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Chandra Grahan: सुपर मून, चंद्रग्रहण, रेड ब्लड मून और ब्लू मून का क्या है रहस्य, आज क्या होगा?
Chandra Grahan 2021: आज यानी 26 मई को अद्भुत खगोलीय घटना होने जा रही है। पूर्णिमा के अवसर पर चंद्रग्रहण होने जा रहा है
Chandra Grahan 2021: 26 मई यानी बुधवार को अद्भुत खगोलीय घटना होने जा रही है। पूर्णिमा के अवसर पर चंद्रग्रहण (Lunar eclipse) होने जा रहा है लेकिन यह ऐसा मौका भी है जब चंद्रमा अपनी कक्षा में पृथ्वी के सबसे निकट होगा। इस घटना को सुपर फ्लावर मून या सुपर मून भी कहते हैं। इसके अलावा खगोल विज्ञानियों ने चंद्रमा की अलग-अलग स्थितियों को ब्लू मून, रेड ब्लड मून भी कहा है। इन सब स्थितियों की वजह चंद्रमा की अंतरिक्ष में पोजीशन है जो उसे नए-नए रूप में दुनिया के सामने लाती है।
भारत के साहित्यकारों को चंद्रमा का अलग-अलग रूप बेहद आकर्षित करता रहा है।कवियों ने इसके विभिन्न रूपों को लेकर सुंदर रचनाएं की हैं। घटता-बढ़ता चांद एक दिन माता से यह बोला, सिलवा दो मां मुझे उन का मोटा एक झिंगोला। रामधारी सिंह दिनकर की यह कविता हिंदीभाषी राज्यों के लगभग सभी विद्यार्थियों ने पढ़ी होगी। चंद्रमा का छलिया रूप केवल कवियों को ही आकर्षित नहीं करता रहा है बल्कि इसका हर पल बदलता रूप खगोल विज्ञानियों को भी नए शोध के लिए प्रेरित करता रहा है। चंद्रमा के विभिन्न रूपों को अब तक खगोल विज्ञानी भी अलग-अलग नाम दे चुके हैं जिसमें सुपर मून, रेडब्लड मून, ब्लू मून, रेड मून आम लोगों के बीच भी चर्चा पा चुके हैं। चंद्रमा के अलग-अलग रूप का रहस्य जानने के लिए खगोल विज्ञानी रात-दिन इसकी निगरानी कर रहे हैं।
26 मई बुधवार को पूर्णिमा का चांद बेहद खास होने जा रहा है। इस दिन चंद्रग्रहण भी होगा और खगोल विज्ञान का सुपर फ्लावर मून भी। अंतरिक्ष में स्थित चंद्रमा को पृथ्वी से बेहद नजदीक देखा जा सकेगा। खगोल विज्ञानियों के अनुसार यह सुपर मून आम दिनों के मुकाबले सात प्रतिशत बड़ा और 16 प्रतिशत ज्यादा चमकदार दिखेगा। विज्ञानियों का यह भी कहना है कि चंद्रमा की इस विशेषता को तब ही नंगी आंखों से आंका जा सकेगा जब पहले के दिनों के चंद्रमा की तस्वीर आपके सामने हो। अन्यथा इतनी दूर स्थित चंद्रमा में सात प्रतिशत का विस्तार सामान्य तौर पर समझना मुश्किल होता है।
क्या है सुपर मून
चंद्रमा पर जब पृथ्वी की छाया नहीं पड़ रही होती है तब पूर्णिमा का चांद निकलता है लेकिन पूर्णिमा के चांद पर पृथ्वी की छाया पड़ जाती है तो चंद्रग्रहण की स्थिति बन जाती है। लेकिन सुपर मून इससे अलग स्थिति को कहा जाता है। चंद्रमा अपनी कक्षा में पृथ्वी के चक्कर लगाता है। चंद्रमा की कक्षा स्थिर नहीं है। यानी चंद्रमा की कक्षा बदलती रहती है। ऐसी स्थिति में पृथ्वी के चारों ओर घूमने के दौरान चंद्रमा कई बार उसके बेहद करीब से होकर गुजर जाता है। चंद्रमा के पृथ्वी के बेहद करीब आने की स्थिति को खगोल विज्ञानियों ने 'पेरिगी' नाम दिया है। 