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Christmas 2021 kab Manate Hai: क्रिसमस क्यों मनाया जाता है, जानिए सांता क्लॉस और इसके तीन रंगों का अद्भुत रहस्य
Christmas 2021 kab manate hai: क्रिसमस पर तीन रंगों का विशेष महत्व है।यह रंग यीशु के खून का प्रतीक है। इसके अलावा उनका दूसरों के प्रति बेपनाह प्यार भी लाल रंग को दर्शाता है। लाल रंग मानवता का पाठ ढ़ता है। यह खुशी भी प्रदान करता है।
Christmas 2021 क्रिसमस क्यों मनाया जाता है:
हर साल हम सब मिलकर प्रभु ईशु का जन्मदिन 25 दिसम्बर को क्रिसमस डे ( Christmas Day) के रुप में मनाते हैं। वैसे तो पूरी दुनिया में बड़ा दिन क्रिसमस का त्योहार मनाया जाता है। लेकिन ईसाई धर्म के लोगों में इस दिन एक नया उत्साह देखने को मिलता है और इसे सभी इस दिन को धूम-धाम से मनाते हैं।
जीसस क्राइस्ट (Jesus Christ) यानी ईसा मसीह के जन्म की खुशी के रुप में क्रिसमस मनाते हैं। उन्हें ईश्वर की संतान और ईसाई धर्म( Christianity )के संस्थापक मानते हैं। क्रिसमस नाम भी उन्हीं के नाम पर पड़ा।
क्रिसमस डे क्यों नाम पड़ा
बहुत कम लोग जानते होंगे, क्रिसमस शब्द का अर्थ, क्रिसमस शब्द का जन्म क्राईस्टेस माइसे अथवा क्राइस्टस् मास शब्द से हुआ है। क्रिसमस या बडा दिन प्रभु के पुत्र ईसा मसीह या यीशु के जन्म की खुशी में पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है और आमतौर पर इस दिन लगभग पूरी दुनिया में छुट्टी रहती है। वैसे 25 दिसंबर को यीशु का जन्मदिन होने का कोई तथ्यपूर्ण प्रमाण उपलब्ध नहीं है, लेकिन दुनियाभर में इसी तिथि को यह रोमन पर्व सदियों से मनाती चली आ रही है।
ईसाई लोग क्रिसमस कैसे मनाते हैं?
यह दिन दुनियाभर में अवकाश का दिन है जिसकी खुशी हर धर्म के लोग उठाते हैं। यह ईसाइयों के लिए महत्व का दिन है। पाश्चात्य देशों में लोग क्रिसमस त्योहार से बहुत पहले बहुत सारी तैयारियाँ करते हैं और अपने घरों को रोशनी, सजावटी सामान और फूलों से सजाते हैं। बाइबल में जीसस की कोई बर्थ डेट नहीं दी गई है, लेकिन फिर भी 25 दिसंबर को ही हर साल क्रिसमस मनाया जाता है। इस तारीख को लेकर कई बार विवाद भी हुआ। लेकिन 336 ई. पूर्व में रोमन के पहले ईसाई रोमन सम्राट के समय में सबसे पहले क्रिसमस 25 दिसंबर को मनाया । परम्परागत रूप से क्रिसमस 12 दिन तक चलने वाला उत्सव है। प्रभु ईसा मसीह का जन्मदिन पूरे विश्व में लोग अपनी-अपनी परंपराओं एवं रीति-रिवाजों के साथ श्रद्धा, भक्ति एवं निष्ठा के साथ मनाते हैं। सभी समुदाय के लोग इसे पूरी श्रद्धा और उल्लास के साथ एक धर्मनिरपेक्ष, सांस्कृतिक उत्सव के रूप मे मनाते हैं। क्रिसमस पर विशेष रुप से केक बनता है, केक बिना क्रिसमस अधूरा होता है। भगवान यीशु मसीह के जन्मोत्सव को सेलीब्रेट करने के लिए क्रिसमस केक भी गिरिजाघरों में सजाए जाते हैं।
क्रिसमस पर जीसस के जन्म की कथा
एक बार ईश्वर ने ग्रैबियल नामक अपना एक दूत मैरी नामक युवती के पास भेजा। ईश्वर के दूत ग्रैबियल ने मैरी को जाकर कहा कि उसे ईश्वर के पुत्र को जन्म देना है। यह बात सुनकर मैरी चौंक गई क्योंकि अभी तो वह कुंवारी थी, सो उसने ग्रैबियल से पूछा कि यह किस प्रकार संभव होगा? तो ग्रैबियल ने कहा कि ईश्वर सब ठीक करेगा। समय बीता और मैरी की शादी जोसेफ नाम के युवक के साथ हो गई। भगवान के दूत ग्रैबियल जोसेफ के सपने में आए और उससे कहा कि जल्द ही मैरी गर्भवती होगी और उसे उसका खास ध्यान रखना होगा क्योंकि उसकी होने वाली संतान कोई और नहीं स्वयं प्रभु यीशु हैं। उस समय जोसेफ और मैरी नाजरथ जोकि वर्तमान में इजराइल का एक भाग है, में रहा करते थे। उस समय नाजरथ रोमन साम्राज्य का एक हिस्सा हुआ करता था। एक बार किसी कारण से जोसेफ और मैरी बैथलेहम, जोकि इस समय फिलस्तीन में है, में किसी काम से गए, उन दिनों वहां बहुत से लोग आए हुए थे जिस कारण सभी धर्मशालाएं और शरणालय भरे हुए थे जिससे जोसेफ और मैरी को अपने लिए शरण नहीं मिल पाई। काफी थक−हारने के बाद उन दोनों को एक अस्तबल में जगह मिली और उसी स्थान पर आधी रात के बाद प्रभु यीशु का जन्म हुआ। अस्तबल के निकट कुछ गडरिए अपनी भेड़ें चरा रहे थे, वहां ईश्वर के दूत प्रकट हुए और उन गडरियों को प्रभु यीशु के जन्म लेने की जानकारी दी। गडरिए उस नवजात शिशु के पास गए और उसे नमन किया।
यीशु जब बड़े हुए तो उन्होंने पूरे गलीलिया में घूम−घूम कर उपदेश दिए और लोगों की हर बीमारी और दुर्बलताओं को दूर करने के प्रयास किए। धीरे−धीरे उनकी प्रसिद्धि चारों ओर फैलती गई। यीशु के सद्भावनापूर्ण कार्यों के कुछ दुश्मन भी थे जिन्होंने अंत में यीशु को काफी यातनाएं दीं और उन्हें क्रूस पर लटकाकर मार डाला। लेकिन यीशु जीवन पर्यन्त मानव कल्याण की दिशा में जुटे रहे, यही नहीं जब उन्हें कू्रस पर लटकाया जा रहा था, तब भी वह यही बोले कि 'हे पिता इन लोगों को क्षमा कर दीजिए क्योंकि यह लोग अज्ञानी हैं।' उसके बाद से ही ईसाई लोग 25 दिसम्बर यानि यीशु के जन्मदिवस को क्रिसमस के रूप में मनाते हैं।
क्रिसमस और सांता क्लॉज
एक ईसाई पौराणिक कथा के अनुसार, प्रभु ने मेरी नामक एक कुंवारी लडकी के पास गैब्रियल नामक देवदूत को भेजा, जिसने मेरी को बताया कि वह प्रभु के पुत्र को जन्म देगी तथा बच्चे का नाम जीसस रखा जाएगा। वह बच्चा बड़ा होकर राजा बनेगा और उसके राज्य की कोई सीमा नहीं होगी।
क्रिसमस के मौके पर कहा जाता है कि सांता क्लॉज आयेगा ढेर सारी खुशियां लायेगा। ये क्रिसमस से जुड़ा एक लोकप्रिय पौराणिक परंतु कल्पित पात्र हैं।जो बच्चों को प्यार करता है। माना जाता है कि क्रिसमस की रात सफेद रंग की बड़ी-बड़ी दाढी-मूंछों वाले सांता क्लॉज यानी क्रिसमस फादर स्वर्ग से उतरकर हर घर में आते हैं और बच्चों के लिए तोहफे की पोटली क्रिसमस ट्री पर लटकाकर चले जाते हैं, ऐसी मान्यता है कि सांता क्लॉज रेंडियर पर चढ़कर किसी बर्फीले जगह से आते हैं और चिमनियों के रास्ते घरों में प्रवेश करके सभी अच्छे बच्चों के लिए उनके सिरहाने उपहार छोड़ जाते हैं।
क्रिसमस के तीन रंग का मतलब क्या है?
- क्रिसमस पर तीन रंगों का विशेष महत्व है। इन रंगों में लाल रंग, हरा रंग और सुनहरा यानि गोल्डन कलर का इस्तेमाल सबसे अधिक किया जाता है, लेकिन इन तीन ही रंगों का प्रयोग क्यों किया जाता है, इन रंगों के बारे में जीसस क्राइस्ट के तीन उपदेश हैं। जानते हैं कि तीन रंगों के बारे में जीसस ने कौन सी शिक्षा दी है।
- लाल रंग यह रंग यीशु के खून का प्रतीक है। इसके अलावा उनका दूसरों के प्रति बेपनाह प्यार भी लाल रंग को दर्शाता है। लाल रंग मानवता का पाठ ढ़ता है। यह खुशी भी प्रदान करता है।
- हरा रंग हरा रंग, प्रकृतिक से जुड़ा है, जो कि इतनी सर्दी में भी अपने रंग को बरकरार रखने में कामयाब रहता हैं। ईसाई धर्म में मानते हैं कि हरा रंग प्रभू यीशु के शाश्वत जीवन का प्रतीक है। यीशु को भले ही जबरदस्ती मार दिया गया हो लेकिन वह आज भी हमारे दिलों में जिंदा हैं और हमेशा रहेंगे भी। इसलिये हरे रंग का मतलब होता है जिंदगी।
- सुनहरे रंग सुनहरे रंग का अर्थ किसी को भेंट देना। यीशु के जन्म पर जो तीसरे राजा आए थे, उन्होंने भेंट में सोना दिया था। भगवान ने गरीब मरियम को अपने बेटे को जन्म देने के लिये चुना। मरियम और यूसुफ ने यीशु को बचाने के लिये सभी बाधाओं का सामना किया। यह बताता है कि हर कोई भगवान के सामने बराबर है। यह एक उपहार था, जिसे भगवान ने मानव जाति को दिया था।
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