा करते हुए घटना की निष्पक्ष जांच की मांग की है। इस घटना के विरोध में आल असम माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन (आम्सू) के नेतृत्व में कई संगठनों ने इलाके में बंद का आह्वान किया था। आम्सू के नेताओं ने चेतावनी दी है कि अल्पसंख्यकों पर अत्याचार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
कांग्रेस अध्यक्ष भूपेन कुमार बोरा के नेतृत्व में पार्टी के एक प्रतिनिधिमंडल को मौके का दौरा करने से रोक दिया गया है। बाद में पार्टी ने जिला मुख्यालय मंगलदोई में एक विरोध रैली आयोजित की। पार्टी ने अतिक्रमण हटाओ अभियान तुरंत रोकने, घटना की समुचित जांच करने और जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है। आल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) के विधायक अशराफुल हुसैन की दलील है कि अतिक्रमण के खिलाफ स्थानीय लोगों की अपील हाईकोर्ट में लंबित है। क्या सरकार अदालत के आदेश का इंतजार नहीं कर सकती थी?
अतिक्रमण हटाओ अभियान
अतिक्रमण हटाने के पीछे राज्य सरकार की दलील है कि लोगों ने सरकारी जमीन पर लंबे समय से अतिक्रमण कर रखा है। दरअसल, विवाद की वजह यह है कि जिन परिवारों को हटाया गया है वे सब अल्पसंख्यक तबके के हैं। इसलिए इसे मुस्लिम-विरोधी अभियान भी कहा जा रहा है। बरपेटा के कांग्रेस सांसद अब्दुल खालेक ने गौहाटी हाईकोर्ट से इस मामले में दखल देने की अपील की है। असम कैबिनेट ने बीते आठ जून को 77 हजार बीघा जमीन को अतिक्रमण-मुक्त कर उनके समुचित इस्तेमाल के लिए एक समिति का गठन किया था। मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा है कि राज्य के तमाम इलाकों में सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा हटाने का अभियान चलाया जाएगा। उन्होंने 2019 में विधान सभा में कहा था कि राज्य में करीब 400,000 जंगल की जमीन अवैध कब्जे में है।