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Chandra Grahan 2021: क्या है चंद्र ग्रहण की मान्यता, इतिहास में कहां है जिक्र? जानें सब कुछ
Chandra Grahan 2021: आज साल का पहला चंद्रग्रहण है। इसके बाद दूसरा और आखिरी चंद्रग्रहण 19 नवंबर को लगेगा।
Chandra Grahan 2021: आज साल का पहला चंद्रग्रहण (Lunar Eclipse 2021) है। आज ही के दिन वैशाख मास की पूर्णिमा है, जिसे बुद्ध पूर्णिमा (Budh Purnima 2021) के नाम से भी जाना जाता है। इसके बाद दूसरा और आखिरी चंद्रग्रहण 19 नवंबर को लगेगा। किसी भी ग्रहण को धार्मिक और खगोगीय दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण घटना माना जाता है। चंद्र ग्रहण दोपहर 02 बजकर 17 मिनट पर लगेगा और शाम 07 बजकर 19 मिनट पर समाप्त होगा। आईये जानते हैं ग्रहण का इतिहास और इसके बारे में सेवकुछ।
ग्रहण को लेकर धार्मिक मान्यता
हिन्दू मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान जब देवताओं और दानवों में अमृत पान के लिए विवाद हुआ तो इसको सुलझाने के लिए मोहनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया था। इस दौरान जब भगवान विष्णु ने देवताओं और असुरों को अलग- अलग बिठा दिया, लेकिन असुर छल से देवताओं की लाइन में आकर बैठ गए और अमृत पान कर लिया। देवताओं की लाइन में बैठे चंद्रमा और सूर्य ने राहु को ऐसा करते हुए देख लिया। इस बात की जानकारी उन्होंने भगवान विष्णु को दी, जिसके बाद भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से राहु का सिर धड़ से अलग कर दिया, लेकिन राहु ने अमृत पान कर लिया था। इस वजह से वह नहीं मरा और उसके सिर वाला भाग राहु और धड़ वाला भाग केतु के नाम से जाना गया। इसी कारण राहु और केतु सूर्य और चंद्रमा को अपना शत्रु मानते हैं और पूर्णिमा के दिन चंद्रमा को ग्रास लेते हैं तो अमावस्या के दिन सूर्य को। लोगों की मान्यता है कि जब ये सूर्य और चंद्रमा को जकड़ लेते हैं तो उस समय सूर्य और चंद्रमा कमजोर पड़ जाते हैं और ग्रहण लग जाता है। इस दौरान वायुमंडल में नकारात्मक ऊर्जा पैदा होती है। इस वजह से धार्मिक ग्रंथों में ग्रहण के दौरान कोई भी शुभ काम करने की मनाही है।
ग्रहण का इतिहास में अहम तौर पर जिक्र
ऋषि-मुनियों को ग्रह नक्षत्रों की इस घटना का ज्ञान बहुत पहले से ही थी। धर्मग्रंथों में चंद्र और सूर्य ग्रहण के बारे में बताया गया है। इसके बारें में महर्षि अत्रि को विस्तृत जानकारी थी। उन्होंने ही चंद्र और सूर्य ग्रहण की घटना और पृथ्वी, सूर्य और चंद्र की स्थिति से सबको अवगत कराया था। ग्रहण का वर्णन वेद-पुराणों में ऋगवेद, भागवत, रामायण, मत्स्य पुराण, देवी पुराण और महाभारत में भी वर्णन मिलता है। इसके अलावा महाभारत के युद्ध के दौरान जयद्रथ वध के समय ग्रहण का वर्णन मिलता है।
ग्रहण का वैज्ञानिक पहलू
वैज्ञानिक पहलू की बात करें तो ग्रहण एक खगोलीय घटना है, जिसका आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दोनों ही क्षेत्रों में काफी महत्व है। विज्ञान के अनुसार, जब चंद्रमा घूमते-घूमते सूर्य और पृथ्वी के बीच में आ जाता है तो सूर्य की चमकती रोशनी चंद्रमा के कारण दिखाई नहीं पड़ती। चंद्रमा के कारण सूर्य पूर्ण या आंशिक रूप से ढकने लगता है और इसी को सूर्यग्रहण कहा जाता है। ठीक वैसे ही चंद्र ग्रहण में सूर्य चन्द्रमा और पृथ्वी के बीच में आ जाता है तो चन्द्रमा की रोशनी दिखाई नहीं पड़ती।
ग्रहण के समय भूल कर भी न करें ये काम
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ग्रहण के दौरान वायुमंडल में नकारात्मक ऊर्जा पैदा होती है। इस वजह से धार्मिक ग्रंथों में ग्रहण के दौरान कोई भी शुभ काम करने की मनाही है। आईये जानते हैं इस दौरान कौन से काम नहीं करने चाहिए-
- ग्रहण काल के समय खाने-पीने का कार्य, कोई शुभ कार्य, पूजा-पाठ का कार्य और जमीन खोदने का कार्य, आदि नहीं करना चाहिए।
- ग्रहण के समय शरीर पर किसी प्रकार का लेपन अथवा मालिश का कार्य भी नहीं करना चाहिए।
- गर्भवती महिलाओं को घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए।
- ग्रहण के समय गर्भवती महिलाओं को कटाने-छाँटने का भी कोई कार्य नहीं करना चाहिए और न ही शरीर की मालिश करवानी चाहिए।
- त्वचा, आँख और एलर्जी के रोगियों को भी ग्रहण के समय घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए।
- ग्रहण के समय तुलसी के पत्तों को भी नहीं तोड़ना चाहिए।