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अपराजिता देवी कौन है? Aparajita Devi Kon Hai: नवरात्रि की पूजा क्यों अधूरी है, जानिए दशहरा कैसे करें इनकी पूजा और मंत्र जाप
Aparajita devi kon hai : दशानन रावण का वध श्रीराम ने किया था ये सर्वविदित है।लेकिन श्रीराम ने रावण वध के लिए शक्ति का आश्रय लिया था और शक्ति की पूजा कर रावण के वध का आशीर्वाद पाया था। वो शक्ति थी अपराजिता देवी। अपराजिता देवी समस्त ब्रह्माण्ड का पालन पोषण करती है।आदि और अंत उनमे ही निहित है।
Aprajita Devi Koun Hai
अपराजिता देवी कौन है?
देवी अपराजिता के पूजन का आरंभ तब से हुआ है जब से चारों युगों की शुरुआत हुई। नवदुर्गाओं की माता अपराजिता संपूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्तिदायिनी और ऊर्जा उत्सर्जन करने वाली हैं।दशानन रावण का वध श्रीराम ने किया था ये सर्वविदित है।लेकिन श्रीराम ने रावण वध के लिए शक्ति का आश्रय लिया था और शक्ति की पूजा कर रावण के वध का आशीर्वाद पाया था। वो शक्ति थी अपराजिता देवी। अपराजिता देवी समस्त ब्रह्माण्ड का पालन पोषण करती है।आदि और अंत उनमे ही निहित है। महर्षि वेद व्यास ने अपराजिता देवी को आदिकाल की श्रेष्ठ फल देने वाली, देवताओं द्वारा पूजित और त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) द्वारा नित्य ध्यान में लाई जाने वाली देवी कहा है।
राम-रावण युद्ध नवरात्रों में हुआ। रावण की मृत्यु अष्टमी-नवमी के संधिकाल में और दाह संस्कार दशमी तिथि को हुआ। इसके बाद विजयदशमी मनाने का उद्देश्य रावण पर राम की जीत यानी असत्य पर सत्य की जीत हो गया। आज भी संपूर्ण रामायण की रामलीला नवरात्रों में ही खेली जाती है और दसवें दिन सायंकाल में रावण का पुतला जलाया जाता है। इस दौरान यह ध्यान रखा जाता है कि दाह के समय भद्रा न हो। मतलब ये कि जब रावण दहन होता है तब भद्रा होने से अशुभ होता है।
अपराजिता देवी का आरंभ कब हुआ
विजयदशमी को प्रातःकाल अपराजिता लता का पूजन, अतिविशिष्ट पूजा-प्रार्थना के बाद विसर्जन और धारण आदि से महत्वपूर्ण कार्य पूरे होते हैं। ऐसी पुराणों में मान्यता हैं। देवी अपराजिता को देवताओं द्वारा पूजित, महादेव, सहित ब्रह्मा विष्णु और विभिन्न अवतार के द्वारा नित्य ध्यान में लाई जाने वाली देवी कहा है। विजय दशमी के दिन 'माता अपराजिता' का पूजन किया जाता है। विजयदशमी का पर्व उत्तर भारत में आश्विन शुक्ल पक्ष के नवरात्र संपन्न होने के उपरांत मनाया जाता है। शास्त्रों में दशहरे का असली नाम विजयदशमी है, जिसे 'अपराजिता पूजा' भी कहते हैं।
अपराजिता देवी की पूजा विधि
