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Aghor Panth: जानिए उन अघोरियों के बारे में जिन्हें देख बचपन में कर देते थे सुसु
Aghor Panth: श्वेताश्वतरोपनिषद में भगवान शिव को अघोरा कहा गया है। भगवान शिव को अघोरनाथ भी कहा जाता है अघोरी शिव के इसी रूप की उपासना करते हैं। बाबा भैरव भी अघोरियों के अराध्य हैं।
भारत में अघोर पंथ। (Social Media)
Aghor Panth: जब छोटे थे तो मां डराने के लिए बोलती थी मान जा नहीं तो बाबा आ जाएगा। ये जो बाबा के नाम डराया जाता था, ये होते थे अघोरी। पहली नजर में देखने पर ये काफी डरावने लगते हैं। जिस तरह का इनका रूप होता है वो बच्चों को डराने के लिए काफी है। सिट्टी-पिट्टी गुम हो जाती थी। शैतानी भूल दुबक जाते थे। आज हम बिना डरे आपको बताने वाले हैं, कौन हैं ये अघोरी? कहां से हैं? क्या खाते हैं? कैसा है इनका जीवन? और वो सब जो इन्हें बाकी साधकों, भक्तों से अलग करता है।
- अघोर मत कहिए, अघोरियों का संप्रदाय कहिए या कहिए अघोर पंथ सब एक ही है और ये हिंदू धर्म का ही एक अंग है।
- श्वेताश्वतरोपनिषद में भगवान शिव को अघोरा कहा गया है। भगवान शिव को अघोरनाथ भी कहा जाता है अघोरी शिव के इसी रूप की उपासना करते हैं। बाबा भैरव भी अघोरियों के अराध्य हैं।
- कुछ विद्वान कहते है कि गुरु गोरखनाथ ने इस पंथ का प्रवर्तन किया, वहीँ कुछ इस उनसे भी पहले का मानते हैं। जबकि इनके होने की कथा महाभारत में भी मिलती है।
- अघोरी पंथ की 3 शाखा हैं औघड, सरभंगी और घुरे।
- अघोरियों में बाबा किनाराम अघोरी का नाम काफी सम्मान के साथ लिया जाता है। जिनका जन्म बनारस के रामगढ़ गांव में हुआ था। कीनाराम अघोर गुरु बाबा कालूराम के शिष्य थे।
- किनाराम ने गीतावली, विवेकसार और रामगीता की रचना की। कहा जाता है कि विवेकसार का लेखन शिप्रा किनारे किया था।
- कीनाराम का देहांत 1826 में हुआ था।
- किनाराम ने देवल, रामगढ़, कृमिकुंड और हरिहरपुर में मठ स्थापना की है।
- कीनाराम के अनुयायी सभी धर्म में हैं।
- वैसे तो अघोरी देश भर में होते हैं, लेकिन काशी में ये सबसे अधिक मिल जाएंगे।
अघोर का अर्थ और साधना
अघोर पंथ के मुताबिक अघोर का अर्थ है सहज और सरल। पंथ के मुताबिक मानव जन्मजात अघोर है। लेकिन जैसे जैसे वो बड़ा होता है उसमें बदलाव आने लगते हैं। और वो सहज सरल नहीं रहता। अघोर साधना उसे वापस उसी रूप में लौटाने की क्रिया है। अघोरी श्मशान में शव पर आसान जमा साधना करते हैं। कभी ये शिव सामान एक पैर पर खड़े रहकर भी साधना करते हैं। साधना के दौरान अधजली लाश, मांस और शराब इसका हिस्सा होती हैं।
शव से संबंध व भक्षण
अघोरी साधना करते समय शवों के साथ संसर्ग करते हैं। इसे वो शिव और शक्ति की उपासना का तरीका कहते हैं।
अघोरी ब्रह्मचर्य का पालन नहीं करते।
अघोरी अधजले शवों का भक्षण करते हैं। उनके साथ ही शयन करते हैं। मानव कपाल को कमंडल की तरह उपयोग करते हैं। शरीर पर शव भस्म लगाते हैं। इसे ही अपना वस्त्र मानते हैं, श्रंगार मानते हैं।
अघोर पंथ के मठ
- दक्षिणेश्वर काली मंदिर
मान्यता है कि कोलकाता के दक्षिणेश्वर काली मंदिर में देवी सती के बाएं पैर की चार अंगुली यहां गिरी थी।
- लालजी पीर, अफगानिस्तान
काबुल के मध्य में स्थित है ये पीठ। इसकी स्थापना औघड़ रतनलालजी ने की थी। उनकी समाधी भी यहां है। उन्हें अफगानी पीर मानते हैं।
- अघोर कुटी
पड़ोसी देश नेपाल की राजधानी काठमांडू में है अघोर कुटी। ये सबसे प्राचीन मठ है। इसका निर्माण बाबा सिंह शाक ने करवाया था।
- काली मठ
काली मठ उत्तराखंड में स्थित है। कहा जाता है कि काली मठ में देवी सती का पिंड गिरा था। यहां अघोरी अंतिम समय व्यतीत करने आते हैं।
- तारापीठ, पश्चिम बंगाल
पश्चिम बंगाल स्थित है तारापीठ। यहाँ माता सती को तारा रूप में पूजा जाता है।
क्या है महाभारत की कथा
अज्ञातवास के दौरान भीम को पता चलता है कि शकुनि व दुशासन भीष्म, कृष्ण व भीम को मारने की योजना बना रहे हैं। इस साजिश में उनकी सहायता नदी किनारे रहने वाला अघोरी कर रहा है। भीम जब उस स्थान पर जाते हैं, तो अघोरी पूजा करता नजर आता है। उसके सामने शकुनि और दुशासन बैठे हैं। वृद्ध अघोरी अग्नि के सामने मंत्र पाठ कर रहा है।
अघोरी शकुनी और दुशासन से पूछता है सबसे पहले किसकी हत्या करनी है? दुशासन कहता है, सबसे पहले भीष्म फिर कृष्ण और भीम की। इसके बाद अघोरी देवी का आवाहन करता है। देवी के आने पर अघोरी कहता है, 'ये भीष्म की हत्या करना चाहते हैं देवी जवाब देती हैं, भीष्म को इच्छा-मृत्यु का वरदान मिला है। कुछ और कहो? इसपर अघोरी कहता है, कृष्ण की हत्या। देवी जवाब देती हैं, उन्हें तो हम छू भी नहीं सकते। इसके बाद अघोरी भीम का नाम लेता है। देवी भीम का नाम सुन कहती हैं भेंट अर्पित करो।
इससे पहले की पूजा फिर से आरंभ हो, भीम कुटिया में आग लगा देते हैं। अघोरी की देह जलने लगती है। लेकिन वो सिर्फ कहता है, 'मां मैं आ रहा हूं।' इसके बाद वो मृत्यु को गले लगा लेता है।
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