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Bhagavad Gita Gyan: सत्य को पाने के लिये संतोष का साधन करना परम आवश्यक है
Bhagavad Gita Gyan: भगवान् ने गीता में भक्तों के लक्षण बतलाते हुए दो बार ‘संतुष्ट’ शब्द का प्रयोग करके भक्तों में संतोष की आवशयकता सिद्ध की है
यदि मनुष्य अपने जीवन में संतोष धारण कर ले तो वो सदा के लिए सुखी बन जायेगा।
मानव-जीवन का एकमात्र उद्देश्य है,
सत्य को पाने के लिये संतोष का साधन करना परम आवश्यक है |
संतोष का साधन दो प्रकार से होता है –
आत्मा के स्वरूप को समझकर आत्मा की पूर्णता में विस्वास करने से अथवा परम मंगलमय सर्वसुहृद भगवान् के विधान पर निर्भर करने से |
दोनों का फल एक ही है |
एक ज्ञानियों का मार्ग है,
दूसरा भक्तों का |
भगवान् ने गीता में भक्तों के लक्षण बतलाते हुए दो बार ‘संतुष्ट’ शब्द का प्रयोग करके भक्तों में संतोष की आवशयकता सिद्ध की है |
'संतुष्ट: सततम’, ‘संतुष्टो येन केनचित |
( गीता - १२ /१४,१९ )
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