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Bhishma Panchak Mahatva: भीष्म पंचक क्या है, कार्तिक मास में इसके महत्व के बारे में जानिए, कौन थे पितामह भीष्म
Bhishma Panchak Mahatva: जानते है कार्तिक मास में पड़ने वाले भीष्म पंचक के बारें में क्या होता है,
Bhishma Panchak Vrat भीष्म पंचक का क्या महत्व है?: जो लोग कार्तिक का स्नान नहीं कर पाते हैं उन्हें भीषम पंचक के व्रत को करने से कार्तिक फल मिलता है।धार्मिक मान्यतानुसार इस दौरान भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा के साथ भीष्म पितामह की भी पूजा की जाती है। कार्तिक मास की त्रयोदशी से पूनम तक के अंतिम 5 दिन पुण्यमयी तिथियाँ मानी जाती हैं। इनका बड़ा विशेष प्रभाव माना गया है। अगर कोई कार्तिक मास के सभी दिन स्नान नहीं कर पाये तो उसे अंतिम तीन दिन सुबह सूर्योदय से तनिक पहले स्नान कर लेने से सम्पूर्ण कार्तिक मास के प्रातःस्नान के पुण्यों की प्राप्ति कही गयी है।
भीष्म पंचक व्रत पूजा- विधि
भीष्म पंचक के दौरान दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर स्नानादि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करके या शुद्ध होकर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति के निमित्त व्रत का संकल्प करें। पूजन वाले स्थान पर गोबर से लीप लें और उस पर सर्वतोभद्र की वेदी बनाकर कलश स्थापित करें।भगवान श्री कृष्ण का पूजन 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का जाप करते हुए करें। 'ॐ विष्णवे नमः' मंत्र बोलकर स्वाहा मंत्र से घी, तिल और जौ की 108 आहुतियां देकर हवन करें।पूजन के समय एक बड़ा दीया लेकर शुद्ध देसी घी से जलाएं। इस बात का ध्यान रखें कि इस व्रत में दीपक पांच दिनों तक लगातार जलता रहना चाहिए।
कार्तिक स्नान करने वाले लोग निराहार रहकर यह व्रत पूरे विधि-विधान से करते हैं। जो लोग इस व्रत को करते हैं, वे जीवनभर कई तरह के सुखों को भोग कर मोक्ष को प्राप्त करते हैं। इस व्रत को करने वालों को धन-धान्य, पुत्र-पौत्र आदि सभी की प्राप्ति होकर वे सभी प्रकार के भौतिक सुखों को प्राप्त करेंगे।
भीष्म पंचक का महत्व
कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान कृष्ण 4 माह के निद्रा के बाद जगते है। इस एकादशी को देवउठनी एकादशी कहते हैं, जो बीते 23-27 नवंबर को थी इस दिन तुलसी विवाह भी किया गया । इसका शास्त्रों में वर्णन है। देवउठनी एकादशी के दिन से एक काम और शुरू होता है जो पूर्णिमा तक चलता है।इस भीषम पंचक कहते हैं। भीषम पंचक के दौरान स्नान दान और व्रत का महत्व है। धार्मिक मान्यतानुसार इस दौरान भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा के साथ भीष्म पितामह की भी पूजा की जाती है। कार्तिक मास की त्रयोदशी से पूनम तक के अंतिम तीन दिन पुण्यमयी तिथियाँ मानी जाती हैं। इनका बड़ा विशेष प्रभाव माना गया है। अगर कोई कार्तिक मास के सभी दिन स्नान नहीं कर पाये तो उसे अंतिम तीन दिन सुबह सूर्योदय से तनिक पहले स्नान कर लेने से सम्पूर्ण कार्तिक मास के प्रातःस्नान के पुण्यों की प्राप्ति