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Alvida Jumma 2022 Aaj Hai: अलविदा जुमा 2022 आज, जानिए महत्व और क्यों जरूरी है इस दिन अल्लाह की इबादत

Alvida Jumma 2022 Aaj Hai: इस्लाम में माह-ए-रमजान (Mah-e-Ramzan) में पड़ने वाले आखिरी जुमा को अलविदा जुमा (Alvida Jumma) कहते हैं। मान्यता है कि रमजान (Ramzan) के तीसरे और आखिरी अशरे में की गई इबादत रोजेदारों को जहन्नुम की आग से बचाती है। इस अशरे में जो आखिरी जुमा आता है उसे अलविदा जुमा कहते हैं।

suman
Published By suman
Published on: 29 April 2022 1:15 AM GMT (Updated on: 29 April 2022 3:55 AM GMT)
Alvida Jumma 2022 Kab Hai
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सांकेतिक तस्वीर, सौ. से सोशल मीडिया

Alvida Jumma 2022 Aaj Hai

अलविदा जुमा 2022 आज है

भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। यहां सभी धर्म और उसके पर्व-त्योहार को समभाव से देखा जाता है।जैसे आजकल रमजान(Ramzan/Ramadan) की रौनक बाजारों में देखने को खूब मिल रही है। इस पवित्र माह को मुसलमान अल्लाह के ईनाम के रुप में देखते है। जैसे सभी धर्म अपने नियमों को मानते हैं। वैसे ही इस्लाम में की भी अपनी विशेषता है। इस धर्म में नमाज खासकर रमजान में नमाज पढ़ना जरूरी माना जाता है और अलविदा जुमा की नमाज का अपना ही महत्व होता है। इस्लाम में माह-ए-रमजान (Mah-e-Ramzan) में पड़ने वाले आखिरी जुमा को अलविदा जुम्मा (Alvida Jumma) कहते हैं। मान्यता है कि रमजान (Ramzan) के तीसरे और आखिरी अशरे में की गई इबादत रोजेदारों को जहन्नुम की आग से बचाती है। इस अशरे में जो आखिरी जुम्मा आता है उसे अलविदा जुमा कहते हैं। इस बार 29 अप्रैल को अलविदा जुम्मा है, इस दिन का इस्लाम में बहुत ही खास महत्व है।

इस दिन दुनिया भर के मुसलमान अपना सारा दिन अल्लाह की इबादत करके गुजारते हैं। इस दिन को दुनिया भर के मुसलमान पूरी अजमत अकीदत से अल्‍लाह (Allah) की इबादत (Worship) करते हैं। क्योंकि नमाज पढ़कर ही अल्लाह तक पहुंचा जा सकता है। नमाज फारसी शब्द है, जो उर्दू में अरबी शब्द सलाह या सलात का पर्याय है। कुरान शरीफ में सलात शब्द बार-बार आया है और इसमें प्रत्येक मुसलमान को (स्त्री और पुरुष) नमाज पढ़ने का आदेश ताकीद के साथ दिया गया है।

अलविदा की नमाज

अलविदा का मतलब होता है किसी चीज के रुखसत होने का यानी रमजान हमसे रुखसत हो रहा है। इसलिए इस मौके पर जुमे में अल्लाह से खास दुआ की जाती है कि आने वाला रमजान हम सब को नसीब हो। रमजान के महीने में आखिरी जुमा (शुक्रवार) को ही अलविदा जुमा कहा जाता है। अलविदा जुमे के बाद लोग ईद की तैयारियों में लग जाते है। अलविदा जुमा रमजान माह के तीसरे अशरे (आखिरी 10 दिन) में पड़ता है। यह जुमा बहुत ही अफज़ल होता है क्युकी इससे जहन्नम (दोजक) से निजात मिलती है।

