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Chhath Vrat 2021 Puja: महापर्व छठ की सबसे पहले पूजा किसने की थी, जानिए सूर्य को अर्घ्य देने से जुड़ी मान्यताएं व वैज्ञानिक महत्व
Chhath Vrat 2021 Puja Special :पुराणों के अनुसार राजा प्रियवद को कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्ति के लिए महर्षि कश्यप ने एक यज्ञ कराया। उसे पुत्रेष्टि यज्ञ कहा गया। यज्ञ के उपरांत राजा की पत्नी को खीर दी गयी। इसके असर से रानी मालिनी को पुत्र प्राप्त हुआ। लेकिन वह मृत था।
Chhath Vrat 2021 Puja Special: छठ आस्था का महापर्व
सूर्य की उपासना( Surya Ki Upasana) का महापर्व ( Maha Parav) है छठ। जो मूलरूप से सनातन का वेद पर्व है। वेद के देवता नारायण हैं और इसके गायत्रीमंत्र के देवता भी नारायण हैं। गायत्री मन्त्र के-तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गोदेवस्य-में जो सविता देवता है वह भगवान सूर्य के आभामंडल के केंद्र में विराजमान भगवान नारायण है। उन्हीं को सूर्यनारायण ( Surya Narayana) कहा जाता है। इस तरह छठ पर्व लोकजीवन में अति पावन रुप से मनाया जाता रहा है। छठ एक ऐसा महापर्व है जिसे लगातार चार दिनों तक पूरी आस्था और विश्वास के साथ मनाया जाता है। साथ ही छठ पर्व में कठोर नियमों का पालन भी किया जाता है। जानते हैं छठ से जुड़ी कुछ मान्यताएं और इस व्रत के लाभ । कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से चार दिवसीय छठ महापर्व की शरूआत होती है। जो आज 8 नवंबर से हो गई है 11 नवंबर सप्तमी तक रहेगी।
पहले दिन यानी चतुर्थी तिथि को 'नहाय-खाय' के रूप में मनाया जाता है। इसके बाद पंचमी को खरना व्रत किया जाता है और इस दिन संध्याकाळ में उपासक प्रसाद के रूप में गुड-खीर, रोटी और फल आदि का सेवन करते है और अगले 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखते हैं। मान्यता है कि खरना पूजन से ही छठ देवी प्रसन्न होती है और घर में वास करती है। वैसे तो छठ पूजा भगवान सूर्य की आराधना का पर्व है, लेकिन इस पर्व को मनाने के पीछे एक पौराणिक कथा भी है। छठ पूजा के दिन भगवान सूर्य की पत्नी छठी मैया की भी पूजा की जाती है। छठ पूजा मनाने के पीछे दूसरी ऐतिहासिक कथा भगवान राम की है।
14 वर्ष के वनवास के बाद जब भगवान राम और माता सीता ने अयोध्या वापस आकर राज्यभिषेक के दौरान उपवास रखकर कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष में भगवान सूर्य की पूजा की थी। उसी समय से छठ पूजा हिंदू धर्म का महत्वपूर्ण और परंपरागत त्योहार बन गया और लोगों ने उसी तिथि को हर साल मनाना शुरू कर दिया। छठ पूजा करने वाला व्यक्ति पवित्र स्नान लेने के बाद संयम की अवधि के 4 दिनों तक अपने मुख्य परिवार से अलग हो जाता है। पूरी अवधि के दौरान वह शुद्ध भावना के साथ एक कंबल के साथ फर्श पर सोता है। सामान्यतः यह माना जाता है कि यदि एक बार किसी परिवार नें छठ पूजा शुरू कर दी तो उन्हें और उनकी अगली पीढ़ी को भी इस पूजा को हर साल करना पड़ेगा और इसे तभी छोड़ा जा सकता है, जब उस वर्ष परिवार में किसी की मृत्यु हो गई हो।
छठ व्रत कैसे किया जाता है
भक्त छठ पर मिठाई, खीर, ठेकुआ और फल सहित छोटी बांस की टोकरी में सूर्य को प्रसाद अर्पण करते हैं। प्रसाद शुद्धता बनाए रखने के लिए बिना नमक, प्याज और लहसुन के बिना तैयार किया जाता है। यह 4 दिन का त्यौहार है जो पहले दिन भक्त जल्दी सुबह गंगा के पवित्र जल में स्नान करते हैं और अपने घर प्रसाद तैयार करने के लिये कुछ जल घऱ भी लेकर आते हैं। इस दिन घर और घर के आसपास साफ-सफाई होनी चाहिए। वे एक वक्त का खाना लेते हैं, जिसे कद्दू-भात के रुप में जाना जाता है, जो केवल मिट्टी के स्टोव (चूल्हे) पर आम की लकडियों का प्रयोग करके तांबे या मिट्टी के बर्तन में बनाया जाता है। दूसरे दिन (छठ से एक दिन पहले) पंचमी को, भक्त पूरे दिन उपवास रखते हैं और शाम को पृथ्वी (धरती) की पूजा के बाद सूर्य अस्त के बाद व्रत खोलते हैं।
