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Tyohar Do Din Kyu Manaye Jate Hain: आज कल हर त्योहार दो दिन क्यों मनाया जाता है, जानिए त्योहार और तिथियों से जुड़े नियम

Aaj kal har Tyohar Do Din Kyu Manaye Jate Hain: अभी पूरे देश में होली को लेकर उत्साह चरम पर हैलेकिन रंगोत्सव किस दिन मनाया जायेगा इसको लेकर पूरा देश एक मत नहीं है। इसके पीछे का धार्मिक कारण है....

Suman  Mishra | Astrologer
Published on: 6 March 2023 8:20 AM IST (Updated on: 6 March 2023 10:32 PM IST)
Tyohar Do Din Kyu Manaye Jate Hain: आज कल हर त्योहार दो दिन क्यों मनाया जाता है, जानिए त्योहार और  तिथियों से जुड़े नियम
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Tyohar Do Din Kyu Manaye Jate Hain: आज कल हर त्योहार दो दिन क्यों पड़ता है, हिंदू धर्म में आने वालेे कई त्योहार और तिथियों को लेकर असमंजस की स्थिति बनी रहती है। ज्यादातर त्योहार मतभेद की स्थिति में दो दिन मनाए जाते है। एक पर्व, फिर तिथियां दो क्यों। अक्सर यह सवाल लोगों के मन में आता है। आखिरी ऐसा क्यों होता है? क्या हर त्योहार एक ही तिथि पर पूरे देश में नहीं मनाया जा सकता? ऐसा क्यों होता है और इसका समाधान क्या है?भारतीय ज्योतिष आदिकाल से गणना के मामले में पूरे विश्व में अग्रणीय रहा है। इसके अलावा भारतीय मानक समय और स्थानीय मानक समय का फर्क भी तिथि की गणना में महत्व रखता है। पंचांग सूर्य पर आधारित होता है। इससे ही तारीखें तय होती हैं। लेकिन, शहर-शहर में सूर्योदय और सूर्यास्त के समय में अंतर रहता है। इसी दृष्टि से पंचांग निर्माता गणित लगाते हैं और इसी वजह से तिथियों में बदलाव की स्थिति बनती है।

अलग-अलग पंचांगों में तिथियों की भिन्नता रहेगी ही। कारण है- अलग-अलग स्थानों पर सूर्योदय का अलग-अलग समय होना। ऐसी स्थिति में सारे देश के पंचांग में एक जैसी तिथि नहीं हो सकती। इसके अलावा पंचांग में तिथि निर्धारण करने में सिद्धांत के मतभेद, गणित की पद्धति अलग होना भी शामिल है। कई बार पंचागों में एक समान तिथि करने के प्रयास हुए, लेकिन सूर्योदय के समय में अंतर होने से यह संभव नहीं हुआ है। हिंदू धर्मावलम्बी सभी त्योहारों के लिए निर्धारित मुहूर्तों के विषय को लेकर कई बार एक दिन अथवा दो दिनों के मध्य उलझना पड़ता है। कुछ विद्वानों का मत होता है कि तिथि आज है तो कुछ का मत होता है कि तिथि तो कल है।

अधिकतर विद्वान सूर्य के उदय होने की तिथि को ही पूर्ण दिन संकल्प आदि में प्रयोग करते हैं, किंतु मुहूर्त ग्रंथों में ये पूर्णतः स्वीकार नहीं है। सर्वमान्य नियम है कि कोई भी तिथि यदि वह सूर्य के उदय होने के बाद दो घड़ी (48मिनट) से कम है तो उसे संकल्प में ग्रहण नहीं करते क्योंकि इसके लिए सूर्योदय की अवधि से वह तिथि 48 मिनट से अधिक होनी चाहिए अन्यथा संकल्प करते समय उस दिन की दोनों तिथियों का उचारण होगा। पंचांगों में अक्सर आप देखते होंगे कि स्मार्त और वैष्णव की तिथियां भी भिन्न-भिन्न होती हैं। इन दोनों को स्मार्तानां और वैष्णवानां से जाना जाता है। दोनों में कुछ वैचारिक फर्क ही है।

सूर्य-चंद्र का समय

भारतीय ज्योतिष चंद्रमा की गति पर आधारित है और उसी के आधार पर कई युगों से पर्वों की तिथियां निकाली जाती हैं। होली पूर्णमासी पर ही मनाई जाएगी और दिवाली अमावस पर ही, जैसे स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त और गणतंत्र दिवस 26 जनवरी को ही मनाए जाएंगे। ऐसे ही वैदिक ज्योतिष में गणनाओं के आधार हमारे प्राचीन ग्रंथ हैं जिनके नियमानुसार किसी भी त्योहार की तिथि व समय निर्धारित किया जाता है। ज्योतिषीय समय की गणना देश के कुछ भागों के अक्षांश व रेखांश पर भी निर्भर करती है जहां सूर्याेदय और चंद्रोदय के समय में भौगोलिक दृष्टि से अंतर रहेगा ही।

