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Krishna Yashoda Ki Kahani: कान्हा को त्यागते समय कितनी अधीर थीं यशोदा
Bhagwan Krishna Yashoda Ki Kahani: नंद बाबा ने थके हुए स्वर में कहा, "ममत्व का तो सचमुच कोई मोल नहीं होता यशोदा।
Bhagwan Krishna Yashoda Ki Kahani: नंद बाबा चुपचाप रथ पर कान्हा के वस्त्राभूषणों की गठरी रख रहे थे।दूर ओसारे में मूर्ति की तरह शीश झुका कर खड़ी यशोदा को देख कर कहा,”दुखी क्यों हो यशोदा, दूसरे की बस्तु पर अपना क्या अधिकार।” यशोदा ने शीश उठा कर देखा नंद बाबा की ओर, उनकी आंखों में जल भर आया था। नंद निकट चले आये। यशोदा ने भारी स्वर से कहा,”तो क्या कान्हा पर हमारा कोई अधिकार नहीं। नौ वर्षों तक हम असत्य से ही लिपट कर जीते रहे?" नंद ने कहा- अधिकार क्यों नहीं। कन्हैया कहीं भी रहे, पर रहेगा तो हमारा ही लल्ला न! पर उसपर हमसे ज्यादा देवकी वसुदेव का अधिकार है, और उन्हें अभी कन्हैया की आवश्यकता भी है।"
यशोदा ने फिर कहा, "तो क्या मेरे ममत्व का कोई मोल नहीं?"
नंद बाबा ने थके हुए स्वर में कहा, "ममत्व का तो सचमुच कोई मोल नहीं होता यशोदा। पर देखो तो, कान्हा ने इन नौ वर्षों में हमें क्या नहीं दिया है।उम्र के उत्तरार्ध में जब हमने संतान की आशा छोड़ दी थी, तब वह हमारे आंगन में आया। तुम्हें नहीं लगता कि इन नौ वर्षों में हमने जैसा सुखी जीवन जिया है, वैसा कभी नहीं जी सके थे।
दूसरे की वस्तु से और कितनी आशा करती हो यशोदा, एक न एक दिन तो वह अपनी वस्तु मांगेगा ही न! कान्हा को जाने दो यशोदा।"
यशोदा से अब खड़ा नहीं हुआ जा रहा था, वे वहीं धरती पर बैठ गयी, कहा- आप मुझसे क्या त्यागने के लिए कह रहे हैं, यह आप नहीं समझ रहे।
नंद बाबा की आंखे भी भीग गयी थीं। उन्होंने हारे हुए स्वर में कहा- तुम देवकी को क्या दे रही हो यह मुझसे अधिक कौन समझ सकता है यशोदा।
आने वाले असंख्य युगों में किसी के पास तुम्हारे जैसा दूसरा उदाहरण नहीं होगा। यह जगत सदैव तुम्हारे त्याग के आगे नतमस्तक रहेगा।
यशोदा आँचल से मुह ढांप कर घर मे जानें लगीं तो नंद बाबा ने कहा- “अब कन्हैया को भेज दो यशोदा, देर हो रही है।"
यशोदा ने आँचल को मुह पर और तेजी से दबा लिया, और अस्पस्ट स्वर में कहा, "एक बार उसे खिला तो लेने दीजिये, अब तो जा रहा है। कौन जाने फिर..." नंद चुप हो गए।*
यशोदा माखन की पूरी मटकी ले कर ही बैठी थीं, और भावावेश में कन्हैया की ओर एकटक देखते हुए उसी से निकाल निकाल कर खिला रही थीं। कन्हैया ने कहा- एक बात पूछूं मइया!
यशोदा ने जैसे आवेश में ही कहा- पूछो लल्ला।
तुम तो रोज मुझे माखन खाने पर डांटती थी मइया, फिर आज अपने ही हाथों क्यों खिला रही हो।
यशोदा ने उत्तर देना चाहा पर मुह से स्वर न फुट सके। वह चुपचाप खिलाती रहीं।
कान्हा ने पूछा- क्या सोच रही हो मइया? यशोदा ने अपने अश्रुओं को रोक कर कहा,
“सोच रही हूँ कि तुम चले जाओगे तो मेरी गैया कौन चरायेगा।”
कान्हा ने कहा- तनिक मेरी सोचो मइया, “वहां मुझे इस तरह माखन कौन खिलायेगा? मुझसे तो माखन छिन ही जाएगा मइया।”
यशोदा ने कान्हा को चूम कर कहा- “नहीं लल्ला, वहां तुम्हे देवकी रोज माखन खिलाएगी। कन्हैया ने फिर कहा- पर तुम्हारी तरह प्रेम कौन करेगा मइया?
अबकी यशोदा कृष्ण को स्वयं से लिपटा कर फफक पड़ी। मन ही मन कहा- यशोदा की तरह प्रेम तो सचमुच कोई नहीं कर सकेगा लल्ला, पर शायद इस प्रेम की आयु इतनी ही थी।
कृष्ण को रथ पर बैठा कर अक्रूर के संग नंद बाबा चले तो यशोदा ने कहा- तनिक सुनिए न, आपसे देवकी तो मिलेगी न? उससे कह दीजियेगा, लल्ला तनिक नटखट है, पर कभी मारेगी नहीं।नंद बाबा ने मुँह घुमा लिया। यशोदा ने फिर कहा- कहियेगा कि मैंने लल्ला को कभी दूब से भी नहीं छुआ, हमेशा हृदय से ही लगा कर रखा है।
नंद बाबा ने रथ को हांक दिया। यशोदा ने पीछे से कहा- कह दीजियेगा कि लल्ला को माखन प्रिय है, उसको ताजा माखन खिलाती रहेगी। बासी माखन में कीड़े पड़ जाते हैं।
नंद बाबा की आंखे फिर भर रही थीं, उन्होंने घोड़े को तेज किया। यशोदा ने तनिक तेज स्वर में फिर कहा- कहियेगा कि बड़े कौर उसके गले मे अटक जाते हैं, उसे छोटे छोटे कौर ही खिलाएगी।
नंद बाबा ने घोड़े को जोर से हांक लगाई, रथ धूल उड़ाते हुए बढ़ चला।
यशोदा वहीं जमीन पर बैठ गयी और फफक कर कहा- कृष्ण से भी कहियेगा कि मुझे स्मरण रखेगा।
उधर रथ में बैठे कृष्ण ने मन ही मन कहा- तुम्हें यह जगत सदैव स्मरण रखेगा मइया। तुम्हारे बाद मेरे जीवन मे जीवन बचता कहाँ है ? लीलायें तो ब्रज में ही छूट जायेंगी।
( लेखक प्रख्यात धर्म विद् हैं ।)