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Chaitra Navratri 2023: षष्ठ नवरात्र में मां कात्यायनी की करें आराधना, जीवन बनेगा आनंदमय

Chaitra Navratri 2023: माँ कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं। ये व्रजमण्डल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित है। इनका स्वरूप अत्यन्त ही भव्य और दिव्य है।

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Published on: 27 March 2023 6:42 PM IST
Chaitra Navratri 2023: षष्ठ नवरात्र में मां कात्यायनी की करें आराधना, जीवन बनेगा आनंदमय
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Katyayani Mata (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Chaitra Navratri 2023:

चंद्र हासोज्ज्वलकरा शार्दूलवर वाहना।

कात्यायनी शुभंदद्या देवी दानव घातिनि।।

माँ दुर्गाजी के छठवें स्वरूप का नाम कात्यायनी (Katyayani Mata) है। इनका कात्यायनी नाम पड़ने की कथा इस प्रकार है- कत नामक एक प्रसिध्द महर्षि थे। उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए। इन्हीं कात्य के गोत्र में विश्वप्रसिध्द महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए थे। इन्होंने भगवती पराम्बा की उपासना करते हुए बहुत वर्षों तक बड़ी कठिन तपस्या की थी। इनकी इच्छा थी कि मां भगवती उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें। मां भगवती ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली थी।

कात्यायनी माता कथा

कुछ काल पश्चात जब दानव महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बहुत बढ़ गया तब भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों ने अपने-अपने तेज का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिये एक देवी को उत्पन्न किया। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की, इसी कारण से यह कात्यायनी (Katyayani) कहलायीं।

ऐसी भी कथा मिलती है कि यह महर्षि कात्यायन के वहां पुत्री रूप से उत्पन्न भी हुई थी। आश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेकर शुक्ल सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी तक तीन दिन इन्होंने कात्यायन ऋषि की पूजा ग्रहण कर दशमी को महिषासुर का बध किया था।

माँ कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं। भगवान कृष्ण को पतिरूप में पाने के लिए व्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा कालिन्दी-यमुना के तट पर की थी। ये व्रजमण्डल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित है। इनका स्वरूप अत्यन्त ही भव्य और दिव्य है। इनका वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला और भास्वर है। इनकी चार भुजाएँ हैं। माताजी का दाहिनी तरफ का ऊपरवाला हाथ अभयमुद्रा में है तथा नीचेवाला वरमुद्रा में है। बायीं तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार और नीचेवाले हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है। इनका वाहन सिंह है।

दुर्गा पूजा के छठवें दिन इनके स्वरूप की उपासना की जाती है। उस दिन साधक का मन ‘आज्ञा’ चक्र में स्थित होता है। योग साधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। इस चक्र में स्थित मन वाला साधक माँ कात्यायनी के चरणों में अपना सर्वस्व निवेदित कर देता है। परिपूर्ण आत्मदान करने वाले ऐसे भक्त को सहज भाव से माँ कात्यायनी के दर्शन प्राप्त हो जाते हैं । माँ कात्यायनी की भक्ति और उपासना द्वारा मनुष्य को बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है । वह इस लोक में स्थित रह कर भी अलौकिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है। उसके रोग, शोक, संताप भय आदि सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं। जन्म-जन्मान्तरों के पापों को विनष्ट करने के लिये माँ की उपासना से अधिक सुगम और सरल मार्ग दूसरा नहीं है। इनका उपासक निरन्तर इनके सानिध्य में रहकर परमपद का अधिकारी बन जाता है। अत: हमें सर्वतोभावेन माँ के शरणागत होकर उनकी पूजा-उपासना के लिए तत्पर होना चाहिये।



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