कही गयी है। जैसे कहीं अनजाने में जूठा खा लिया है तो उस दोष को निवृत्त करने के लिए बाद में आँवला, बेर या गन्ना चबाया जाता है। इससे उस दोष से आदमी मुक्त होता है, बुद्धि स्वस्थ हो जाती है। जूठा खाने से बुद्धि मारी जाती है। जूठे हाथ सिर पर रखने से बुद्धि मारी जाती है, कमजोर होती है। इसी प्रकार दोषों के शमन और भगवदभक्ति की प्राप्ति के लिए कार्तिक के अंतिम तीन दिन प्रातःस्नान, श्रीविष्णुसहस्रनाम' और 'गीता' पाठ विशेष लाभकारी है। आप इनका फायदा उठाना
भीष्म पंचक के दौरान उपाय
ऐसे में मान्यता है कि इस दौरान कुछ उपाय किए जाए तो विवाह में आ रही बाधाओं का निवारण होता हैं और मनचाहा वर प्राप्त किया जा सकता हैं। जानते हैं इन उपायों के बारे में।
भीष्म पंचक के दौरान भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए
इस दौरान 7 साबुत हल्दी की गांठें, चने की दाल, गुड़ और केसर पीले कपड़े में बांधकर लें। अब इसे भगवान विष्णु जी के मंदिर जाकर उन्हें चढ़ाएं। मान्यता है कि इस उपाय से जल्दी ही विवाह के योग बनने लगते हैं।
भीष्म पंचक से विवाह बाधा दूर
भीष्म पंचक के दौरान तेल का दीपक तुलसी के लिये जलाएं। मान्यता है इससे विवाह में आ रही बाधाएं दूर होती है और सुयोग्य वर मिलता है। साथ ही इस दौरान अपने कक्ष में राधा-कृष्ण की तस्वीर लगाएं। माना जाता है कि इस उपाय से मनचाहा साथी मिलता है।
भीष्म पंचक से बनेगा पारिवारिक जीवन सुखद
शाम तुलसी जी के पौधे के पास गाय के घी या सरसों तेल का दीपक जलाएं। धार्मिक मान्यताओं अनुसार ऐसा करने से घर-परिवार में चल रही बाधाएं दूर होती है। घर में सुख-समृद्धि, शांति व खुशहाली का वास होता है। इसके साथ ही वैवाहिक जीवन में मधुरता और प्रेम बनाए रखने के लिए माता तुलसी को श्रृंगार का सामान चढ़ाएं। उसे किसी सुहागिन स्त्री को दान कर दें।
कौन थे भीष्म पितामह
भीष्म अथवा भीष्म पितामह महाभारत के सबसे महत्वपूर्ण पात्रों में से एक थे। भीष्म महाराजा शान्तनु के पुत्र थे महाराज शांतनु की पटरानी और नदी गंगा की कोख से उत्पन्न हुए थे | उनका मूल नाम देवव्रत था।
भीष्म पंचक की कथा
यह व्रत कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी से शुरू होकर पूर्णिमा तक चलता है। कार्तिक स्नान करने वाले सभी लोग इस व्रत को करते हैं। भीष्म पितामह ने इस व्रत को किया था, इसलिए यह भीष्म पंचक नाम से प्रसिद्ध हुआ। जब महाभारत युद्ध के बाद पांडवों की जीत हो गई, तब श्रीकृष्ण पांडवों को भीष्म पितामह के पास ले गए और उनसे अनुरोध किया कि वह पांडवों को ज्ञान दें। शरसैया पर लेटे हुए सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा कर रहेभीष्म ने कृष्ण का अनुरोध स्वीकार किया और कृष्ण सहित पांडवों को राज धर्म, वर्ण धर्म एवं मोक्ष धर्म का ज्ञान दिया।
भीष्म द्वारा ज्ञान देने का यह सिलसिला एकादशी से लेकर पूर्णिमा तिथि अर्थात् पांच दिनों तक चलता रहा। तब श्रीकृष्ण ने कहा- आपने जो पांच दिनों में ज्ञान दिया है, यह पांच दिन आज से अति मंगलकारी हो गए हैं। इन पांच दिनों को भविष्य में भीष्म पंचक के नाम से जाना जाएगा।