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Bhagwan Krishna: भक्त दामोदर और उसकी धर्मपत्नी

Bhagwan Krishna: दामोदर ने कहा, साध्वी अतिथि क्या कोई मनुष्य थे कि उनका पता लगाया जाए।उन सनातन पुरुष को तो मैं कहां खोजने जाऊं। सर्वत्र हैं।

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Published on: 22 Jan 2024 12:21 PM GMT
Bhagwan Krishna Bhakti
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Bhagwan Krishna Bhakti

Bhagwan Krishna: अनंत शाही पड़े पड़े ब्राह्मण दंपत्ति की बात सुन रहे थे।उनके कमल नेत्रों के कोने से करुणा की धारा बह चली। उनकी इच्छा से ब्राह्मण दंपत्ति सो गए। प्रभु ने उठकर पतिव्रता स्त्री के मस्तक पर हाथ रख कर कहा माता तेरा मस्तक सुंदर घुंघराले केशों से सुशोभित हो जाए। तेरा शरीर मणि रत्नों के आभूषण से भूषित सौंदर्य युक्त हो जाए। यह कुटिया राज महल बन जाए। यह घर रत्नों से भर जाए। तुम दोनों सुख पूर्वक जीवन व्यतीत कर के अंत में मेरे बैकुंठधाम आओ।मैं सदा तुम्हारे साथ रहूंगा।

सत्य संकल्प प्रभु के संकल्प मूर्तिमान होते गये । वे परम दुर्लभ वरदान देकर अंतर्ध्यान हो गये। प्रातः काल जब ब्राह्मणी जगी अपना दिव्य रूप, अपने पति का कामदेव के समान रुप, चारों और वैभव की बहुलता और कुटिया के स्थान पर राज महल देखा बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने हडबडा दामोदर को जगाया। उसने पति से कहा,शीघ्र साधु महाराज को पता लगाइए वह कोई साधारण साधु नहीं थे।

दामोदर ने कहा, साध्वी अतिथि क्या कोई मनुष्य थे कि उनका पता लगाया जाए।उन सनातन पुरुष को तो मैं कहां खोजने जाऊं। सर्वत्र हैं। पर दर्शन देना चाहें तभी उन्हें देखा जा सकता है। उन भक्त भावन ने कृपा करके वृद्ध अतिथि के रूप में दर्शन दिए, किंतु उन्हें हम सामान्य मनुष्य ही समझते रहे। हमारे द्वारा उनका कोई सत्कार नहीं हुआ। वे करुणा सागर हमें क्षमा करें।

देर तक वे दम्पत्ति भगवान की प्रार्थना करते रहे। उन लीलामय के गुण गाते रहे। इसके पश्चात महोत्सव की तैयारी करने लगे। उनका मन संपत्ति पाकर भी उसमें आसक्त नहीं हुआ। धन संपत्ति को भगवान की सेवा पूजा का साधन ही उन्होंने माना भगवान की भक्ति की। गो ब्राह्मणों की तथा दीन दुखियों की, सेवा में जीवन पर्यंत लगे रहे।

(भक्त चरित्र ,भक्तांक पुस्तक से)

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