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Lodheshwar Mahadev Mandir: लोधेश्वर महादेव मंदिर में पूरी होती है हर मनोकामना, 12 ज्योतिर्लिंगों का विशेष महत्त्व
Lodheshwar Mahadev Mandir: उल्लेखनीय है कि लोधेश्वर महादेव से 2 किलोमीटर उत्तर नदी के पास आज भी कुल्छात्तर में यज्ञ कुंड के प्राचीन निशान मौजूद हैं, उसी समय यहां पांडवों ने इस शिवलिंग की स्थापना भी की थी।
Lodheshwar Mahadev Mandir: उत्तरप्रदेश के बाराबंकी तहसील रामनगर में स्थित लोधेश्वर महादेव मंदिर हिंदूओं की आस्था का एक बहुत बड़ा केंद्र माना जाता है। बता दें कि यह मंदिर पांडवकालीन मंदिर है जो की पूरी तरह से भगवान शिव को समर्पित है। उल्लेखनीय है कि लोधेश्वर मंदिर का शिवलिंग देशभर के 51 शिवलिंगों में से एक माना जाता है।
हिन्दू धार्मिक पुराणों के अनुसार लोधेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना पांडवों द्वारा महाभारत काल में अज्ञातवास के दौरान की गई थी। आज भी इस पूर क्षेत्र में पांडव कालीन अवशेष को देखा जा सकता है। बता दें कि यहां घना जंगल होने के कारण बाराबंकी को महाभारत काल के समय बाराह वन के नाम से जाना जाता था। घना वन होने के कारण पांडव यहाँ अज्ञातवास के समय छुपे थे।
मान्यतााओं के मुताबिक पांडवों ने यहां वेद व्यास मुनि की प्रेरणा से घाघरा नदी के किनारे कुल्छात्तर नामक जगह पर रूद्र महायज्ञ का आयोजन किया था। उल्लेखनीय है कि लोधेश्वर महादेव से 2 किलोमीटर उत्तर नदी के पास आज भी कुल्छात्तर में यज्ञ कुंड के प्राचीन निशान मौजूद हैं, उसी समय यहां पांडवों ने इस शिवलिंग की स्थापना भी की थी। पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान रामनगर से सटे सिरौली गौसपुर इलाके में पारिजात वृक्ष को लगाया था और गंगा दशहरा के दौरान खिलने वाले सुनहरे फूलों से भगवन शिव की आराधना की थी, विष्णु पुराण में यह उल्लेख है कि इस पारिजात वृक्ष को भगवान कृष्ण स्वर्ग से लाए थे और अर्जुन ने अपने बाण से पाताल में छिद्र कर इसे स्थापित किया था।
देश के 12 ज्योतिर्लिंगों के साथ उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले का पौराणिक लोधेश्वर महादेव मंदिर का अलग ही धार्मिक महत्व है। सावन के दिनों में देश के राज्यों से लाखों श्रद्धालु इस महाभारत कालीन शिवलिंग पर जलाभिषेक के लिए पहुंच रहे हैं।
कैसे पड़ा लोधेश्वर महादेवा मंदिर का नाम
रामनगर तहसील क्षेत्र स्थित लोधेश्वर महादेवा मंदिर में खास कर सावन के दिनों में आस्था का सैलाब उमड़ पड़ता है । लोग कोसों दूर से पैदल चल कर लंबी कतारों में लगकर जलाभिषेक करने के लिए अपनी बारी का इंतजार करते हैं । पौराणिक मान्यतााओं के मुताबिक़ महाभारत काल में पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान यहां शिवलिंग को स्थापित किया था और तकरीबन 12 वर्षों तक रुद्र महायज्ञ भी किया था। धार्मिक प्रचलित कथा के अनुसार लोधराम नाम किसान अपने खेतों में पानी लगाए हुए थे । जिसमें सिंचाई का सारा पानी एक गड्ढे में जा रहा था लेकिन वो गड्ढा पानी से भी नहीं भर रहा था। अंततः किसान लोधराम परेशान होकर रात को घर लौट आया और उन्होंने सपने में देखा, जिस गड्ढे में पानी जा रहा था, वहां भगवान शिवलिंग मौजूद था। