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Apara Ekadashi Vrat Katha: अपरा / अचला एकादशी व्रत कथा

Apara Ekadashi Vrat Katha: ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अचला एकादशी तथा अपरा एकादशी दोनों ही नामों से जाना जाता है।

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Published on: 18 May 2023 10:42 AM GMT
Apara Ekadashi Vrat Katha: अपरा / अचला एकादशी व्रत कथा
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Apara Ekadashi 2023

Apara Ekadashi Vrat Katha: धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण से कहते हैं: हे भगवन्! आपने वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी अर्थात मोहिनी एकादशी के बारे मे विस्तार पूर्वक बतलाया। अब आप कृपा करके ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी का क्या नाम है? तथा उसकी कथा क्या है? इस व्रत की क्या विधि है, कृपा कर यह सब विस्तारपूर्वक कहिए।

भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे: हे राजन! ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अचला एकादशी तथा अपरा एकादशी दोनों ही नामों से जाना जाता है। क्योंकि यह अपार धन देने वाली है। जो मनुष्य इस व्रत को करते हैं, वे संसार में प्रसिद्ध हो जाते हैं।

इस दिन भगवान त्रिविक्रम की पूजा की जाती है। भगवान त्रिविक्रम में भगवान विष्णु, भगवान विट्ठल और बालाजी के दर्शन होते हैं।

अपरा एकादशी का महत्व

अपरा एकादशी के व्रत के प्रभाव से ब्रह्म हत्या, भूत योनि, दूसरे की निंदा आदि के सब पाप दूर हो जाते हैं। इस व्रत के करने से परस्त्री गमन, झूठी गवाही देना, झूठ बोलना, झूठे शास्त्र पढ़ना या बनाना, झूठा ज्योतिषी बनना तथा झूठा वैद्य बनना आदि सब पाप नष्ट हो जाते हैं।

जो क्षत्रिय युद्ध से भाग जाए वे नरकगामी होते हैं, परंतु अपरा एकादशी का व्रत करने से वे भी स्वर्ग को प्राप्त होते हैं। जो शिष्य गुरु से शिक्षा ग्रहण करते हैं फिर उनकी निंदा करते हैं, वे अवश्य नरक में पड़ते हैं। मगर अपरा एकादशी का व्रत करने से वे भी इस पाप से मुक्त हो जाते हैं।

जो फल तीनों पुष्कर में कार्तिक पूर्णिमा को स्नान करने से या गंगा तट पर पितरों को पिंडदान करने से प्राप्त होता है, वही अपरा एकादशी का व्रत करने से प्राप्त होता है। मकर के सूर्य में प्रयागराज के स्नान से, शिवरात्रि का व्रत करने से, सिंह राशि के बृहस्पति में गोमती नदी के स्नान से, कुंभ में केदारनाथ के दर्शन या बद्रीनाथ के दर्शन, सूर्यग्रहण में कुरुक्षेत्र के स्नान से, स्वर्णदान करने से अथवा अर्द्ध प्रसूता गौदान से जो फल मिलता है, वही फल अपरा एकादशी के व्रत से मिलता है।

यह व्रत पापरूपी वृक्ष को काटने के लिए कुल्हाड़ी है। पापरूपी ईंधन को जलाने के लिए ‍अग्नि, पापरूपी अंधकार को मिटाने के लिए सूर्य के समान, मृगों को मारने के लिए सिंह के समान है। अत: मनुष्य को पापों से डरते हुए इस व्रत को अवश्य करना चाहिए। अपरा एकादशी का व्रत तथा भगवान का पूजन करने से मनुष्य सब पापों से छूटकर विष्णु लोक को जाता है।

अपरा एकादशी व्रत कथा

इसकी प्रचलित कथा के अनुसार प्राचीन काल में महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। उसका छोटा भाई वज्रध्वज बड़ा ही क्रूर, अधर्मी तथा अन्यायी था। वह अपने बड़े भाई से द्वेष रखता था। उस पापी ने एक दिन रात्रि में अपने बड़े भाई की हत्या करके उसकी देह को एक जंगली पीपल के नीचे गाड़ दिया। इस अकाल मृत्यु से राजा प्रेतात्मा के रूप में उसी पीपल पर रहने लगा और अनेक उत्पात करने लगा।

एक दिन अचानक धौम्य नामक ॠषि उधर से गुजरे। उन्होंने प्रेत को ज्ञानचक्षु से देखा और तपोबल से उसके अतीत को जान लिया। अपने तपोबल से प्रेत उत्पात का कारण समझा। ॠषि ने प्रसन्न होकर उस प्रेत को पीपल के पेड़ से उतारा तथा परलोक विद्या का उपदेश दिया।

दयालु ॠषि ने राजा की प्रेत योनि से मुक्ति के लिए स्वयं ही अपरा एकादशी का व्रत किया। उसे अगति से छुड़ाने को उसका पुण्य प्रेत को अर्पित कर दिया। इस पुण्य के प्रभाव से राजा की प्रेत योनि से मुक्ति हो गई। वह ॠषि को सप्रेम धन्यवाद देता हुआ दिव्य देह धारण कर पुष्पक विमान में बैठकर स्वर्ग को चला गया।

हे राजन! यह अपरा एकादशी की कथा मैंने लोकहित के लिए कही है। इसे पढ़ने अथवा सुनने से मनुष्य सब पापों से छूट जाता है।

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