वे पूजा में खीर, पूरी, और फल अर्पित करते हैं। शाम को खाना खाने के बाद, वे बिना पानी पिए 36 घंटे का उपवास रखते हैं। तीसरे दिन (छठ वाले दिन) वे नदी के किनारे घाट पर संध्या अर्घ्य देते हैं। छठ की रात कोसी पर पांच गन्नों से कवर मिट्टी के दीये जलाकर पारंपरिक कार्यक्रम मनाया जाता है।
पांच गन्ने पंचतत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश) को प्रर्दशित करते हैं, जिससे मानव शरीर का निर्माण करते हैं। चौथे दिन की सुबह भक्त अपने परिवार और मित्रों के साथ गंगा नदी या किसी भी तलाब,पोखर के किनारे सुबह अर्घ्य अर्पित करते हैं। भक्त छठ प्रसाद खाकर व्रत खोलते हैं।
छठ मइया और सूर्य देव का संबंध
मार्कण्डेय पुराण में लिखा है कि सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने आप को छह भागों में बांटा गया है। इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी के रूप में जाना जाता है, जो ब्रह्मा की मानस पुत्री हैं। छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए जीवन के महत्वपूर्ण अवयवों में सूर्य व जल की महत्ता को मानते हुए, इन्हें साक्षी मान कर भगवान सूर्य की आराधना तथा उनका धन्यवाद करते हुए मां गंगा-यमुना या किसी भी पवित्र नदी या पोखर ( तालाब ) के किनारे यह पूजा की जाती है। षष्ठी मां यानी छठ माता बच्चों की रक्षा करने वाली देवी हैं। इस व्रत को करने से संतान को लंबी आयु का वरदान मिलता है। वो बच्चों की रक्षा करने वाली देवी हैं। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को इन्हीं देवी की पूजा की जाती है।
छठ पर्व श्रीराम द्रौपदी और कर्ण से जुड़ी मान्यताएं
पुराणों के अनुसार राजा प्रियवद को कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्ति के लिए महर्षि कश्यप ने एक यज्ञ कराया। उसे पुत्रेष्टि यज्ञ कहा गया। यज्ञ के उपरांत राजा की पत्नी को खीर दी गयी। इसके असर से रानी मालिनी को पुत्र प्राप्त हुआ। लेकिन वह मृत था। दुखी राजा प्रियवद अपने मृत बच्चे को लेकर श्मशान चले गये। पुत्र के वियोग में उन्होंने प्राण त्याग करने की ठान ली। उसी समय भगवान की मानस कन्या देवसेना अवतरित हुईं।
सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न होने के चलते उन्हें पष्ठी कह कर पुकारा जाता है। देवसेना ने प्रियवद से कहा - राजन, तुम मेरा पूजन करो। दूसरों को ऐसा करने के लिए प्रेरित करो। यह सुन राजा ने पष्ठी का व्रत किया। इससे उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। राजा ने यह पूजा कार्तिक माघ के शुक्ल षष्ठी को की थी।
दूसरी ओर, ऐसी भी मान्यता है कि छठ पूजा महाभारत काल में शुरू हुई थी। ऐसी मान्यता है कि दानवीर कर्ण ने सूर्य की उपासना शुरू की थी। वह भगवान सूर्य ने भक्त थे। हर दिन वह पानी में कमर तक खड़े होकर सूर्य की पूजा करते। उसी उपासना के फलस्वरूप कर्ण बड़े योद्धा बने। ऐसी भी मान्यता है कि पांडवों की पत्नी द्रौपदी भी सूर्य की पूजा करती थीं। वह बेहतर स्वास्थ्य और निरोग रहने के इरादे से सूर्य की पूजा किया करती थी।
भगवान श्रीराम ने की थी पूजा
