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Shri Hari Vishnu Names: हरि के हजार नाम, क्या आपको पता सारे के सारे
Shri Hari Vishnu Names: श्री हरि के सभी अवतारों में श्री कृष्ण ही वे अवतार हैं। जिनके जितने नाम हैं उतने ही उनके विशेषण है। श्री कृष्ण सोलह कलाओं से युक्त हैं।
Shri Hari Vishnu Names: श्री हरि के सभी अवतारों में श्री कृष्ण ही वे अवतार हैं। जिनके जितने नाम हैं उतने ही उनके विशेषण है। श्री कृष्ण सोलह कलाओं से युक्त हैं। उनका हर एक नाम उन्हें एक नया रूप और हमे एक सर्वथा अलग श्री कृष्ण से परिचय करवाता है।
वे कान्हा हैं-
कान्हा का भाव जिस शब्द के निकट है वह है ममता। कान्हा जिनके बारे में सोचकर ही ममत्व में हिलोरे उठने लगती हैं।
यशोदा का लल्ला, नन्द का दुलारा सारे ब्रज का दुलारा हैं। उनकी एक छवि के लिये गोपियाँ स्वयं अपने दधि से भरी गागरी घर पर छोड़ कर आती और इस लालसा में रहती थीं कि कृष्ण दधि माखन खाने उनके घर आएं।
वो माखन चुरा के खाएं तो शिकायत करतीं, और न चुराएं तो विचलित हो जाती। उनकी बाट जोहती! कभी स्वयं कहती कान्हा को सबक सिखाने को, तो कभी स्वयं मिन्नत करती यशोदा से कान्हा को छोड़ देने की।
वे मुरलीधर हैं।
मोर मुकुट धारण करने वाले हैं।
मुरलीधर नाम सुनते ही वो कला प्रेमी कृष्ण याद आते हैं जिन्होंने संगीत के नए आयाम को छुआ! अपनी मुरली की धुन से वो सम्पूर्ण सृष्टि को बांध देते थे।
उनकी मुरली की धुन सुनते ही गायें रम्भाने लगती। गोकुल की हर गली शांत हो जाती। हर कोई उनकी मुरली की धुन में मंत्रमुग्ध हो जाता।
वे कन्हैया हैं। मनमोहन हैं।
सबका मन मोह लेने वाले। सुंदर रूप-रंग वाले मनोहर हैं।
कन्हैया का स्मरण होते ही हमे वो छवि दिखती है, जो हर किशोर बाला के मन मे रहती है।
कन्हैया सा प्रेमी हर युग मे हर लड़की चाहती है।
वे केशव हैं। लंबे, काले उलझे से घुंघराले बालों वाले केशव।
वे श्याम रंग के कृष्ण हैं। वे मदन हैं।
प्रेम के प्रतीक
जिनसे राधा स्मरण हो उठती हैं। कृष्ण की राधा और राधा के कृष्ण। प्रेम की इससे बड़ी मर्यादा क्या होगी?
जहाँ कोई भौतिक रिश्ता नहीं...या यूँ कहें श्री कृष्ण से प्रेम का रिश्ता जुड़ने के साथ ही कृष्ण से पहले राधा आ गईं। राधेकृष्ण कहो या राधे राधे। मन असीम प्रेम से भर उठता है।
वे गोपाल हैं। वे गोविंद हैं।
ग्वालों के साथ बिना किसी भेदभाव के खेलने वाले। गाय, प्रकृति, भूमि को चाहने वाले।
मुश्किल समय मे गोवर्धन पर्वत को अपनी एक उँगली पर उठाने वाले तारणहार हैं।
वे द्वारकाधीश हैं।
द्वारका के अधिपति हैं। जो मित्र सुदामा के लिये नंगे पैर दौड़ जाते हैं, और उनके पैरों को अपने हाथों से धोते हैं। वें सर्वश्रेष्ठ मित्र हैं।
वे अर्जुन के माधव हैं।
सारथी हैं अर्जुन के, जिन्होंने अनिश्चितता से निकाल कर उन्हें विश्व का सर्वश्रेष्ठ गीता का ज्ञान दिया।
वे उनके समक्ष जगद्गुरु... ब्रह्मांड के गुरु हैं।
वे जगदीश हैं।
सभी के रक्षक हैं।
वे जनार्धन हैं।
जिनके वरदान से सम्रद्धि, यश और वैभव आते हैं।
उनके जगन्नाथ रूप के स्मरण से हमे उनका अलौकिक ब्रह्मांड के ईश्वर स्वरूप याद हो उठता है।
श्री कृष्ण योगिनाम्पति हैं।
योगियों के स्वामी। श्री हरि कृष्ण से बड़ा कोई योगी हो ही नहीं सकता।
वे ब्रह्मांड के निर्माता विश्वकर्मा हैं। वे विश्वमूर्ति हैं। पूरे ब्रह्मांड का रूप।
श्री कृष्ण हमारे जीवन हैं। श्री कृष्ण कण कण में हैं।
श्री कृष्ण स्वयं स्वीकारते हैं, वें विश्वरूपा हैं। ब्रह्मांड हित के लिए रूप धारण करने वाले हैं।
श्री कृष्ण ब्रह्मांड की आत्मा हैं।
श्री कृष्ण विश्वात्मा हैं।
(लेखक- 'पंडित संकठा द्विवेदी' प्रख्यात धर्म विद् हैं ।)