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Akshayavat Prayagraj: जानिए अक्षयवट की कथा और महत्व

Akshayavat Prayagraj Tree: अक्षयवट छत्र है, जो मुनियों के भी मन को मोहित कर लेता है। प्रयाग में अक्षयवट की महिमा बहुत प्राचीन होने के साथ-साथ सर्वविदित है। यह यमुना के किनारे किले की चहारदीवारी के अन्दर स्थित है। अग्निपुराण में कहा गया है कि वटवृक्ष के निकट मरने वाला सीधे विष्णु लोक जाता है।

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Published on: 20 April 2023 10:44 PM IST
kumbh 2025 PM Modi performed Parikrama at Akshayavat Vat and prayer in Prayagraj news up ki khabar
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अक्षय वट पर पूजन-अर्चन के साथ ही पीएम मोदी ने की परिक्रमा (Pic: Newstrack)

संगमु सिंहासनु सुठि सोहा।

छत्रु अखयबटु मुनि मनु मोहा॥

गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम ही उसका अत्यन्त सुशोभित सिंहासन है। अक्षयवट छत्र है, जो मुनियों के भी मन को मोहित कर लेता है। प्रयाग में अक्षयवट की महिमा बहुत प्राचीन होने के साथ-साथ सर्वविदित है। यह यमुना के किनारे किले की चहारदीवारी के अन्दर स्थित है। अग्निपुराण में कहा गया है कि वटवृक्ष के निकट मरने वाला सीधे विष्णु लोक जाता है।

सम्पूर्ण संसार के प्रलय हो जाने पर या भस्म हो जाने पर भी वटवृक्ष नहीं नष्ट होता। अक्षयवट से किले की चहारदीवारी 15 फीट दूरी पर है। इसकी शाखाएं चहारदीवारी से भूमि पर बाहर भी यमुना नदी में लटकती है। सन 1992 में अक्षयवट के चारों ओर संगमरमर लगा दिया गया है। 1999 में अक्षयवट के पास ही एक छॊटा सा मन्दिर बनाया गया है जिसमें राम, लक्ष्मण व सीता की प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं।

अक्षयवट के मूल भाग पर चारों तरफ वस्ञ लपेटने पर लगभग 22 मीटर कपड़ा लगता है। इस अक्षयवट के पत्तों का अग्रभाग अन्य बरगद के पत्तों की तुलना में नुकीला न होकर गोलापन लिए होता है। पत्ते औसत रूप में छॊटे होते हैं। औरंगजेब ने इस वटवृक्ष को जलाने का प्रयास किया था किन्तु वह सफल नहीं हुआ। अक्षयवट तीर्थराज प्रयाग का सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। पुराण कथाओं के अनुसार यह सृष्टि और प्रलय का साक्ष्य है। नाम से ही जाहिर है कि इसका कभी नाश नहीं होता।

प्रलयकाल में जब सारी धरती जल में डूब जाती है तब भी अक्षयवट हरा-भरा रहता है। बाल मुकुंद का रूप धारण करके भगवान विष्णु इस बरगद के पत्ते पर शयन करते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह पवित्र वृक्ष सृष्टि का परिचायक है।

करारविन्देन पदारविन्दं मुखारविन्दं विनिवशयन्तम्‌।

वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि॥

शूलपाणि महेश्वर इस वृक्ष की रक्षा करते हैं, तव वटं रक्षति सदा शूलपाणि महेश्वरः। पद्‌म पुराण में अक्षयवट को तीर्थराज प्रयाग का छत्र कहा गया है-

छत्तेऽमितश्चामर चारुपाणी सितासिते यत्र सरिद्वरेण्ये।

अद्योवटश्छत्रमिवाति भाति स तीर्थ राजो जयति प्रयागः॥

अक्षयवट का धार्मिक महत्व सभी शास्त्र-पुराणों में कहा गया है। चीनी यात्री ह्वेनसांग प्रयागराज के संगम तट पर आया था। उसने अक्षयवट के बारे में लिखा है- नगर में एक देव मंदिर (पातालपुरी मंदिर) है। यह अपनी सजावट और विलक्षण चमत्कारों के लिए प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि जो श्रद्धालु इस स्थान पर एक पैसा चढ़ाता है, उसे एक हजार स्वर्ण मुद्रा चढ़ाने का फल मिलता है। मंदिर के आंगन में एक विशाल वृक्ष (अक्षयवट) है, जिसकी शाखाएं और पत्तियां दूर-दूर तक फैली हैं।

पौराणिक और ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार मुक्ति की इच्छा से श्रद्धालु इस बरगद की ऊंची डालों पर चढ़कर कूद जाते थे। मुगल शासकों ने यह प्रथा खत्म कर दी। उन्होंने अक्षयवट को भी आम तीर्थयात्रियों के लिए प्रतिबंधित कर दिया। इस वृक्ष को कालान्तर में नुकसान पहुंचाने का विवरण भी मिलता है। आज का अक्षयवट पातालपुरी मंदिर में स्थित है। यहां एक विशाल तहखाने में अनेक देवताओं के साथ बरगद की शाखा रखी हुई है। इसे तीर्थयात्री अक्षयवट के रूप में पूजते हैं।

अक्षयवट का पहला उल्लेख वाल्मीकि रामायण में मिलता है। भारद्वाज ऋषि ने भगवान राम से कहा था- नर श्रेष्ठ तुम दोनों भाई गंगा और यमुना के संगम पर जाना, वहां से पार उतरने के लिए उपयोगी घाट में अच्छी तरह देखभाल कर यमुना के पार उतर जाना। आगे बढ़ने पर तुम्हें बहुत बड़ा वट वृक्ष मिलेगा। उसके पत्ते हरे रंग के हैं। वह चारों ओर से दूसरे वृक्षों से घिरा हुआ है। उसका नाम श्यामवट है। उसकी छाया में बहुत से सिद्ध पुरुष निवास करते हैं। वहां पहुंचकर सीता को उस वृक्ष से आशीर्वाद की याचना करनी चाहिए। यात्री की इच्छा हो तो यहां कुछ देर तक रुके या वहां से आगे चला जाए।

अक्षयवट को वृक्षराज और ब्रह्मा, विष्णु, शिव का रूप कहा गया है-

नमस्ते वृक्ष राजाय ब्रह्ममं, विष्णु शिवात्मक।

सप्त पाताल संस्थाम विचित्र फल दायिने॥

नमो भेषज रूपाय मायायाः पतये नमः।

माधवस्य जलक्रीड़ा लोल पल्लव कारिणे॥

प्रपंच बीज भूताय विचित्र फलदाय च।

नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं नमो नमः॥

!! हरि ॐ !

(कंचन सिंह)



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