पूर्वाेत्तर भारत में सूर्य सबसे पहले दिखेगा, पश्चिमी भारत में रात देर से होगी। इसी के आधार पर हर राज्य विशेष कर, दक्षिणी भारत के पंचांगों में कुछ अंतर अवश्य आ जाता है जो मतभेद का कारण बन जाता है। इस्लाम में भी चांद का सर्वाधिक महत्व है। ईद का समय चांद दिखने पर ही तय किया जाता है परंतु हमारे पंचांग तो इतना तक बता सकते हैं कि 100 साल बाद चांद में किस दिन,कब कहां किस समय दिखेगा।


त्योहार और तिथियों से जुड़े नियम

श्रीमद्भागवत, श्री विष्णुपुराण, वायुपुराण, अग्नि पुराण, भविष्यपुराण, सकंदपुराण, धर्मसिन्धु, निर्णयसिंन्धु आदि में पर्वों के निर्धारण के लिए बहुत से नियम दिए हैं, जिन्हें ध्यान में रखकर ही किसी त्योहार की तिथि- समय निर्धारित किए जाते हैं। आज तथ्यों का वैज्ञानिक आधार, गणित ठीक से समझाया नहीं जा रहा जिससे भ्रम, असमंजस, संशय और उपहास की स्थिति अक्सर बन जाती है। हिंदू धर्म से अधिक लचीला कोई धर्म नहीं है। इसमें ग्रंथों के अनुसार नियम बताए जाते हैं और कोई भी व्यक्ति देश, काल, पात्र आदि सुविधानुसार पर्व की भावना एवं आस्थानुसार त्योहार मनाने के लिए स्वतंत्र है।

यदि किसी त्योहार के दो दिन हैं तो आप अपने हिसाब से मना लें। हमारे यहां हर बात बहुत बारीकी से समझाई जाती है कि कौन सा उत्सव गृहस्थ मना सकते हैं, कौन सा संन्यासी वर्ग मनाए। किस नवरात्र का क्या महत्त्व है? किस श्राद्ध पर किस दिवंगत को याद किया जाए? अक्षय तृतीया या धनतेरस पर गृहपयोगी वस्तुएं क्यों खरीदी जाएं? ग्रहण कब-कब लगेंगे, कहां-कहां दिखाई देंगे, ये तथ्य कंप्यूटर आने से कई सदियों पहले से बताए जा रहे हैं। मौसम, प्राकृतिक आपदाओं की सटीक जानकारी ज्योतिषशास्त्र प्राचीनकाल से देता आ रहा है।

आजकल ज्योतिष विद और पंचांग सही रहते हैं, लेकिन सोशल मीडिया के कारण हर व्यक्ति स्वयं को ज्योतिषी, ग्रथों का विद्वान, धर्मगुरु साबित करने में लगा है और कापी पेस्ट करके भ्रमित कर रहा है। अपना वास्तविक कुछ नहीं होता। गलत सूचना एक पल में पहुंच जाती है और गलती का स्पष्टीकरण नहीं होता। इससे भी भ्रम फैल रहा है। भारतीय ज्योतिष चंद्रमा की गति पर आधारित है और उसी के आधार पर कई युगों से पर्वों की तिथियां निकाली जाती हैं। होली पूर्णमासी पर ही मनाई जाएगी और दिवाली अमावस पर ही होगा।


त्योहारों में उदय तिथि को होना जरूरी

धर्म शास्त्रों में साफ तौर पर विद्वानों कहा है कि पंचांग में कोई भी तिथि 19 घंटे से लेकर 24 घंटे की हो सकती है।तिथि का ये अंतराल सूर्य और चंद्रमा के अंतर से तय होता है। ये तिथि चाहे कभी भी लगे, लेकिन इसकी गणना सूर्योदय के आधार पर की जाती है क्योंकि पंचांग के अनुसार भी सूर्योदय के साथ ही दिन बदलता है ऐसे में जो तिथि सूर्योदय के साथ शुरू होती है, उसका प्रभाव पूरे दिन रहता है, चाहे बेशक उस दिन कोई दूसरी तिथि क्यों न लग जाए।जैसे मान लीजिए कि 6 मार्च को सूर्योदय के समय चतुर्दशी तिथि है और वो सुबह 11-12 बजे खत्म हो जाएगी और पूर्णिमा तिथि लगरही है, तो भी चतुर्दशी तिथि का प्रभाव पूरे दिन रहेगा और पूर्णिमा अगले दिन ही माना जाएगा। क्योंकि सूर्योदय के वक्त पूर्णिमा तिथि होगी7 ऐसे में 7 मार्च को चाहे प्रतिपदा शाम तक क्यों न लग जाए, लेकिन पूरे दिन पूर्णिमा का प्रभाव माना जाएगा। इसलिए इस बार ऐसा ही हुआ तो होली और होलिका दहन को लेकर विद्वानों और लोगो में मतभेद हो जाता है। उदया तिथि का हिंदू शास्त्रों में विशेष महत्व जरूर है, लेकिन हर त्योहार या व्रत उदया तिथि के हिसाब से नहीं किया जा सकता। कुछ व्रत और त्योहार काल व्यापिनी तिथि के हिसाब से भी किए जाते हैं। जैसे करवाचौथ के व्रत में चंद्रमा की पूजा होती है, ऐसे में ये व्रत उस दिन रखा जाएगा जिस दिन चंद्रमा का उदय चौथ तिथि में होता है।



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Suman  Mishra | Astrologer

Suman Mishra | Astrologer

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

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