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Bhagavad Gita: मनुष्य क्रोध से अचानक कैसे फट पड़ता हैं
Bhagavad Gita: भगवान श्री कृष्ण ने एक अंकगणित की तरह स्टेप बाय स्टेप इसे समझाया है
मनुष्य क्रोध से अचानक कैसे फट पड़ता हैं।
क्रोध का जन्म इच्छा या अपेक्षा के गर्भ से होता है।
और अपेक्षाओं का तो कहना ही क्या?
हो सकता है कि हम अपने किसी प्रिय की भलाई हेतु ही उससे कोई अपेक्षा रखते हों,
क्योंकि हमें लगता है कि हमारा अनुभव है,
और हम उससे अधिक इस विषय में जानते हैं कि उसका भला कैसे हो सकता है।
परंतु है तो यह अपेक्षा ही।
अपेक्षा की यदि उपेक्षा होती है तो हमारे अंदर नेगेटिव भाव जन्म लेते हैं।
हम उसे स्वीकार नहीं कर पाते।
यह नकार धीरे धीरे हमारे अंदर क्रोध का बारूद निर्मित करता रहता है।
और एक समय आता है जब वह होता है जिसके संदर्भ में यह लेख लिखा जा रहा है।
इस संदर्भ में भगवद्गीता से अधिक महत्वपूर्ण और मनोवैज्ञानिक ग्रंथ इस संसार में उपलब्ध नहीं है।
भगवान श्री कृष्ण ने एक अंकगणित की तरह स्टेप बाय स्टेप इसे समझाया है :-ध्यायतो विषयान्पुंस: संगस्तेषूपजायते |
सङ्गात्सञ्जयते काम: कामात्क्रोधोऽभिजायते || 62||
क्रोधाद्भवति सम्मोह: सम्मोहात्स्मृतिविभ्रम: |
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति || 63||
विषय क्या है मन का ?
मन के अनेक विषय हैं,
अर्थात मन में अनेक इच्छाएं हैं,
विचार हैं।
मन में एक विचार उपजा,
एक अभिलाषा जगी कि ऐसा होना चाहिए।
अब वह विचार उमड़ घुमण कर मन को मथने लगा।
अब उसके प्रति मन अनुराग, आसक्ति, आतुरता पैदा हुई।
उसके उपरांत मन में विचार आने लगे कि कैसे यह उपलब्ध होगा।
एक ताना बाना बनने लगा।
एक योजना बन गई मन में, उसका मानचित्र खिंच गया।
अब उस योजना के कार्यान्वयन की बारी आई।
अब उस योजना के कार्यान्वयन में जो जो भी आड़े आयेगा,
जो जो बात नहीं मानी जायेगी,
वह क्रोध को, असहमति को, नकार को जन्म देगी।
शुरू में आप समझाते हैं दो चार बार,
थोड़ा बहुत आपकी समझ के अनुसार कार्यान्वयन होता भी है।
परंतु ठीक उस मानचित्र के अनुसार नहीं,
जैसा कि आपने अपने मन में रूप रेखा बना रखी है।
शनै: शनै: क्रोध का बारूद एकत्रित होने लगा।
अब हम शनै: शनै: क्रोध से सम्मोहित होने लगे।
अब धीरे धीरे प्रकृति हमारे ऊपर भारी पड़ने लगी,वह मालिक होने लगी।
एक एक डिग्री पानी गरम होने लगा।
अब एक डिग्री पानी और गरम होना बाकी रह गया।
एक डिग्री पानी और उबलते ही पानी वास्पित होने लगा।
क्रोध में हम अपना विवेक खोने लगे,
क्रोध ने हमें पूरी तरह अपने सम्मोहन में ले लिया।
हिप्नोसिस के प्रभाव में हम विस्मृत हो गए अपने आपको।
हम भूल गए कि हम क्या करने वाले हैं,
क्या कर रहे हैं।
इसी को बुद्धिनाश कहा गया है।
बुद्धि नाश के बाद क्या होगा?
वही जो होता है?
व्यक्ति क्रोध से फट पड़ता है और फिर बाद में सोचता है कि ऐसे कैसे हुवा?