Bhagwat Geeta: श्री कृष्ण जानते थे कि अर्जुन के मन में दुर्बलता छिपी हुई है

Bhagwat Geeta: कृष्ण !रथ को ऐसी जगह खड़ा करिए,जहां से मैं शत्रुओं को देख सकूंपर, अर्जुन ऐसा नहीं कहताअर्जुन निरीक्षण की बात करता है।जब कोई व्यक्ति युद्ध करने पर आमादा होता है,

Kanchan Singh
Published on: 1 July 2024 2:50 PM GMT
Bhagwat Geeta
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Bhagwat Geeta: भगवान श्री कृष्ण की वाणी से प्रस्फुटित गीता अद्भुत हैं।इसका प्रमाण हमें उस समय मिलता है जब लड़ने को उद्यत महारथी अर्जुन अपने सारथी श्री कृष्ण से कहते हैं -यावदेतान्निरीक्षेऽहं योद्धकामानवस्थितान्।कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन् रणसमुद्यमे।।

अर्थ :-

जब तक कि मैं युद्धक्षेत्र में डटे हुए युद्ध के अभिलाषी,इन विपक्षी योद्धाओं को भली प्रकार देख लूं,कि इस युद्धरूप उद्यम ( कर्म ) में मुझे किन - किन के साथ युद्ध करना योग्य है,तब तक उसे ( रथ को ) खड़ा कीजिए।तो क्या अर्जुन को पता नहीं था कि उसे किन लोगों के साथ युद्ध करना है अर्जुन तो गांडीव धनुष को उठाकर युद्ध करने की अपनी मानसिकता को प्रकट कर दिया था।अतः अर्जुन को तो कहना चाहिए था कि कृष्ण !रथ को ऐसी जगह खड़ा करिए,जहां से मैं शत्रुओं को देख सकूंपर, अर्जुन ऐसा नहीं कहताअर्जुन निरीक्षण की बात करता है।जब कोई व्यक्ति युद्ध करने पर आमादा होता है,

तो वह दुश्मन को नहीं देखताबल्कि उसे जो दिखता है,वही दुश्मन के रूप में दिखाई देता है।जब अपने भीतर युद्ध - भाव रहता है,तो बाहर शत्रु पैदा हो जाता है।लेकिन जब अपने भीतर युद्ध-भाव नहीं रहता,तो जांच-पड़ताल करनी पड़ती है,कि शत्रु के रूप में कौन लड़ने आ रहा है ?अर्जुन दूसरी स्थिति में है।दुर्योधन पहली स्थिति में हैजो निरीक्षण करता है,

वह उन्मादियों की भांति युद्ध में नहीं लड़ सकता।श्री कृष्ण ने रथ को दोनों सेनाओं के मध्य ऐसे स्थान पर खड़ा किया,जहां से पितामह भीष्म,आचार्य द्रोण सहितधृतराष्ट्र-पक्ष के सभी प्रमुख प्रतिद्वंदी ठीक से दिख सकें।अर्जुन ने पूछा था कि किन के साथ युद्ध करना है ?इसका उत्तर देते हुए कृष्ण कहते हैं -पार्थ पश्य एतान् समवेतान् कुरून् !हे पार्थ! एकत्रित हुए कौरव को देख ले।श्रीकृष्ण को तो यह कहना चाहिए था -"इन शत्रुओं को देख।"ऐसा न कह कर श्रीकृष्ण ने एक अद्भुत बात कह दी।अप्रत्यक्ष रूप से उन्होंने यह संकेत दे दिया कि,अर्जुन तुम्हें अपने कुल के लोगों के साथ ही युद्ध करना है।

श्री कृष्ण जानते थे कि अर्जुन के मन में दुर्बलता छिपी हुई है।अगर अभी उसके चित्त की शुद्धि नहीं की गई,तो पीछे समय पाकर कभी भी वह बुद्धि पर अधिकार जमा लगी।जिसके फलस्वरूप पांडवों की विशेष क्षति ही हो जाए।इसलिए अर्जुन की करुणाजनित कायरता को चित्त से निकालने के लिए,भगवान श्रीकृष्ण ने वाणी रूप में जो लीला प्रकट की,उसी का नाम *भगवद्गीताहै।भगवान की वाणी का तत्काल प्रभाव पड़ा।परिणाम स्वरूप अर्जुन को सभी योद्धा शत्रु के रूप में नहीं बल्कि स्वजन के रूप में दिखने लग गए थे।

Shalini Rai

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