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छठ पूजा स्पेशल : भगवान राम ने भी की थी सूर्यदेव की आराधना, जानें पूरी कथा

वैसे तो छठ पूजा भगवान सूर्य की आराधना का पर्व है, लेकिन इस पर्व को मनाने के पीछे एक पौराणिक कथा भी है। छठ पूजा के दिन भगवान सूर्य की पत्नी छठी

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Published on: 22 Oct 2017 6:08 AM GMT
छठ पूजा स्पेशल : भगवान राम ने भी की थी सूर्यदेव की आराधना, जानें पूरी कथा
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सहारनपुर: वैसे तो छठ पूजा भगवान सूर्य की आराधना का पर्व है, लेकिन इस पर्व को मनाने के पीछे एक पौराणिक कथा भी है। छठ पूजा के दिन भगवान सूर्य की पत्नी छठी मैया की भी पूजा की जाती है। छठ पूजा मनाने के पीछे दूसरी ऐतिहासिक कथा भगवान राम की है।

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14 वर्ष के वनवास के बाद जब भगवान राम और माता सीता ने अयोध्या वापस आकर राज्यभिषेक के दौरान उपवास रखकर कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष में भगवान सूर्य की पूजा की थी। उसी समय से छठ पूजा हिंदू धर्म का महत्वपूर्ण और परंपरागत त्योहार बन गया और लोगों ने उसी तिथि को हर साल मनाना शुरु कर दिया।

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छठ पूजा करने वाला व्यक्ति पवित्र स्नान लेने के बाद संयम की अवधि के 4 दिनों तक अपने मुख्य परिवार से अलग हो जाता है। पूरी अवधि के दौरान वह शुद्ध भावना के साथ एक कंबल के साथ फर्श पर सोता है। सामान्यतः यह माना जाता है कि यदि एक बार किसी परिवार नें छठ पूजा शुरु कर दी तो उन्हें और उनकी अगली पीढ़ी को भी इस पूजा को प्रतिवर्ष करना पड़ेगा और इसे तभी छोड़ा जा सकता है, जब उस वर्ष परिवार में किसी की मृत्यु हो गई हो।

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भक्त छठ पर मिठाई, खीर, ठेकुआ और फल सहित छोटी बांस की टोकरी में सूर्य को प्रसाद अर्पण करते हैं। प्रसाद शुद्धता बनाए रखने के लिए बिना नमक, प्याज और लहसुन के बिना तैयार किया जाता है। यह 4 दिन का त्यौहार है जो शामिल करता है:

पहले दिन भक्त जल्दी सुबह गंगा के पवित्र जल में स्नान करते हैं और अपने घर प्रसाद तैयार करने के लिये कुछ जल घऱ भी लेकर आते हैं। इस दिन घर और घर के आसपास साफ-सफाई होनी चाहिए। वे एक वक्त का खाना लेते हैं, जिसे कद्दू-भात के रुप में जाना जाता है, जो केवल मिट्टी के स्टोव (चूल्हे) पर आम की लकडियों का प्रयोग करके तांबे या मिट्टी के बर्तन में बनाया जाता है। दूसरे दिन (छठ से एक दिन पहले) पंचमी को, भक्त पूरे दिन उपवास रखते हैं और शाम को पृथ्वी (धरती) की पूजा के बाद सूर्य अस्त के बाद व्रत खोलते हैं।

वे पूजा में खीर, पूरी, और फल अर्पित करते हैं। शाम को खाना खाने के बाद, वे बिना पानी पिए 36 घंटे का उपवास रखते हैं। तीसरे दिन (छठ वाले दिन) वे नदी के किनारे घाट पर संध्या अर्घ्य देते हैं। अर्घ्य देने के बाद वे पीले रंग की साड़ी पहनती है। परिवार के अन्य सदस्य पूजा से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इंतजार करते हैं। छठ की रात कोसी पर पांच गन्नों से कवर मिट्टी के दीये जलाकर पारंपरिक कार्यक्रम मनाया जाता है।

पांच गन्ने पंचतत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश) को प्रर्दशित करते हैं, जिससे मानव शरीर का निर्माण करते हैं। चौथे दिन की सुबह भक्त अपने परिवार और मित्रों के साथ गंगा नदी के किनारे बिहानिया अर्घ्य अर्पित करते हैं। भक्त छठ प्रसाद खाकर व्रत खोलते हैं।

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