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Anant Chaturdashi Vrat Katha 2022 in hindi: अनंत चतुर्दशी व्रत कथा कब सुनना चाहिए, जानें इस दिन अनंतसूत्र बांधने का प्रभाव

Anant Chaturdashi Vrat Katha 2022 in hindi: भगवान श्री हरि अनंत की कृपा पाने के लिए अनंत चतुर्दशी के दिन इनकी पूजा का विधान है। जो हर साल भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। इसी दिन भगवान गणेश का भी विदाई और विसर्जन होता है। अनंत चतुर्दशी की कथा सुनने और इस दिन 14 गांठों का धागा बांधने से भगवान हरि की कृपा बरसती है।

Suman  Mishra | Astrologer
Published on: 9 Sep 2022 1:30 AM GMT (Updated on: 9 Sep 2022 2:43 AM GMT)
Anant Chaturdashi Vrat katha in Hindi 2022
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सांकेतिक तस्वीर, सौ. से सोशल मीडिया

Anant Chaturdashi Vrat katha in Hindi 2022

अनंत चतुर्दशी व्रत कब है 2022

अनंत चतुर्दशी भाद्रपद माह के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है। इस साल अनंत चतुर्दशी का त्योहार 9 सितंबर 2022, दिन शुक्रवार को मनाया जायेगा । मान्यता है कि अनंत धागा रक्षा सूत का काम करता है। इसे बांधकर नियमों का पालन अनिवार्य होता है। इसी दिन भगवान गणेश की विदाई भी होती है। साथ ही इसी दिन अनंत चतुर्दशी का व्रत भी रखा जाता है और इस दिन अनंत भगवान की पूजा की जाती है। भविष्य पुराण में इस व्रत की महिमा का वर्णन है।

इस बार 9 सितंबर को अनंत चतुर्दशी की तिथि पड़ रही है। मान्यता है कि अनंत भगवान की पूजा करने और व्रत रखने से हमारे सभी कष्ट दूर होते हैं। इस दिन संकटों से सबकी रक्षा करने वाला अनंतसूत्र बांधा जाता है, इससे सभी कष्टों का निवारण होता है। ये 12 घंटे, 24 घंटे और एक साल के लिए होता है।

अनंत चतुर्दशी का शुभ मुहूर्त

चतुर्दशी तिथि प्रारंभ : 8 सितंबर 2022,गुरुवार, सायं 4:30 बजे

चतुर्दशी तिथि समाप्त: 9 सितंबर 2022, शुक्रवार,दोपहर 1:30 पर

अनंत चतुर्दशी पूजा का समया 6:30 बजे से 1:30 बजे तक

इस दिन रवि पुष्य योग -06:03 AM से 11:35 AM तक रहेगा। साथ ही शतभिषा नक्षत्र धृति योग और चंद्रमा कुंभ राशि में रहेंगे।

अनंत चतुर्दशी की पूजा विधि

इस दिन सुबह स्नानादि के बाद भगवान विष्णु और अनंत सूत्र की षोडशोपचार विधि से पूजा शुरू करें और अनंत सूत्र को बांधते समय इस मंत्र का जाप जरूर करें।कलश की स्थापना कि जाती है जिसमे कमल का फूल रखते हैं और कुशा का सूत्र अर्पित किया जाता है।भगवान एवं कलश को कुमकुम, हल्दी का तिलक लगाया जाता है। कुशा सूत्र को हल्दी से रंगा जाता है।

अनंत देव का आवाहन कर दूप दीप एवं नैवेद्य का भोग लगाया जाता है। इस दिन खीर पूरी का भोग लगाने कि परम्परा है। उसके पश्चात सभी के हाथों में रक्षा सूत्र बांधा जाता है।इस दिन कच्चे धागों से बने 14 गांठ वाले धागे को बाजू में बांधने का विशेष महत्व है। इससे शेषनाग पर शयन करने वाले भगवान विष्णु की अनंत कृपा प्राप्त होती है।

कच्चे सूत से बना यह धागा चमत्कारी होता है यदि इसे विधि विधान से बांधा जाए। यह धागा पूरे साल पुरुषों की दाहिनी कलाई और महिलाओं की बायीं कलाई पर रहना चाहिए। यदि आप ऐसा करने में सफल हो जाता हैं तो जीवन की तमाम समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है और घर धन धान्य से भरा रहता है।

अनंत संसार महासुमद्रे मग्रं समभ्युद्धर वासुदेव। अनंतरूपे विनियोजयस्व ह्रानंतसूत्राय नमो नमस्ते।

पूजन के बाद अनंत सूत्र को अपनी बाजू पर बांध लें। पुरुष अपने दाएं हाथ में और महिलाएं बाएं हाथ पर इस रक्षा सूत्र को बांधे। ऐसा करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराएं और सपरिवार प्रसाद ग्रहण करें।

अनंत चतुर्दशी का महत्व 

श्रीकृष्ण ने दिखाया मार्ग कहा जाता है कि जब पाण्डव जुएं में अपना सारा राज-पाट हारकर वन में कष्ट भोग रहे थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अनंत चतुर्दशी का व्रत करने की सलाह दी थी। धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने भाइयों तथा द्रौपदी के साथ पूरे विधि-विधान से यह व्रत किया और अनन्त सूत्र धारण किया। इस व्रत का इतना प्रभाव था कि पाण्डव सभी संकटों से मुक्त हो गए। विधि युधिष्ठिर के पूछने पर श्री कृष्ण ने कहा कि भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को कच्चे धागे में 14 गांठ लगाकर फिर उसे कच्चे दूध में डुबोकर ओम् अनंताय नमः मंत्र से 108 बार अभिमंत्रित कर भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए धारण करना चाहिए।