महापर्व छठ पूजा का संबंध रामायण काल से रहा है। जब भगवान राम अपना वनवास पूरा कर अयोध्या लौटे थे तब इसकी शुरुआत हुई थी। सूर्य वंश के श्रीराम और सीता ने अपना राज्यभिषेक होने के बाद भगवान सूर्य के सम्मान में कार्तिक शुक्ल की षष्ठी को उपवास रखा और पूजा अर्चना की। इसके बाद से यह पूजा एक महापर्व के रूप में मनाई जाने लगी।
सूर्यपुत्र कर्ण और छठ पर्व
महाभारत काल में कुंती के पुत्री कर्ण सूर्य देव के परम भक्त और उनके पुत्र भी थे। भगवान सूर्य को खुश करने के लिए कर्ण रोजाना सुबह के समय घंटों तक पानी में खड़े रह कर उनकी पूजा करते थे। कर्ण के इस तरह से ध्यान करने से सूर्य देव की उन पर विशेष कृपा होती है। सूर्य ने अपना कवच कुंडल कर्ण को प्रसन्न हो दिया था, जिसे बाद में इंद्र नें छल से ले लिया था। इसलिए छठ पूजा में सूर्य देव को अर्घ्यदान देने की परंपरा जुड़ी है।
द्रौपदी ने भी किया था छठ व्रत
महाभारत काल में इससे जुड़ा एक और कारण भी बताया जाता है। कहा जाता है कि महाभारत काल में जब पांडव अपना सर्वस्व हार चुके थे। उनके पास कुछ नहीं रह गया था उस समय द्रौपदी यानी कि पांचाली ने इस व्रत का अनुष्ठान कर पूजा की। इससे द्रौपदी और पांडवों को उनका पूरा साम्राज्य वापस मिल गया था।महाभारत में विजय प्राप्त की थी।
छठ महापर्व का वैज्ञानिक महत्व
कार्तिक शुक्ल की चतुर्थी को 'नहाय-खाय' होता है। इस दिन स्नान व भोजन ग्रहण करने के बाद शुरू होता है। दूसरे दिन पंचमी को दिनभर निर्जला उपवास और शाम को सूर्यास्त के बाद ही भोजन ग्रहण किया जाता है। तीसरे दिन षष्ठी पर डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के अलावा और छठ का प्रसाद बनता है। चौथे दिन सप्तमी की सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ उपवास खोला जाता है।
लोक, जिसका एक व्यापक अर्थ है। सूर्य के प्रति आपार आस्था छठ के केंद्र में है। जो प्रकृति के करीब पहुंचाती है पूजा मन व शरीर होता है स्वस्थ धार्मिक महत्व के साथ छठ का वैज्ञानिक महत्व भी कम नहीं है। इस पर्व का प्रकृति के साथ सबसे करीबी रिश्ता माना जाता है। सूर्य को अर्घ देने के लिए उपयोग में लाया जाने वाला हल्दी, अदरक, मूली और गाजर जैसे फल-फूल स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होते हैं।
यही ऐसा त्योहार है तो सामूहिक रूप से लोगों को स्वच्छता की ओर ले जाता है। यही नहीं, प्रकृति को सम्मान व संरक्षण देने का संदेश भी यह पर्व देता है। आज जबकि पूरी दुनिया में पर्यावरण को लेकर चिंता जतायी जा रही है, तब छठ का महत्व और जाहिर होता है। इस पर्व के दौरान साफ-सफाई के प्रति जो संवेदनशीलता दिखायी जाती है, वह लगतार बनी रहे तो पर्यावरण का भी भला होगा। छठ पूजा की प्रक्रिया के बारे में वैज्ञानिकों का कहना है कि इससे सेहत को फायदा होता है।
पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ देने से शरीर को प्राकृतिक तौर में कई चीजें मिल जाती हैं। पानी में खड़े होकर अर्घ देने से टॉक्सिफिकेशन होता है जो शरीर के लिए फायदेमंद होता है। यह वैज्ञानिक तथ्य है कि सूर्य की किरणों में कई ऐसे तत्व होते हैं तो प्रकृति के साथ सभी जीवों के लिए लाभदायक होते हैं। ऐसा माना जाता है कि सूर्य को अर्घ देने के क्रम में सूर्य की किरणें परावर्तित होकर आंखों पर पड़ती हैं। इससे स्नायुतंत्र सक्रिय हो जाता है और व्यक्ति खुद को ऊर्जान्वित महसूस करता है।
छठ पूजा में अर्घ्य देने का समय
छठ पूजा में संध्या का अर्घ्य- 10 नवंबर
छठ पूजा में सुबह का अर्घ्य- 11 नवंबर।
सूर्यास्त का शुभ मुहूर्त- शाम 5:30 ।
सूर्योदय का शुभ मुहूर्त- सुबह 6:40 ।