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Basoda ki Kahani in Hindi बसोड़ा क्या है और क्यों मनाया जाता है?, जानिए बसौड़ा की कहानी
Basoda ki Kahani in Hindi : बसोड़ा सिर्फ एक व्रत नहीं, बल्कि स्वच्छता, स्वास्थ्य और धार्मिक आस्था से जुड़ा पर्व है। इस दिन माता की पूजा करने से परिवार में सुख-समृद्धि आती है और बीमारियों से रक्षा होती है।
Basoda Kab Hai बसोड़ा कब है
बसोड़ा पर्व हर साल चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष शीतला अष्टमी 22 मार्च 2025 (शनिवार) को पड़ रही है। इस दिन शीतला माता की पूजा की जाती है, जिसे बसोड़ा के नाम से भी जाना जाता है।
बसोड़ा का महत्व
हिंदू धर्म में शीतला माता को बीमारियों से बचाने वाली देवी माना जाता है। खासतौर पर चेचक, फोड़े-फुंसी, और अन्य त्वचा रोगों से रक्षा के लिए माता की पूजा की जाती है। शीतला माता की पूजा करने से घर में सुख-शांति बनी रहती है और स्वास्थ्य की रक्षा होती है।
ऐसी मान्यता है कि कलश में सभी 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास रहता है। बसोड़ा पर्व एक तरफ से लोगों को सफाई के प्रति जागरूक भी करता है कि व्यक्ति ना सिर्फ खुद को स्वच्छ रखें, बल्कि अपने आसपास के वातावरण को भी साफ , सुंदर और स्वच्छ रखें।
बासोड़ा का शाब्दिक अर्थ है 'बासी'। हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार, शीतला अष्टमी के दिन रसोई में आग जलाना मना होता है। लोग इस दिन पहले पूरा भोजन तैयार करते हैं और अगले दिन यानी बसोड़ा पर भी उसी भोजन का सेवन करते हैं।
बसोड़ा पूजा का मुहूर्त
चैत्र कृष्ण अष्टमी तिथि 22 मार्च को प्रात: 4. 23 मिनट से शुरू हो रही है। यह तिथि 23 मार्च को सुबह 5 .23 मिनट तक रहेगी। उदयातिथि के आधार पर बसोड़ा का पर्व 22 मार्च दिन शनिवार को मनाया जाएगा।
इस साल 22 मार्च को बसोड़ा पर पूजा के लिए 12 घंटे 11 मिनट का शुभ मुहूर्त है। उस दिन आप शीतला माता की पूजा का मुहूर्त सुबह 06 बजकर 23 मिनट से शाम 6 बजकर 33 मिनट तक है। माता शीतला देवी की उपासना से सभी तरह पाप नष्ट हो जाते है। शीतलाष्टमी के एक दिन पहले भोग लगाने के लिए बासी खाने का भोग तैयार किया जाता है। शीतला अष्टमी के दिन माता को प्रसाद चढ़ाया जाता है।
बसोड़ा की धार्मिक कथा
ऐसी पौराणिक मान्यता है कि शीतला देवी की उपासना से सभी तरह के पाप नष्ट हो जाते है। शीतला माता की पूजा करने के बाद बसौड़े के तौर पर मीठे चावल का प्रसाद चढ़ाया जाता है। कई लोग इस दिन शीतला माता के मंदिर जाकर हल्दी और बाजरे से पूजा करते हैं। पूजा के बाद बसौड़ा व्रत कथा कही जाती है। पूजा के बाद परिवार के सभी लोगों को प्रसाद देकर एक दिन पहले बनाया गया बासी भोजन खाया जाता है। स्कंद पुराण में शीतला माता के विषय में विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है, जिसके अनुसार देवी शीतला चेचक जैसे रोग की देवी हैं, यह हाथों में कलश, सूप, मार्जन(झाडू) तथा नीम के पत्ते धारण किए होती हैं तथा गर्दभ की सवारी किए यह अभय मुद्रा में विराजमान हैं।
शीतला माता के संग ज्वरासुर ज्वर का दैत्य, हैजे की देवी, चौंसठ रोग, घेंटुकर्ण त्वचा रोग के देवता एवं रक्तवती देवी विराजमान होती हैं इनके कलश में दाल के दानों के रूप में विषाणु या शीतल स्वास्थ्यवर्धक एवं रोगाणु नाशक जल होता है। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि शीतलाष्टक स्तोत्र की रचना स्वयं भगवान शिव जी ने लोक कल्याण हेतु की थी। तभी से शीतला माता की अष्टमी को पूजा करने की परंपरा चली आ रही है। कई लोग इस दिन मां का आशीर्वाद पाने और पूरे साल बीमारियों से दूर रखने के लिए उपवास भी करते हैं। अष्टमी के दिन बासी वस्तुओं का नैवेद्य शीतला माता को अर्पित किया जाता है। इस दिन व्रत उपवास किया जाता है तथा माता की कथा का श्रवण होता है। कथा समाप्त होने पर मां की पूजा अर्चना होती है तथा शीतलाष्टक को पढ़ा जाता है, शीतलाष्टक शीतला देवी की महिमा को दर्शाता है, साथ ही साथ शीतला माता की वंदना उपरांत उनके मंत्र का उच्चारण किया जाता है जो बहुत अधिक प्रभावशाली मंत्र है जो इस प्रकार है-
वन्देऽहंशीतलांदेवीं रासभस्थांदिगम्बराम्।
मार्जनीकलशोपेतां सूर्पालंकृतमस्तकाम्। ।
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