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यम द्वितीया पर बहनें देती है भाई को गाली, ये हैं भाईदूज की पूरी कहानी
: दिवाली पांच दिनों का त्योहार है धनतेरस शुरु यह पर्व 5वें दिन भाईदूज पर खत्म होता है। भाईदूज को यम द्वितीया भी कहते है। इस दिन यम देवता की पूजा होती है। इस पर्व का उद्देश्य भाई व बहन के पावन संबंध की स्थापना करना है।
जयपुर: दिवाली पांच दिनों का त्योहार है धनतेरस शुरु यह पर्व 5वें दिन भाईदूज पर खत्म होता है। भाईदूज को यम द्वितीया भी कहते है। इस दिन यम देवता की पूजा होती है। इस पर्व का उद्देश्य भाई व बहन के पावन संबंध की स्थापना करना है।भाईदूज के दिन बहनें रोली एवं अक्षत से अपने भाई का तिलक कर उसके उज्ज्वल भविष्य की कामना करती हैं। भाई अपनी बहन को उपहार देता है।
बहने देती है आशीर्वाद में गाली
भाई दूज के दिन बहनें बेरी पूजन भी करती हैं। इस दिन बहन भाइयों को तेल मलकर गंगा यमुना में स्नान भी कराती हैं। इस दिन गोधन कूटने की प्रथा भी है। गोबर की मानव मूर्ति बनाकर छाती पर ईंट रखकर उसे मूसलों से कूटती हैं। बहनें घर-घर जाकर चना, गूम तथा भटकैया चराव कर जिव्हा को भटकैया के कांटे से दागती भी हैं। मान्यता है कि भैयादूज के दिन बहनों की गाली भी भाइयों को आशीर्वाद लगती है। बहनें भाइयों के लिए अमंगल की बात करती हैं। उन्हें मरने तक का श्राप देती हैं। पर बाद में अपनी जीभ पर रेंगनी का कांटा चुभोती हैं कि क्योंकि उन्होंने अपने भाई के लिए ऐसी बात कही। मान्यता है कि इस दिन बहन के घर भोजन करने से भाई की उम्र बढ़ती है। इस दिन बहनें भाइयों को डांटती हैं और उन्हें भला बुरा कहती हैं और फिर उनसे माफी मांगती हैं। यह परंपरा भाइयों द्वारा पहले की गई गलतियों के चलते निभाई जाती है। इस रस्म के बाद बहनें भाइयों को तिलक लगाकर उन्हें मिठाई खिलाती हैं।
आज है भाईदूज, इस मुहूर्त में बहनें करें भाई की लंबी आयु की कामना
कथा....
एक कथानुसार द्वितीया के दिन भगवान श्री कृष्ण नरकासुर राक्षस का वध कर द्वारिका लौटे थे, इस दिन भगवान कृष्ण की बहन सुभद्रा ने फल,फूल, मिठाई और दीये जलाकर उनका स्वागत किया था। सुभद्रा ने भगवान श्री कृष्ण के मस्तक पर तिलक लगाकर उनकी दीघार्यु की कामना की थी।
दूसरी कथा के अनुसार भगवान सूर्य नारायण की पत्नी का नाम छाया था। उनसे यमराज व यमुना का जन्म हुआ था। यमुना यमराज से बहुत प्रेम करती थी। वह यमराज से कहती किभाई एकबार उसके घर आकर भोजन करो। अपने कार्य में व्यस्त यमराज टालते रहते। कार्तिक शुक्ल की द्वितीया को यमुना ने फिर यमराज को भोजन के लिए निमंत्रण दिया, अपने घर आने के लिए वचनबद्ध किया।
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यमराज ने सोचा कि वे तो प्राणों को हरने वाला है। उसे कोई भी अपने घर नहीं बुलाना चाहता। बहन जिस सद्भावना से बुला रही है, उसका पालन करना धर्म है। बहन के घर आते समय यमराज ने नरक निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया। यमराज को अपने घर आया देखकर यमुना की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने स्नान कर पूजन के बाद भोजन कराया। यमुना ने कहा किभाई! आप प्रति वर्ष इसी दिन मेरे घर आया करो। मेरी तरह जो बहन इस दिन अपने भाई को आदर सत्कार करके टीका करें, उसे तुम्हारा भय न रहे। यमराज ने तथास्तु कहकर यमुना को अमूल्य उपहार देकर चले गए। इसी दिन से भाईदूजपर्व की परम्परा बनी। ऐसी मान्यता है कि जो आतिथ्य स्वीकार करते हैं, उन्हें यम का भय नहीं रहता।