दशहरे के दिन अपराजिता के पेड़ या उसके फूलों की पूजा करना भी शुभ माना जाता है। अपराजिता पेड़ या फूल को देवी अपराजिता का रूप माना जाता है। अपराजिता की पूजा करने का सबसे अच्छा समय समय के हिंदू विभाजन के अनुसार अपराह्ण समय है। जीत के लिए देवी अपराजिता की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त नवरात्र के नौ दिन मां दुर्गा के नौ रूपों की आराधना करते हैं उन्हें विजयादशमी के दिन मां अपराजिता की पूजा अवश्य करनी चाहिए। देवी अपराजिता की उपासना के बिना नवरात्र की पूजा अधूरी मानी जाती है। इसलिए विजयादशमी के दिन मां दुर्गा की विदाई से पूर्व अपराजिता के फूल से मां की पूजा कर उनसे अभयदाय मांगा जाता है। इस तरह की आराधना से देवी प्रसन्न होकर विजयी होने का आर्शीवाद प्रदान करती हैं। साथ ही बंगाल के कुछ हिस्सों में प्रतिमा विसर्जन से पहले सुहागिन औरतें मां दुर्गा को अपना सिंदूर अर्पित कर अक्षय सुहाग की कामना करती हैं। इस तरह विसर्जन यात्रा में महिलाएं सिंदूरखेला करती है। इस प्रकार दुर्गा प्रतिमा के विसर्जन किया जाता है। विसर्जन के बाद श्रद्धालुओं पर जल का छिड़काव किया जाता है।
अपराजिता पूजा का मुहूर्त स्वयंद्धि मुहूर्त माना जाता है इसलिए इस मुहूर्त में किए गए सभी कार्य सफल होते हैं। इस दिन अपराजिता स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। अपराजिता के नीले फूल से देवी अपराजिता की पूजा करने से अपराजित रहने का वरदान मिलता है। अपराजिता की पूजा के बाद मांएं अपनी बच्चों की कलाई पर अपराजित की बेल लपेटकर हमेशा उनके दीर्घायु होने का आर्शीवाद देती हैं। इसके बाद अपराजिता के फूलों को स्त्री और पुरुष अपने माथे पर लगाते हैं। इसे सौभाग्य का सूचक माना जाता है।
अपराजिता देवी का मंत्र
अपराजिता देवी सकल सिद्धियों की प्रदात्री साक्षात माता दुर्गा का ही अवतार हैं। भगवान श्री राम ने माता अपराजिता का पूजन करके ही राक्षस रावण से युद्ध करने के लिए विजय दशमी को प्रस्थान किया था। यात्रा के ऊपर माता अपराजिता का ही अधिकार होता है। ज्योतिष के अनुसार माता अपराजिता के पूजन का समय अपराह्न अर्थात दोपहर के तत्काल बाद का है। अत: अपराह्न से संध्या काल तक कभी भी माता अपराजिता की पूजा कर यात्रा प्रारंभ की जा सकती है। यात्रा प्रारंभ करने के समय माता अपराजिता की यह स्तुति करनी चाहिए, जिससे यात्रा में कोई विघ्न उत्पन्न नहीं होता- शृणुध्वं मुनय: सर्वे सर्वकामार्थसिद्धिदाम्।
असिद्धसाधिनीं देवीं वैष्णवीमपराजिताम्।।
नीलोत्पलदलश्यामां भुजङ्गाभरणोज्ज्वलाम्।
बालेन्दुमौलिसदृशीं नयनत्रितयान्विताम्।।
पीनोत्तुङ्गस्तनीं साध्वीं बद्धद्मासनां शिवाम्।
अजितां चिन्येद्देवीं वैष्णवीमपराजिताम्।।
अपराजिता देवी का पूजन करने से देवी समस्त जगत के जीवों के लिए रक्षा कार्य करती है । अष्टदल पर आरूढ़ हुआ यह त्रिशूलधारी रूप शिव के संयोग से, दिक्पाल एवं ग्राम देवता की सहायता से आसुरी शक्तियां अर्थात बुरी शक्तियों का नाश करता है। दशमी तिथि की संज्ञा 'पूर्ण' है, अत: इस दिन यात्रा प्रारम्भ करना श्रेष्ठ माना जाता है। श्री वाल्मीकि रामायण के अनुसार श्रवण नक्षत्र युक्त विजय दशमी को ही भगवान श्री राम ने किष्किंधा से दुराचारी राक्षस रावण का विनाश करने के लिए हनुमानादि वानरों के साथ प्रस्थान किया था। आज तक रावण वध के रूप में विजय दशमी को अधर्म के विनाश के प्रतीक पर्व के रूप में भी मनाया जाता है।