अलविदा की नमाज हर मुसलमान के लिए बेहद खास होती है। इस दिन कुछ मुसलमान नए कपड़े पहन कर अपने रब की इबादत करते हैं। अलविदा को छोटी ईद भी कहते हैं। खुद अल्लाह ने पवित्र कुरआन शरीफ में इस दिन को मुसलमानों के लिए खास फरमाया है। अलविदा जुमा की नमाज दुनिया के हर मुसलमान के लिए बेहद खास होती है। इस दिन लोग रब की इबादत में अपना ज्यादा समय बिताते हैं। कहा जाता है कि अलविदा जुम्मा की नमाज के बाद सच्चे दिल से अगर अल्लाह से कोई फरियाद की जाए तो अल्लाह बंदे की हर जायद दुआ कुबूल करते हैं और उनके गुनाहों को माफ करते हैं।

सांकेतिक तस्वीर, सौ. से सोशल मीडिया

रमजान अलविदा जुमा पर क्यों जरूरी है 5 वक्त का नमाज

रमजान के मुबारक महीने रोजे रखने के साथ, 5 बार की नमाज अदा करना भी जरूरी होता है। कहते हैं कि हर नमाज को ऐसे अदा करों जैसे कि ये तुम्हारी आखिरी नमाज हो। इससे ये पता चलता है कि इस्लाम में नमाज का क्या महत्व है। इस्लाम में 5 वक्त की नमाज फर्ज है, मतलब 5 बार नमाज पढ़ना जरूरी है। नमाज अदा करने से क्या मिलता है। इससे पहले ये बता दें कि इस्लाम में बुराई करना गुनाह है नमाज इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है। नमाज जिंदगी में परहेजगारी लाती है, यानि नमाज पढ़ने वाला कभी भी गलत काम नहीं कर सकता। जो मुस्लमान 5 बार कि नमाज पढ़ते हैं, जिंदगी में वो कभी किसी कि बुराई, किसी के गलत काम में उसका साथ नहीं देते और ऐसा ना ही ऐसा बोलते हैं जिससे किसी का दिल दुखे।

5 बार की नमाज पढ़ने का महत्व है इसमें पहला फजर (सुबह की नमाज) की नमाज है जो सुबह सूर्य के उदय होने के पहले पढ़ी जाती है। ऐसा माना जाता है कि इसे करने से बरकत होती है। साथ ही तंदरुस्ती बनी रहती है।

जोहर (दोपहर की नमाज) ये दूसरी नमाज है जो मध्याह्न के बाद पढ़ी जाती है।ऐसा माना जाता है कि इसे करने से रोजी में बरकत ज्यादा होती है और बरकत बनी रहती है। नमाज का तीसरा पड़ाव असिर (दोपहर बाद) ये तीसरी नमाज है जो सूर्य के अस्त होने के कुछ पहले होती है। इसे पढ़ने से शरीर में बीमारी नहीं रहती है।

मगरिब (गोधलि बेला) चौथी नमाज जो सूर्यास्त के तुरंत बाद होती है। ऐसा कहा जाता है कि इसे पढ़ने से औलाद की तंदरुस्ती बनी रहती है। इशां (रात्रि की नमाज) अंतिम पांचवीं नमाज जो सूर्यास्त के डेढ़ घंटे बाद पढ़ी जाती है। इसके बाद सुकुन की नींद मिलती है।

नमाज के फायदे

नमाज अल्लाह से मांगने का जरिया है। इस माह रोजा रखकर रोजेदार अल्लाह की इबादत करते हैं। अल्लाह का शुक्रिया करते हैं, जिसने हमें जिंदगी बख्‍शी है। कहा जाता है कि नमाज पढ़ने वाला व्यक्ति कभी किसी के साथ कुछ गलत नहीं करता है। इसे हमेशा शिद्दत से अदा करना चाहिए। 5 वक्त की नमाज और तरावीह अदा करने से मानसिक सुकून हासिल होता है। तनाव दूर होता है और व्यक्ति ऊर्जास्वित महसूस करता है। आत्मविश्वास और याददाश्त में बढ़ोतरी होती है। नमाज में कुरान पाक के दोहराने से याददाश्त मजबूत होती है। एक साथ नमाज अदा करने से सदभाव भी बढ़ता है।





Suman  Mishra | Astrologer

Suman Mishra | Astrologer

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

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