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ये वही शिवलिंग था, जिसकी माता कुंती महाभारत काल में पूजा-अर्चना करती थीं। यह सपने को देख किसान सुबह-सुबह खेत पहुंचकर वहां की खोदाई करवाई। खोदाई के दरमियान वहां पर शिवलिंग मिला, जिसकी मंदिर की स्थापना के बाद से यहाँ का नाम लोधेश्वर महादेवा नाम पड़ा।
पूरी होती है हर मनोकामना
मंदिर के महंत के अनुसार देश के कई राज्यों से श्रद्धालु अपनी मनोकामना यहाँ आकर पांडवों द्वारा स्थापित शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं। मान्यता कि जो भक्त यहाँ पूरी श्रद्धा के साथ आते हैं भगवान भोले शंकर जरूर पूरी करते हैं। उल्लेखनीय है कि भगवान भोले बाबा से अपनी इच्छा पूर्ति के लिए भक्त कानपुर के बिठूर से पवित्र गंगा नदी का जल लेकर श्रद्धालु 3 से 4 दिनों की पैदल यात्रा कर लोधेश्वर बाबा के दरबार पहुंचकर जलाभिषेक करते हैं। सावन मास के दिनों में विशेषकर सोमवार को इसका खास महोत्सव होता है। दूर -दराज़ से लाखों शिव भक्त अपनी मनोकामना पूर्ण करने को लेकर यहां आते हैं। लखनऊ से आयी शिव भक्त शोभा ठाकुर ने बताया कि हम लोग परिवार सहित भोले बाबा के दर्शन और रुद्राभिषेक कराने के लिए हर साल यहाँ आते हैं।
उनके अनुसार इस जाग्रत जगह पूजन करने से मन के अंदर एक दिव्य ऊर्जा की अनुभूति होती है। हर साल यहाँ सावन मास रुद्राभिषेक कराने वाले भक्तों की लम्बी लाइन लगती है। अर्चना सिंह जो हर वर्ष यहाँ सावन में रुद्राभिषेक कराने आती है ने बताया कि यहाँ आकर भोले बाबा का दर्शन प्राप्त कर एक अलग सी संतुष्टि और शांति का अनुभव होता हैं जिसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता बल्कि सिर्फ महसूस किया जा सकता है। वहीँ लखनऊ निवासी रेखा भाटिया के अनुसार यहाँ भगवान् भोलेशंकर का पूजन करते समय मन इतना ज्यादा भाव -विभोर हो उठता है कि बरबस महादेव के समक्ष अंदर के भाव आंसू निकल आते हैं। मान्यता है कि सावन मास में यहाँ जो भी भक्त सच्ची श्रद्धा के साथ आते हैं भगवान भोलेनाथ उनकी मनोकामनाओं की पूर्ति अवश्य करते हैं। साल के 365 दिन यहाँ भक्तों की भीड़ लगी रहती है।
मंदिर में ही मौजूद है जलकुंड
उल्लेखनीय है कि लोधेश्वर महादेव मंदिर में महाभारत काल से ही एक जलकुंड मौजूद है। जिसे पांडव-कुप्प के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि जो व्यक्ति एक बार इस कुंड के पानी को पीता हैं उसकी कई बीमारियां दूर हो जाती है। बता दें कि इस मंदिर में सावन मास में पूरे देश से लाखों-हजारों श्रद्धालु कावड़ लेकर शिवलिंग पर जल चढ़ाने आते हैं। इसके लिए श्रद्धालु अपनी कावड़ यात्रा कानपुर देहत के वाणेश्वर, बांदा, जालौन और हमीरपुर से भगवान शिव की पूजा करते हुए आखिरी में अपनी कावड़ यात्रा लोधेश्वर महादेव पर जल अर्पित कर अपनी यात्रा का समापन करते है।