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पूजा में बहुत जरूरी है आरती, इस नियम से संपन्न करें यह विधान

suman
Published on: 12 Dec 2018 1:04 AM GMT
पूजा में बहुत जरूरी है आरती, इस नियम से संपन्न करें यह विधान
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जयपुर: पूजा में आरती के बहुत महत्व है।आरती सिर्फ मंदिरों में ही नहीं, बल्कि पवित्र नदियों और सरोवर पर भी की जाती है। बनारस की गंगा आरती तो विश्व प्रसिद्ध है। जो लोग अज्ञानतावश पूजा की विधियों से अंजान होते हैं वह भी अपने आराध्य की आरती तो उतार ही लेते हैं। आरती किसी भी देवी-देवता या कहें अपने आराध्य की पूजा पद्धति का एक अभिन्न हिस्सा है। बिना आरती के पूजा को संपन्न नहीं माना जाता। मंदिरों में सुबह सवेरे द्वार खुलने के साथ ही लोग आरती में शामिल होने के लिये पहुंचते हैं। रात्रि के समय भी आरती के बाद ही मंदिरों के पट बंद भी होते हैं। लेकिन आरती उतारने की भी अपनी एक खास विधि होती है जिसका अपना महत्व है तो जानते हैं आरती के महत्व के बारे में कैसे करनी चाहिये आरती? क्या है आरती उतारने की सही विधि

आरती उतारने की सही विधि

आरती पूजा का एक महत्वपूर्ण अंग होती है इस शास्त्रानुसार आरक्तिका, आर्रतिका या नीराजन भी कहा जाता है। किसी भी तरह की पूजा हो या फिर कोई यज्ञ-हवन अथवा पंचोपचार-षोडशोपचार पूजा सबमें पूजा के अंत में आरती की जाती है। आमतौर पर आरती पांच बातियों से की जाती है जिस कारण इसे पंचप्रदीप भी कहा जाता है। हालांकि यह जरुरी नहीं है एक, सात या उससे अधिक बत्तियों से भी आरती उतारी जा सकती है।

घर में आरती करते वक्त एक वात का ध्यान रखे कि आरती एक या दो से ज्यादा नहो। साथ ही ईष्ट देव और दिन के हिसाब से श्रद्धा के अनुसार करें। खास अवसरों पर एक-दो से ज्यादा आरती करना शुभ रहता है।

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आरती करने के लिये चांदी, पीतल या फिर तांबे की थाली का इस्तेमाल किया जाता है। इस थाली में धातु या आटे से बना दीपक रखा जाता है। उसमें घी या तेल डालकर रूई की बत्तियों को बनाकर रखा जाता है। यदि रूई की बत्ती उपलब्ध न हो तो कपूर से भी काम चलाया जा सकता है। थाली में थोड़े फूल, अक्षत एवं मिठाइयां भी रखनी चाहिये। हालांकि बहुत सारे मंदिरों में पुजारी केवल घी का दीपक जलाकर ही आरती करते हैं। आरती करते समय परिवार के सभी सदस्य यदि साथ में हों तो बहुत अच्छा रहता है। आरती प्रात: एवं सांयकाल दोनों समय करनी चाहिये।

आरती में जो पांच बत्तियां जलाई जाती हैं उसके पीछे मान्यता है कि ये पांच बत्तियां ब्रह्मांड में मौजूद पांच तत्वों का प्रतिनिधित्व करती हैं जिनसे मिलकर हमारे शरीर की रचना भी होती है। ये पांच तत्त्व हैं आकाश, पृथ्वी, जल, वायु और अग्नि। यह भी मान्यता है आरती करते समय दिये की लौ आरती करने वाले के चारों और प्रकाश का एक सुरक्षाकवच बनाती है। जो जितनी श्रद्धा के साथ लीन होकर आरती करता है उसका कवच उतना ही मजबूत होता है। मान्यता यह भी है कि आरती से श्रद्धालु की ताम्सिक वृत्तियां सात्विक वृत्तियों में परिवर्तित हो जाती हैं और आस-पास की नकारात्मक ऊर्जा सकारात्मक ऊर्जा में बदल जाती है।

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