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Bhagwan Ki Sawari Aur Unka Rahasya: जानिए सभी भगवान की सवारी और उनका रहस्य, गणेश जी से लेकर हनुमानजी तक किस वाहन पर होते हैं सवार?
Bhagwan Ki Sawari Aur Unka Rahasya: भगवान की सवारी और उनका रहस्य, हिंदू धर्म शास्त्रों में सभी भगवान को आध्यात्मिक के साथ वैज्ञानिक दृष्टि से भी वाहनों के रूप में पशु-पक्षियों से जोड़ा गया है। इससे प्रकृति और जीवों की रक्षा का संदेश भी समाज को मिलता है। जानते किस भगवान को कौन सा प्रिय वाहन है....
Bhagwan Ki Sawari Aur Unka Rahasya:
भगवान की सवारी और उनका रहस्य
हिंदू धर्म सबसे पुराना होने के साथ सबसे ज़्यादा व्यवहारिक सिद्धांतों वाला धर्म है। इस धर्म को आध्यात्म के साथ-साथ प्रकृति के भी नजदीक माना जाता है। ब्रह्म को सर्वोच्च मानने वाले इस धर्म काल क्रम के अनुसार देवी-देवताओं को अनेक गणों में बांटा गया है और उसकी के अनुसार उनके वाहन भी है। हिंदू धर्म शास्त्रों में सभी भगवान को आध्यात्मिक के साथ वैज्ञानिक दृष्टि से भी वाहनों के रूप में पशु-पक्षियों से जोड़ा गया है। इससे प्रकृति और जीवों की रक्षा का संदेश भी समाज को मिलता है। पशु-पक्षियों को किसी न किसी भगवान से जोड़ना, उनको हिंसा से बचाने के लिए एक सुरक्षा कवच है। मतलब कि देवी देवताओं को पशु पक्षियों के साथ जोड़ने के पीछे कई कारण हैं। देवी देवताओं के साथ पशुओं को उनके व्यवहार के अनुसार और पशुयों की रक्षा के लिए जोड़ा गया है। अगर ऐसा नहीं किया जाता तो शायद इंसान पशु के प्रति हिंसात्मक होता।
भगवान गणेश की सवारी
मूषक शब्द संस्कृत भाषा के मूष से बना है, जिसका मतलब होता है चुराना या लूटना। यह लक्षण स्वार्थी होने का परिचायक है। भगवान गणेश का मूषक पर बैठना यह दर्शाता है कि उन्होंने स्वार्थ और लालच पर विजय हासिल कर ली है। इसके बाद उन्होंने मानव कल्याण और परोपकार का रास्ता चुना है।
शिव की सवारी
नंदी महादेव के सभी गणों में उन्हें सबसे ज़्यादा प्यारे है। जिस तरह शास्त्रों में कामधेनु को श्रेष्ठ माना जाता है, उसी तरह नंदी को भी श्रेष्ठ माना जाता है। बैल स्वभाव से काफ़ी शान्त होता है, लेकिन जब इसे क्रोध आता है, तो यह शेर से भी भीड़ जाता है। महादेव का स्वभाव भी कुछ इसी तरह का है। बैल को भौतिक इच्छाओं से दूर रहने वाला प्राणी माना जाता है।
मां पार्वती की सवारी
बाघ साहस और शौर्य का प्रतीक है। माता पार्वती एक बार जंगल में तपस्या करने गई थी, वहां एक बाघ उन्हें खाने के लिए आया, लेकिन मां पार्वती को देख कर वो भी उनके पास बैठ गया। सालों तक चली माता पार्वती की तपस्या के दौरान वो बाघ भी वहीं बैठा रहा। जब मां पार्वती तपस्या पूर्ण करके उठी तो उन्हें इस बात का पता चला। बाघ की इस श्रद्धा से ख़ुश होकर उन्होंने इसे अपना वाहन बना लिया।
भगवान विष्णु का वाहन
गरुड़ भगवान विष्णु का वाहन है। गरुड़ को बुद्धिमान पक्षी माना जाता है। प्राचीन काल में गरुड़ का इस्तेमाल संदेशों के आदान-प्रदान में किया जाता था। शास्त्रों के अनुसार प्रजापति कश्यप की धर्मपत्नी विनता के दो पुत्र हुए। एक था गरुड़ और दूसरा अरुण। अरुण आगे चल कर सूर्य भगवान के सारथी बने और गरुड़ भगवान विष्णु की सेवा के लिए उनके पास चले गए।
श्री कृष्ण की सवारी
कृष्ण को ग्वाला कहते है क्योंकि उन्हें बचपन से ही गायों से काफी प्रेम रहा है। कृष्ण की हर तस्वीर में आपको उनके आसपास गाय भी जरूर नजर आएगी। यह कहना गलत नहीं होगा कि कृष्ण का चित्र गाय की तस्वीर के बगैर पूरा नहीं लगता। शायद इसके पीछे भारत के ग्रामीण इलाकों की झलक दिखाना ही उद्देश्य रहा होगा।