26 मई 2021 यानी बुधवार को चंद्रमा और पृथ्वी के साथ ऐसा ही होने जा रहा है। अपनी कक्षा में घूमते हुए चंद्रमा 26 मई को पृथ्वी के बेहद करीब से होकर गुजरेगा। यह सुपर फ्लावर मून की स्थिति होगी। यह स्थिति 26 मई को भारतीय समयानुसार दोपहर 1.53 बजे ही हो जाएगी। तब पृथ्वी से चंद्रमा की दूरी मात्र 3,57,309 किलोमीटर ही होगी। भारत में इस समय दिन होने की वजह से इसे देखा नहीं जा सकेगा लेकिन जब सूर्यास्त होगा तो भारत में भी इसे देखा जा सकेगा। इसके लिए लोगों को अपने घरों की छत का रुख करना होगा। चंद्रमा के आकाश के क्षितिज पर होने की वजह से इसे जमीन पर नीचे खड़े होकर नहीं देखा जा सकेगा।
क्यों होता है चंद्रग्रहण, रेड ब्लड मून और ब्लू मून
पृथ्वी जब अपनी छाया से चंद्रमा को ढक लेती है तब चंद्रग्रहण होता है। चंद्रग्रण भी केवल पूर्णिमा के अवसर पर ही होता है। इसके अलावा हर समय सूर्य की किरणों का कम से कम आधा हिस्सा चंद्रमा पर पड़ता है। इसलिए ग्रहण तभी होता है जब पूर्णिमा की स्थिति बनती है। जब पृथ्वी चंद्रमा और सूर्य तीनों एक सीध में होते हैं तब पूर्णिमा होती है। इस पूर्णिमा की स्थिति में जब पृथ्वी की छाया पड़ती है तब चंद्रग्रहण होता है। अगर चंद्रमा की कक्षा निश्चित होती तो हर पूर्णिमा को ही ग्रहण भी होता। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि चंद्रमा की कक्षा क्योंकि पृथ्वी के अक्ष से 5 डिग्री झुकी हुई है इसलिए जब पूर्णिमा आती है तो भी पृथ्वी की थोड़ी सी छाया चंद्रमा पर पड़ रही होती है इसलिए जब कभी यह तीनों एक सीध में होते हैं और चंद्रमा, पृथ्वी की छाया से होकर गुजरता है तब चंद्रग्रहण होता है। इस बार का चंद्रग्रहण प्रशांत महासागर के मध्य क्षेत्र में सबसे अच्छे तरीके से देखा जाएगा ऑस्ट्रेलिया और एशिया के पूर्वी समुद्री छोर पर चंद्र ग्रहण दिखाई देगा। इसी तरह अमेरिका के पश्चिमी समुद्री छोर पर भी चंद्रग्रहण देखा जा सकेगा। यह कह सकते हैं कि आधे अमेरिका में इसे देखा जाएगा लेकिन यह केवल शुरुआती क्षण ही होंगे जहां चंद्र ग्रहण दिखेगा ।
रेड ब्लड मून और ब्लू मून का मतलब
जब कभी पृथ्वी की छाया पूरी तरह से चंद्रमा को ढंक लेती है तो चंद्रमा काला दिखाई देता है लेकिन जब ऐसा नहीं होता है तो चंद्रमा का रंग लाल, नीला, सफेद या पीला दिखता है। इसकी वजह है कि सूर्य की किरणों में सभी रंग शामिल हैं। सूर्य की किरणें जब पृथ्वी के वायुमंडल से होकर गुजरती हैं अलग—अलग रंग परावर्तित होते हैं। 19 वीं सदी के ब्रिटिश भौतिक विज्ञानी लार्ड रेले ने इस से संबंधित अपनी थ्योरी बताई है जिसे रेले स्कैटरिंग के नाम से जाना जाता है। इस थ्योरी में बताया गया है कि जब पृथ्वी के क्षितिज से होकर सूर्य की किरणें आती हैं तो रेड कलर चमकता है। सूर्योदय व सूर्यास्त का भी यही कारण है। इसी तरह से जब चंद्रमा पर पड़ने वाली किरणें पृथ्वी के वायुमंडल से क्षैतिज होकर गुजरती हैं तो रेड ब्लड मून होता है और जब सीधे पड़ती हैं तो ब्लू मून कहलाता है। यही स्थिति चंद्र ग्रहण के समय भी होती है जब रेड और ब्लड मून भी देखा जाता है।