अनंत चतुर्दशी के बाद ना करें ये काम

अनंत धागा बांधने के बाद आपको मांसाहार नहीं करना चाहिए। इसके अलावा इस धागे का निरादर नहीं करना चाहिए। कम से कम 14 दिन बांधने के बाद उसका किसी नदी में विसर्जन करना चाहिए। इसे पूरे साल बांधते हैं तो भगवान विष्णु की अनंत कृपा मिलती है। अपमान करने पर पाप के भागी होते हैं।

व्रत के धागा के बाद सात्विक जीवन का पालन करना चाहिए । किसी की चुगली और मजाक नहीं उड़ाना चाहिए । और ना किसी को कम आंकना चाहिए।

अनंत चतुर्दशी की व्रत कथा

कहते हैं कि कौडिण्य ऋषि ने इसका अनजाने में अपनी पत्नी के हाथ में इसे बंधा देखकर इसे जादू टोना समझा और तिरस्कार करते हुए इसे जला दिया था जिसके परिणाम स्वरूप उन्हें भारी कष्ट भोगने पड़े। बाद में 14 साल तक अनंत चतुर्दशी का व्रत रखने पर वह इस पाप से मुक्त हुए।

जानते हैं पूरी कथा - अनंत चतुर्दशी व्रत कथा प्राचीन काल में सुमंत नाम का एक नेक तपस्वी ब्राह्मण था। उसकी पत्नी का नाम दीक्षा था। उसकी एक परम सुंदरी धर्मपरायण तथा ज्योतिर्मयी कन्या थी। जिसका नाम सुशीला था। सुशीला जब बड़ी हुई तो उसकी माता दीक्षा की मृत्यु हो गई। पत्नी के मरने के बाद सुमंत ने कर्कशा नामक स्त्री से दूसरा विवाह कर लिया। सुशीला का विवाह ब्राह्मण सुमंत ने कौंडिन्य ऋषि के साथ कर दिया। विदाई में कुछ देने की बात पर कर्कशा ने दामाद को कुछ ईंटें और पत्थरों के टुकड़े बांध कर दे दिए। कौंडिन्य ऋषि दुखी हो अपनी पत्नी को लेकर अपने आश्रम की ओर चल दिए। परंतु रास्ते में ही रात हो गई। वे नदी तट पर संध्या करने लगे। सुशीला ने देखा- वहां पर बहुत-सी स्त्रियां सुंदर वस्त्र धारण कर किसी देवता की पूजा पर रही थीं।

सुशीला के पूछने पर उन्होंने विधिपूर्वक अनंत व्रत की महत्ता बताई। सुशीला ने वहीं उस व्रत का अनुष्ठान किया और चौदह गांठों वाला डोरा हाथ में बांध कर ऋषि कौंडिन्य के पास आ गई। कौंडिन्य ने सुशीला से डोरे के बारे में पूछा तो उसने सारी बात बता दी। उन्होंने डोरे को तोड़ कर अग्नि में डाल दिया, इससे भगवान अनंत जी का अपमान हुआ। परिणामत: ऋषि कौंडिन्य दुखी रहने लगे। उनकी सारी सम्पत्ति नष्ट हो गई।

इस दरिद्रता का उन्होंने अपनी पत्नी से कारण पूछा तो सुशीला ने अनंत भगवान का डोरा जलाने की बात कहीं। पश्चाताप करते हुए ऋषि कौंडिन्य ने अनंत डोरे की प्राप्ति के लिए वन में चले गए। वन में कई दिनों तक भटकते-भटकते निराश होकर एक दिन भूमि पर गिर पड़े। तब अनंत भगवान प्रकट होकर बोले- 'हे कौंडिन्य! तुमने मेरा तिरस्कार किया था, उसी से तुम्हें इतना कष्ट भोगना पड़ा। तुम दुखी हुए। अब तुमने पश्चाताप किया है। मैं तुमसे प्रसन्न हूं। अब तुम घर जाकर विधिपूर्वक अनंत व्रत करो। चौदह वर्षपर्यंत व्रत करने से तुम्हारा दुख दूर हो जाएगा। तुम धन-धान्य से संपन्न हो जाओगे। कौंडिन्य ने वैसा ही किया और उन्हें सारे क्लेशों से मुक्ति मिल गई।' श्रीकृष्ण की आज्ञा से युधिष्ठिर ने भी अनंत भगवान का व्रत किया जिसके प्रभाव से पांडव महाभारत के युद्ध में विजयी हुए तथा चिरकाल तक राज्य करते रहे।

इसी तरह पांडवों और राजा हरिश्चन्द्र ने भी अनंत चतुर्दशी व्रत किया था। यह व्रत महाभारत काल में जब पांडव अज्ञातवास में थे तब जीवन के कष्टों से मुक्ति के लिए पांडवों ने भी अनंत चतुर्दशी का व्रत किया था। वहीं, राजा हरिश्चन्द्र ने भी इस व्रत को पूरा कर अपने दुखों से मुक्ति पाई थी। इस व्रत की कथा की भी बहुत मह‍िमा बताई गई है।


Suman  Mishra | Astrologer

Suman Mishra | Astrologer

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

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