मां लक्ष्मी की सवारी
वैसे तो किसी को मूर्खता का विशेषण देना हो तो उल्लू शब्द का इस्तेमाल करते हैं। फिर इसे मां लक्ष्मी से कैसे जोड़ने पर थोड़ा आश्चर्य जरूर होता होगा। कहते है कि उल्लू निशाचरी प्राणियों में सबसे ज्यादा बुद्धिमान होता है। उल्लू की ख़ासियत होती है कि इसे आने वाले भविष्य के बारे में पूर्वानुमान हो जाता है। सनातन धर्म में उल्लू को धन सम्पदा के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। तांत्रिक क्रियाओं में इस पक्षी का ज़्यादा इस्तेमाल होने से लोग डरते भी हैं। उल्लू जब उड़ता है, तो इसके पंखों से कोई आवाज़ नहीं निकलती है। इसकी नजर बहुत पैनी होती है।
यमराज का वाहन
भैंसें का रूप देखने में भयानक लगता है, उसी तरह यमराज को भी काफ़ी भयानक समझा जाता है। भैंसें को एकता का प्रतीक भी माना जाता है। यह मुसीबत में पड़ने पर ही किसी पर हमला करता है, वरना वैसे शांत रहते है। इसी तरह यमराज भी किसी मनुष्य का अंतिम समय आने पर ही उससे मुखातिब होते है।
शनि का वाहन
वैसे तो शनिदेव की 9 सवारियां है, लेकिन उनमें से उन्हें सबसे ज़्यादा कौवा ही पसंद है। कौए स्वभाव से बहुत बुद्धिमान होते हैं। कौए की मौत कभी भी किसी बीमारी या दुर्घटना से नहीं होती है। इसकी मृत्यु आकस्मिक रूप से ही होती है। कौए को भविष्य में घटने वाली चीजों का पहले से ही पता चल जाता है। इसे पित्रों का आश्रय स्थल भी कहा जाता है।
मां सरस्वती की सवारी
सरस्वती को ज्ञान की देवी कहा जाता है। ज्ञान से प्राणी के जीवन में पवित्रता, प्रेम और नैतिकता का आगमन होता है। इन सभी गुणों को का मिश्रण हंस में भी देखने को मिलता है।हंस बहुत समझदार और जिज्ञासु प्रवृत्ति का माना जाता है। इसकी सबसे बड़ी ख़ासियत यह है कि यह जीवनपर्यन्त एक ही हंसिनी के साथ रहता है। इसके ज्ञानी होने की वजह से शास्त्रों में कहा भी गया है, जो ज्ञानी है वो हंस हैं ।
कार्तिकेय का वाहन
भगवान कार्तिकेय की पूजा दक्षिण भारत अधिक होती है। ये भगवान शिव के पुत्र है। मयूर चंचल प्रकृति का होता है। उसे नियन्त्रण में रखना बहुत मुश्किल होता कार्तिकेय की छवि एक साधक की तरह है, जिसने अपने मन को साध रखा है।
काल भैरव की सवारी
दुनिया के बाकी पंथ और सम्प्रदायों में कुत्ते को लेकर बहुत मिली-जुली मान्यताएं हैं। हमारे सनातन धर्म में कुत्ते को तेज़ बुद्धि वाला प्राणी माना जाता है। कुत्ते को खाना खिलाने से काल भैरव ख़ुश होते हैं। कुत्ते को पास रखने से मनुष्य आकस्मिक मृत्यु से बचा रहता है। बुरी आत्माएं कभी भी कुत्ते के पास नहीं फटकती हैं। सनातन धर्म के प्रवर्तकों ने आध्यात्म के साथ-साथ जो प्रकृति साम्य वातावरण तैयार किया, वो सभी धारणाएं इस धर्म को खास बनाती हैं।
देवराज इंद्र की सवारी
देवताओं और राक्षसों ने मिल कर जब समुद्र मंथन किया था, तो अमृत कलश के साथ 14 तरह के रत्न भी निकले थे। उन्हीं में से एक था, ऐरावत। हाथी को स्वभाव से शांत और बुद्धिमान माना जाता है। इन्हीं विशेषताओं को देख कर राजा इंद्र ने इसे चुना।
हनुमानजी की सवारी
हनुमानजी की आराधना हर बुरी ताकत और शक्तियों से बचाती है। हनुमानजी को पिशाच के आसन पर बैठते हैं। प्रेत, पिशाच या अन्य कोई भी बुरी आत्मा दुःख और तकलीफ को दर्शाती है। हनुमान इन सभी बुरी आत्मा और दुखों को अपना आसन बनाकर इनके ऊपर विराजित होते हैं।