TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

Bhagavad Gita : श्रीमद्भगवद्गीता

Bhagavad Gita : सुहृद्, मित्र, वैरी, उदासीन, मध्यस्थ, द्वेष्य और सम्बन्धियों में,तथा साधु-आचरण करने-वालों में और पाप-आचरण करने वालों में भी समबुद्धि वाला मनुष्य श्रेष्ठ है

Network
Newstrack Network
Published on: 23 March 2024 12:42 PM IST
Bhagavad Gita :
X

Bhagavad Gita :

Bhagavad Gita : सुहृन्मित्रार्युदासीनमध्यस्थद्वेष्यबन्धुषु।

साधुष्वपि च पापेषु समबुद्धिर्विशिष्यते॥

सुहृद्, मित्र, वैरी, उदासीन, मध्यस्थ, द्वेष्य और सम्बन्धियों में,तथा साधु-आचरण करने-वालों में और पाप-आचरण करने वालों में भी समबुद्धि वाला मनुष्य श्रेष्ठ है ।

जो स्वाभाविक हित करता ही रहे,वह ‘सुहृद्’ है ।

जो हित के बदले हित करे वह ‘मित्र’ है ।


जो स्वाभाविक वैरी हैं,

(जैसे बिल्ली-चूहा )

वे ‘अरि’ हैं |

जो किसी कारण से वैरी हैं, वे ‘शत्रु’ हैं।

शरीर सबके एक ( पांचभौतिक ) हैं और जीव भी सब में एक है।

पर समबुद्धि का तात्पर्य है कि सबमें परमात्मतत्त्व भी एक है।ऐसा देखना।

सब जगह एक परमात्मतत्त्व परिपूर्ण है।

यह तात्त्विक समता ही वास्तव में समता है ।

सबमें परमात्मतत्त्वको देखना और हृदय में राग-द्वेष न होना।यही सार बात है ।

व्यवहार विषम होने पर भी तात्त्विक दृष्टि सम रहनी चाहिये ।

व्यवहार में फर्क होने पर भी हित का भाव एक रहे।

साधु को अच्छी तरह से भोजन कराओ,

और कसाई को उतना भोजन कराओ,*ड

जिससे वह जीता रहे,

मरे नहीं---यह व्यवहार है।

गीता का सम्पूर्ण उपदेश समता का है।



\
Shalini Rai

Shalini Rai

Next Story