आंवला नवमी 2018: इस देवता के आंसुओं से बना था आंवला, जानें व्रत की कथा व पूजा विधि

Shivakant Shukla
Published on: 15 Nov 2018 5:52 AM GMT
आंवला नवमी 2018: इस देवता के आंसुओं से बना था आंवला, जानें व्रत की कथा व पूजा विधि
X

लखनऊ: कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को आंवला नवमी मनाई जाती है। जिसे अक्षय नवमी भी कहा जाता है, यह इस साल 17 नवंबर को पड़ रही है। पूरे उत्तर व मध्य भारत में इसका विशेष महत्व है। महिलाएं संतान प्राप्ति और उसकी मंगलकामना के लिए यह व्रत विधि-विधान के साथ करती हैं। न्यूजट्रैक डॉट कॉम आज आपको आंवला नवमी के पर्व के पीछे की धार्मिक मान्यताओं के बारे में बताने जा रहा ​है।

ये भी पढ़ें— चक्रवात तूफान गाजा पहुंचा तमिलनाडु, भारतीय नौसेना ने जारी किया हाई अलर्ट

क्या आप जानते हैं आंवला की उत्पत्ति कैसे हुई

जब पूरी पृथ्वी जलमग्न थी और इस पर जिंदगी नहीं थी, तब ब्रम्हा जी कमल पुष्प में बैठकर निराकार परब्रम्हा की तपस्या कर रहे थे। इस समय ब्रम्हा जी की आंखों से ईश-प्रेम के अनुराग के आंसू टपकने लगे थे। ब्रम्हा जी के इन्हीं आंसूओं से आंवला का पेड़ उत्पन्न हुआ, जिससे इस चमत्कारी औषधीय फल की प्राप्ति हुई।

आंवला नवमी की कथा

एक कथा के अनुसार काशी नगर में एक निःसंतान धर्मात्मा वैश्य रहता था। एक दिन वैश्य की पत्नी से एक पड़ोसन बोली यदि तुम किसी पराए लड़के की बलि भैरव के नाम से चढ़ा दो तो तुम्हें पुत्र प्राप्त होगा। यह बात जब वैश्य को पता चली तो उसने अस्वीकार कर दिया। परंतु उसकी पत्नी मौके की तलाश में लगी रही। एक दिन एक कन्या को उसने कुएं में गिराकर भैरो देवता के नाम पर बलि दे दी, इस हत्या का परिणाम विपरीत हुआ। लाभ की जगह उसके पूरे बदन में कोढ़ हो गया तथा लड़की की प्रेतात्मा उसे सताने लगी। वैश्य के पूछने पर उसकी पत्नी ने सारी बात बता दी।

ये भी पढ़ें— हापुड़ : महाभारत के बाद शुरू हुआ था कार्तिक पूर्णिमा मेले का आयोजन, पढ़े पूरी खबर

इस पर वैश्य कहने लगा गौवध, ब्राम्ह्ण वध तथा बाल वध करने वाले के लिए इस संसार में कहीं जगह नहीं है। इसलिए तू गंगा तट पर जाकर भगवान का भजन कर तथा गंगा में स्नान कर तभी तू इस कष्ट से छुटकारा पा सकती है। वैश्य की पत्नी पश्चाताप करने लगी और रोग मुक्त होने के लिए मां गंगा की शरण में गई। तब गंगा ने उसे कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला के वृक्ष की पूजा कर आंवले का सेवन करने की सलाह दी थी। जिस पर महिला ने गंगा माता के बताए अनुसार इस तिथि को आंवला वृक्ष का पूजन कर आंवला ग्रहण किया था और वह रोगमुक्त हो गई थी। इस व्रत व पूजन के प्रभाव से कुछ दिनों बाद उसे संतान की प्राप्ति हुई। तभी से हिंदुओं में इस व्रत को करने का प्रचलन बढ़ा। तब से लेकर आज तक यह परंपरा चली आ रही है।

आंवला नवमी पूजा करने की विधि

महिलाएं आंवला नवमी के दिन स्नान आदि करके किसी आंवला वृक्ष के समीप जाएं। उसके आसपास साफ-सफाई करके आंवला वृक्ष की जड़ में शुद्ध जल अर्पित करें। फिर उसकी जड़ में कच्चा दूध डालें। पूजन सामग्रियों से वृक्ष की पूजा करें और उसके तने पर कच्चा सूत या मौली 8 परिक्रमा करते हुए लपेटें। कुछ जगह 108 परिक्रमा भी की जाती है। इसके बाद परिवार और संतान के सुख-समृद्धि की कामना करके वृक्ष के नीचे ही बैठकर परिवार, मित्रों सहित भोजन किया जाता है।

ये भी पढ़ें— UPTET: इधर नकलमाफिया भी कर रहे परीक्षा की तैयारी, प्रशासन बेखबर, पढ़ें ये स्पेशल रिपोर्ट

जानें आयुर्वेद में आंवले के चमत्कारी गुण

आचार्य चरक के मुताबिक आंवला एक अमृत फल है, जो कई रोगों का नाश करने में सफल है। साथ ही विज्ञान के मुताबिक भी आंवला में विटामिन सी की बहुतायत होती है। जो कि इसे उबालने के बाद भी पूर्ण रूप से बना रहता है। यह आपके शरीर में कोषाणुओं के निर्माण को बढ़ाता है, जिससे शरीर स्वस्थ बना रहता है।

Shivakant Shukla

Shivakant Shukla

Next Story