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Ahoi Ashtami Vrat Katha Time:संतान की लंबी उम्र के लिए ध्यान रखें इन बातों का, अहोई अष्टमी कथा के श्रवण से मिलेगा संतान सुख
Ahoi Ashtami Vrat Katha Time : अहोई अष्टमी की कहानी क्या है जानिए इसदिन क्या नहीं करना चाहिए...
Ahoi Ashtami Vrat Katha Time अहोई अष्टमी व्रत के दिन मांएं अपने बच्चों की लंबी उम्र, खुशहाल जीवन तथा तरक्की के लिए निर्जला रहकर यह व्रत -उपवास रखती हैं। इस दिन दिनभर व्रत रखकर रात में तारों को देखने तथा उन्हें अर्घ्य देने के पश्चात व्रत खोला जाता है। इस साल यह अष्टमी 24 अक्टूबर को है। इस दिन महिलाएं अपनी संतान की दीर्घायु के लिए व्रत रखती है और तारों को अर्घ्य देकर अहोई माता की पूजा करती है। कहते हैं कि जो निसंतान है वो अगर अहोई अष्टमी का व्रत करे तो उनकी गोद भर जाती है।जानते है इसकी कथा और उपाय....
अहोई अष्टमी व्रत की कथा
ऐसा माना जाता है कि अरिष्टासुर नाम का राक्षस गाय के बछड़े का रूप धरके श्रीकृष्ण से युद्ध करने आया था। राक्षस होने के कारण उसका वध करना आवश्यक था। श्रीकृष्ण ने ऐसा ही किया। गाय के रूप में आएं राक्षस का वध करने के कारण श्रीकृष्ण को गौ हत्या का पाप लगा। जिस कारण राधारानी ने उन्हें उस पाप से मुक्ति के लिए इसलिए श्रीकृष्ण ने अपनी बांसुरी से कुंड खोदा और उसमें स्नान किया। इसे श्याम कुंड का नाम दिया गया। राधा रानी हमेशा कृष्ण के साथ रहती है इसलिए राधा जी ने श्याम कुंड के बगल में अपने कंगन से एक और कुंड खोदा और उसमें स्नान किया। इसे राधा कुंड का नाम दिया गया। इसके बाद इसका उल्लेख ब्रह्म पुराण व गर्ग संहिता के गिर्राज खंड में मिलता है कि श्री कृष्ण ने राधा जी को यह वरदान दिया कि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी की अर्धरात्रि में जो भी यहां स्नान करेगा उसे पुत्र की प्राप्ति होगी। तभी से इस विशेष तिथि पर पुत्र प्राप्ति की इच्छा से दंपति राधाकुंड में स्नान कर राधा रानी से आशीर्वाद लेते है। जिन दंपतियों की पुत्र प्राप्ति की इच्छा राधा रानी पूरी करती है। वो राधाकुण्ड में स्नान कर ब्रज की अधिष्ठात्री देवी श्री राधा रानी सरकार का धन्यवाद करते है।
अहोई माता की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुार बहुत समय पहले एक साहूकार हुआ करता था। उसके सात पुत्र और एक पुत्री थी। दीपावली पर्व नजदीक था। साहूकार के घर की साफ सफाई होनी थी। जिसके लिए रंग आदि का कार्य चल रहा था। इस कार्य के लिए साहुकार की पुत्री जंगल में गई और मिट्टी लाने के लिए उसने कुदाल से मिट्टी खोद ली। मिट्टी खोदते समय कुदाल स्याह के बच्चे को लग गई, जिससे उसकी मौत हो गई। तब ही स्याह ने साहूकार के पूरे परिवार को संतान शोक श्राप दे दिया। जिसके बाद साहूकार के सभी सभी पौत्रों का भी निधन हो गया।
इससे साहूकार के सभी सात बेटों की बहुएं परेशान हो गई। साहूकार की बहुएं और पुत्री मंदिर में गई और वहां पर अपना दुख देवी के सामने रखा। कहा जाता है कि तभी वहां एक संत आए, जिन्होंने सातों बहुओं को अष्टमी का व्रत रखने के लिए कहा। इन सभी ने पूरी श्रद्धा के साथ अहोई माता का व्रत किया। जिससे स्याह का क्रोध शांत हो गया और उनके खुश होते ही उसने अपना श्राप वापस ले लिया। इस प्रकार साहूकार के सभी सातों पुत्रों व पुत्री की सभी संतान जीवित हो गई।
अहोई अष्टमी के दिन क्या नहीं करना चाहिए?
इस दिन सबसे पहले गणेश जी फिर अहोई माता की पूजा कर तारों को रात में अर्घ्य देना चाहिए।
अहोई माता की पूजा करते समय खानदान की हर संतान का नाम अहोई माता के चित्र के साथ लिखें। अगर याद हो तो वंशावली का पेड़ ही बना दें।
अहोई अष्टमी का व्रत निर्जला ही रखना चाहिए। ऐसा करने से ही संतान दीर्घायु होती है उसे समृद्धि प्राप्त होती है।
अहोई अष्टमी के दिन मिट्टी को बिल्कुल भी हाथ न लगाएं । इस दिन खुरपी से कोई पौधा न उखाड़ें। ऐसा करने से अहोई माता नाराज हो दंड देती है।
अहोई अष्टमी के दिन गरीबों को दान देने से उस व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता हैं।
अहोई अष्टमी के दिन तारों को अर्घ्य देकर और तारों के निकलने के बाद ही अपने उपवास को खोलें।
अहोई अष्टमी के दिन व्रत कथा सुनते समय 7 तरह के अनाज अपने हाथ में रखें। पूजा के बाद इस अनाज को किसी गाय को खिला दें। ऐसा करने से भी आपको पूजा का शुभ फल प्राप्त हो सकता है।
इस दिन पूजा करते समय अपने बच्चों को भी बिठाएं और अहोई माता को भोग लगाने के बाद वो प्रसाद बच्चों को खिलाएं।